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वध और हत्या दोनों ही हिंसा है, पर दोनों में फर्क है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
वध और हत्या दोनों ही हिंसा है, पर दोनों में फर्क है। वध में दंड है, हत्या में अपराध। हमारे जीवन में दुर्गुणों का आक्रमण लगातार होता रहता है। ये सबसे पहला डेरा मन पर डालते हैं, उसके बाद दिल में उतरते हैं। फिर, दिल यदि आवारा हो जाए तो उम्र कोई भी हो, कदम बहक ही जाएंगे। धीरे-धीरे इनका असर दिमाग पर होता है और लोग गलत काम करने लगते हैं।
दुर्गुणों को लालच देने में बड़ी महारथ है और हम समझ नहीं पाते। जैसे सालभर के बच्चे की आंखें यदि बड़ी हों तो कुछ लोग उन्हें विशाल नेत्र समझकर खुश हो सकते हैं, लेकिन विज्ञान कहता है यह एक रोग यानी मोतियाबिंद की शुरुआत भी हो सकती है। यह सब भाव और विज्ञान का अंतर है।
ऐसे ही हम दुर्गुणों के प्रति जब भाव की दृष्टि से देखें तो वो ही हमें सद्गुण दिखते हैं, पर जरा वैज्ञानिक और जागरूक दृष्टि से देखें तो समझ में आ जाएगा यह धीमी मौत का सामान है। तो अपने आसपास जरा चौकन्ने रहिए। दुर्गुणों का वध करने में देर न करें, वरना वो आपके चरित्र की हत्या करने में देर नहीं करेंगे।
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