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करीब 105 वर्ष पहले साउथ इंडिया लिबरल फेडरेशन (South India Liberal Federation) की स्थापना से सामाजिक न्याय पर आधारित राजनीति की लहर शुरू हुई थी
मनुराज एस
करीब 105 वर्ष पहले साउथ इंडिया लिबरल फेडरेशन (South India Liberal Federation) की स्थापना से सामाजिक न्याय पर आधारित राजनीति की लहर शुरू हुई थी, जो आज भी तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राजनीति को परिभाषित करती है. साउथ इंडिया लिबरल फेडरेशन, जो जस्टिस पार्टी (Justice Party) के नाम से भी लोकप्रिय है, ने आत्म-सम्मान, जाति-विरोधी सुधार और प्रगतिशील राजनीति के विचारधारा के आधार पर द्रविड़ आंदोलन को एक आकार दिया. बीते वर्षों के दौरान तमिलनाडु ने राज्य की ऑटोनॉमी, समावेशी प्रशासन और राजनीति में नए सुधार की वकालत की है. ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस ने अब तक जो पहल किए हैं उनका लाभ लेने का समय आ गया है.
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के शब्दों में कहा जाए तो ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस का मकसद सामाजिक न्याय हासिल करने के लिए एक रोडमैप तैयार करना है. यहां सामाजिक न्याय से आशय ऐसे कदमों से है जो लिंग, जाति और वर्ग के अंतर्विरोधों को दूर करते हों. यह उत्तर भारत या दक्षिण भारत के हालात नहीं हैं बल्कि संपूर्ण भारत की स्थिति है, इसलिए पूरे देश की लोकतांत्रिक ताकतों की इसमें भागीदारी की जरूरत है. भले ही इस पहल की शुरुआत तमिलनाडु से हुई है, लेकिन संभव है कि इस फेडरेशन का प्रभाव पूरे उपमहाद्वीप में देखने को मिले.
भारतीय संविधान में पहला संशोधन 1951 में किया गया था
बीते करीब सात दशकों के दौरान, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने अपनी प्रगतिशील विचारधारा, धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता और संघीय प्राथमिकताओं के जरिए राष्ट्रीय राजनीति को नया आकार देने में अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में यह स्वाभाविक है कि जब बात मूलभूत संवैधानिक ताने बाने की होती है तो पूरा देश अन्ना, कलाईनर या मुख्यमंत्री स्टालिन जैसे हमारी पार्टी के नेताओं की ओर देखता है. सामाजिक न्याय के क्षेत्र में शुरू किए गए कुछ सुधारों की जड़ उस आंदोलन में भी निहित है जिसकी शुरुआत डीएमके ने की थी.
भारतीय संविधान में पहला संशोधन 1951 में किया गया था, इस संशोधन के जरिए अनुच्छेद 15 में एक नया उपबंध 4 जोड़ा गया था. इस उपबंध में राज्य को ऐसी शक्तियां दी गई कि जिससे वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान कर सके. इसने पूरे देश के पिछड़े वर्ग की बेहतरी के लिए सकारात्मक कदमों के प्रावधान की जमीन तैयार की.
1990 में केंद्र सरकार के एक सहयोगी के तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के अधीन डीएमके ने ऑफिस मेमोरेंडम जारी करने में मुख्य भूमिका अदा की. जिसमें मंडल आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू किया गया और सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 27 फीसदी का आरक्षण सुनिश्चित किया गया. इसी तरह, 2005 में यूपीए की अगुवाई में केंद्र सरकार ने केंद्रीय शिक्षण संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) एक्ट 2006 पेश किया, जिससे पिछड़े वर्ग के लाखों छात्रों को फायदा हुआ.
"सभी के लिए सभी कुछ"
इन महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद अभी भी काफी कुछ करने को बाकी है. वास्तव में देखा जाए तो नेशनल एंट्रेंस एंड एलिजिबिलिटी टेस्ट (NEET) और सिविल सेवा में लेटरल एंट्री के क्षेत्र में सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्यान में नहीं रखा गया है. इन दोनों ही मामलों में तमिलनाडु ने अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है और देश के दूसरे हिस्सों में भी सामाजिक न्याय की अवधारणा पर तत्काल देने की जरूरत है.
हाल में एक समारोह के दौरान मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि भले ही अलग-अलग राज्यों में पिछड़े और दलित समुदायों की जनसंख्या अलग-अलग हो, लेकिन सामाजिक न्याय की विचारधारा सभी के लिए समान है. उन्होंने जोर देते हुए यह कहा कि ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस का मुख्य सूत्र "सभी के लिए सभी कुछ" होगा और यह ऐसा फेडरेशन होगा जो संघवाद और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को हासिल करने के लिए काम करेगा.
सोशल इंडिया लिबरल फेडरेशन ने जो मंच तैयार किया, उसका आधार भारत के संविधान बनाने वाले नेता हैं, जिन्होंने सभी के लिए समानता और कानून के समक्ष समान संरक्षण को सुनिश्चित किया. आजादी के 75 वर्षों के दौरान तैयार हुए संवैधानिक ताने बाने के सिद्धांतों को अब सुरक्षित रखने की जरूरत है. ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस के पास देश की सामाजिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा करने की क्षमता है, साथ ही यह 22वीं सदी के लिए हमारे धर्मनिरपेक्ष, समतावादी मूल्यों को नए सिरे से तलाश करने में मदद भी कर रहा है.
Rani Sahu
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