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- अंधविश्वास, पाखंड में...
आदित्य चोपड़ा: कई दिन से गंगा और अन्य नदियों में सैकड़ों की संख्या में शवों का मिलना जारी है। उन्नाव और कानपुर में गंगा के किनारे रेत में बड़ी संख्या में शवों को दफनाए जाने की विचलित करने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यासकार स्वर्गीय अनंतमूर्ति के उपन्यास संस्कार में पढ़ा था कि कहानी प्लेग की महामारी के दौरान मरे एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार की दुविधा से शुुरू होती है। महामारी की भयावहता और उसके जो सामाजिक, धार्मिक और निजी आयाम भी उपन्यास में पढ़ने को मिले। सोचा भी नहीं था जितना पढ़ा था, उससे कहीं ज्यादा हमें 2020-21 में देखने को मिल रहा है। शायद कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा कि उसके परिजन का अंतिम संस्कार गरिमा और रीति-रिवाज के साथ नहीं हो। अगर लोग शवों को बहा रहे हैं या रेत में दबा रहे हैं तो साफ है कि वे अंतिम संस्कार करने में असमर्थ हैं। इसका कारण गरीबी भी है। यह बहुत बड़ी मानवीय समस्या है। सवाल मानवीय गरिमा का भी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य सरकारों का ध्यान इस ओर दिलाया हैै और कहा है कि शवों की गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए, हो सके तो इसके लिए विशेष कानून बनाया जाना चाहिए। कोरोना काल में एक बड़ी समस्या अंधविश्वास बढ़ने की भी है। कोरोना का मुकाबला करने के लिए वैज्ञानिकों ने वैक्सीन तैयार कर सफलता हासिल कर ली है। नए-नए शोध किए जा रहे हैं। कुछ अन्य दवाइयां भी आने वाली हैं। दुनिया भर के डार्क्ट्स और स्वास्थ्य कर्मचारी इन्हीं वैज्ञानिक उपायों का प्रयोग कर लोगों की जानें बचा रहे हैं। लेकिन हमारे देश में अभी भी अशिक्षित, धर्मांध अंधविश्वास और पाखंड का पोषण करने वाले लोगों की काफी संख्या है। बिहार के एक गांव में स्वास्थ्य केन्द्र बंद पड़ा है, लेकिन लोग मंदिर में दिन-रात पूजा-अर्चना में लगे हुए हैं। गुजरात के गांधीनगर के रायपुर गांव में महिलाओं ने अपने सिर पर पानी के बर्तन रखकर जुलूस निकाला। कई लोग ढोल-पीटते हुए जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। गांव के लोगों का मानना था कि उनके देवता के मंदिर में पानी डालने से कोविड-19 का खात्मा हो सकता है। इस तरह के जुलूस कई अन्य जगह भी निकाले गए। पुलिस ने कार्रवाई भी की। हैदराबाद के एक ज्योतिषि ने कहा है कि कोरोना के अंग्रेजी हिज्जे मे ग एक की बजाय दो 'एन' लिखा जाने लगे तो न्यूमरोलॉजी के मुताबिक कोरोना वायरस अपनी संक्रामक क्षमता खो देगा। सोशल मीडिया की सक्रियता के इस दौर में बेतुके, अप्रमाणित और अवैज्ञानिक तरीके प्रचारित किये जा रहे हैं, जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। कोई कह रहा है कि धार्मिक ग्रंथ में अमुक दुआ पढ़िये आर खुद को तथा परिवार के लोगों को कोरोना से सुरक्षित रखिये। कोई ताबीज बना रहा है तो कोई किस्म-किस्म की फल-सब्जी बता रहा है।