सम्पादकीय

अंधविश्वास, पाखंड में न पड़ें

Subhi
16 May 2021 4:15 AM GMT
अंधविश्वास, पाखंड में न पड़ें
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कई दिन से गंगा और अन्य नदियों में सैकड़ों की संख्या में शवों का मिलना जारी है।

आदित्य चोपड़ा: कई दिन से गंगा और अन्य नदियों में सैकड़ों की संख्या में शवों का मिलना जारी है। उन्नाव और कानपुर में गंगा के किनारे रेत में बड़ी संख्या में शवों को दफनाए जाने की विचलित करने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यासकार स्वर्गीय अनंतमूर्ति के उपन्यास संस्कार में पढ़ा था कि कहानी प्लेग की महामारी के दौरान मरे एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार की दुविधा से शुुरू होती है। महामारी की भयावहता और उसके जो सामाजिक, धार्मिक और निजी आयाम भी उपन्यास में पढ़ने को मिले। सोचा भी नहीं था जितना पढ़ा था, उससे कहीं ज्यादा हमें 2020-21 में देखने को मिल रहा है। शायद कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा कि उसके परिजन का अंतिम संस्कार गरिमा और रीति-रिवाज के साथ नहीं हो। अगर लोग शवों को बहा रहे हैं या रेत में दबा रहे हैं तो साफ है कि वे अंतिम संस्कार करने में असमर्थ हैं। इसका कारण गरीबी भी है। यह बहुत बड़ी मानवीय समस्या है। सवाल मानवीय गरिमा का भी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य सरकारों का ध्यान इस ओर दिलाया हैै और कहा है कि शवों की गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए, हो सके तो इसके लिए विशेष कानून बनाया जाना चाहिए। कोरोना काल में एक बड़ी समस्या अंधविश्वास बढ़ने की भी है। कोरोना का मुकाबला करने के लिए वैज्ञानिकों ने वैक्सीन तैयार कर सफलता हासिल कर ली है। नए-नए शोध किए जा रहे हैं। कुछ अन्य दवाइयां भी आने वाली हैं। दुनिया भर के डार्क्ट्स और स्वास्थ्य कर्मचारी इन्हीं वैज्ञानिक उपायों का प्रयोग कर लोगों की जानें बचा रहे हैं। लेकिन हमारे देश में अभी भी अशिक्षित, धर्मांध अंधविश्वास और पाखंड का पोषण करने वाले लोगों की काफी संख्या है। बिहार के एक गांव में स्वास्थ्य केन्द्र बंद पड़ा है, लेकिन लोग मंदिर में दिन-रात पूजा-अर्चना में लगे हुए हैं। गुजरात के गांधीनगर के रायपुर गांव में महिलाओं ने अपने सिर पर पानी के बर्तन रखकर जुलूस निकाला। कई लोग ढोल-पीटते हुए जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। गांव के लोगों का मानना था कि उनके देवता के मंदिर में पानी डालने से कोविड-19 का खात्मा हो सकता है। इस तरह के जुलूस कई अन्य जगह भी निकाले गए। पुलिस ने कार्रवाई भी की। हैदराबाद के एक ज्योतिषि ने कहा है कि कोरोना के अंग्रेजी हिज्जे मे ग एक की बजाय दो 'एन' लिखा जाने लगे तो न्यूमरोलॉजी के मुताबिक कोरोना वायरस अपनी संक्रामक क्षमता खो देगा। सोशल मीडिया की सक्रियता के इस दौर में बेतुके, अप्रमाणित और अवैज्ञानिक तरीके प्रचारित ​किये जा रहे हैं, जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। कोई कह रहा है कि धार्मिक ग्रंथ में अमुक दुआ पढ़िये आर खुद को तथा परिवार के लोगों को कोरोना से सुरक्षित रखिये। कोई ताबीज बना रहा है तो कोई किस्म-किस्म की फल-सब्जी बता रहा है।

कोरोना भगाने के लिए गोबर स्नान किया जा रहा है तो कहीं बाल्टी में यज्ञ और हवन किए जा रहे हैं। ऐसा ही मध्य प्रदेश के शिवपुरी में देखने को मिला है। सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते ग्रामीण गलियों में हवन की बाल्टी लेकर धुआं फैलाते हुए निकले। लोगों का मानना है ​िक हवन सामग्री के धुएं से गलियों में संक्रमण खत्म हो जाएगा और लोगों में सकारात्मकता आएगी। कहते हैं जब लॉजिक कमजोर पड़ जाए तो मैजिक पर भरोसा बढ़ जाता है, ले​िकन लॉजिक के बिना मैजिक भी काम नहीं करता। लोग समझ नहीं पा रहे कि मैजिक भी हाथ की सफाई ही है, कोई चमत्कार नहीं। विज्ञान ही हर बीमारी का सही इलाज है। हम किसी की भी आस्था पर सवाल नहीं उठा रहे, इसमें कोई संदेह नहीं अाध्यात्मिकता मनुष्य में सकारात्मकता बढ़ाती है, उसे बल प्रदान करती है, लेकिन यह सवाल तो है ही कि कोरोना काल में जन सोशल डिस्टेंसिंग सबसे जरूरी है, ऐसे में बिना मास्क लगाए इस तरह के सामूहिक आयोजनों से संक्रमण दूर होगा या और बढ़ेगा।
गांवों में फैलता कोरोना चिंताजनक है। गांव में क्वारंटाइन सैंटर चाहिएं, टैस्टिंग चाहिए, दवाइयां चाहिएं, डाक्टर चाहिएं। ग्रामीण क्षेत्रों में युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। गांवों में लोगों को जागरूक बनाए जाने की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों से रिपोर्ट आ रही है कि लोग टैस्टिंग कराने ही नहीं जा रहे। राज्य सरकारों ने समितियां बनाकर हर गांव में घर-घर जांच शुरू की है लेकिन जब तक ग्रामीण स्वयं जागरूक नहीं होते तब तक सरकारी प्रयासों को सफलता नहीं मिलेगी। बढ़ते अंधविश्वास को देखते हुए कोई भी विवेकशील व्यक्ति के मन में सवाल उठेगा कि आखिर हम कहां पहुंच गए हैं? लोग अपनी धा​िर्मक आस्थाओं का पालन करें, यह उनका अधिकार है, ल​ेकिन वे ये अंधविश्वास रखें कि उससे कोरोना जैसी महामारी​ ​िनयंत्रित हो जाएगी तो उसे समाज के सामूहिक पतन के रास्ते पर आगे बढ़ना ही माना जाएगा। कुछ राजनीतिज्ञों की तरफ से भी अवैज्ञानिक बातों को प्रचारित किया जाता है, जो पूरी तरह गलत है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से आग्रह है कि महामारी काल में उन लोगों की सुनें जो वैज्ञा​िनक सोच रखते हैं। महामारी को वैक्सीन के जरिये ही खत्म ​किया जा सकता है। कुछ दिनों में वैक्सीन संकट भी हल हो जाएगा। विज्ञान से ही कोरोना का अंधकार खत्म होगा और उजाला होगा।


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