सम्पादकीय

दीपावली 2021 : अंधेरे के विरुद्ध उजाले की खोज का उत्सव

Neha Dani
4 Nov 2021 1:47 AM GMT
दीपावली 2021 : अंधेरे के विरुद्ध उजाले की खोज का उत्सव
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मन के कलुष को मिटाना होगा, तभी ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलेगा।

रोशनी के उत्सव दीपावली में महालक्ष्मी की पूजा होती है। इसका शरद लक्ष्मी से बहुत गहरा संबंध है। शरद लक्ष्मी मतलब शरद की प्राकृतिक शोभा। वर्षा के उपरांत आकाश निरभ्र-निर्मल हो जाता है। चंद्र-ज्योत्सना निखर उठती है। न अधिक शीत होता है और न अधिक उष्णता। नदियों का जल शांत और स्वच्छ हो जाता है। कालिदास ने मंगल-स्नाता पार्वती की उपमा दी है वर्षा के उपरांत प्रफुल्लकाशा धरती से।

शरद लक्ष्मी का सौंदर्य खाली हाथ नहीं आता, वह धन-धान्य लेकर आता है। वर्षा में आकाश जो कुछ धरती को देता है, शरद में धरती उसे लौटा देती है। वह वसुधा हो जाती है। हम सब जानते हैं कि हमारे देश में पर्व-त्योहारों का संबंध ऋतुओं और उसके उत्पादन से है। सीधे शब्दों में कहें, तो दीपावली का संबंध कृषि सभ्यता है। वस्तुतः महालक्ष्मी काली रूपा और सरस्वती रूपा भी हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बताया है कि यह जो महालक्ष्मी हैं, वे आद्या शक्ति हैं यानी मूल शक्ति हैं।
महालक्ष्मी के तीन रूप हैं, एक काली हैं, दूसरी लक्ष्मी हैं और तीसरी सरस्वती हैं। वस्तुतः काली, लक्ष्मी और सरस्वती आद्या शक्ति के तीन रूप हैं। इन्हीं को त्रिपुर भैरवी कहा जाता है। काली तमोगुणी हैं, लक्ष्मी रजोगुणी हैं और सरस्वती सतोगुणी हैं। काली, लक्ष्मी और सरस्वती क्रमशः क्रिया, इच्छा और ज्ञान का प्रतीक हैं। यह देवी-त्रयी सार्वत्रिक, सर्वकालिक है। आप ज्ञान प्राप्त कर लें, इच्छा भी कर लें, लेकिन क्रिया न कर सकें, तो लक्ष्मी पूजन व्यर्थ जाएगा। दीपावली में सामान्यतः भौतिक समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पर्व मनाया जाता है।
अमावस्या घोर अंधकार का प्रतीक है और इसी रात्रि को दीपावली यानी प्रकाश का पर्व मनाया जाता है। यानी साफ है कि हम अंधकार पर प्रकाश के विजय का उत्सव मनाते हैं। अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की मनुष्य की आदिकालीन इच्छा रही है। तमसो मा ज्योतिर्गमय। पारंपरिक रूप से अमीर-गरीब सभी अपने-अपने ढंग से दीपावली का उत्सव मनाते हैं और अपने लिए उजाले की खोज करते हैं। हर कोई अपने घर और उसके आसपास साफ-सफाई करता है, स्वच्छता का ध्यान रखता है, रोशनी का इंतजाम करता है।
अंधकार के अनेक रूप हैं और उन रूपों की खोज और उनके बारे में जानकारी हम केवल इतिहासबोध से कर सकते हैं। जब हम कहते हैं कि यह समय बड़ा अंधकारपूर्ण है, तो यह अंधकार किन रूपों में है, इसे तो हमारा समय ही बताएगा। इसलिए दीपावली तो हर वर्ष मनाई जाती है, लेकिन हर दीपावली नई होती है और हर अंधकार नया होता है। दीपावली मनाते हुए हमें ध्यान रखना होगा कि हमारे इस समय का अंधकार क्या है?
महंगाई, बेरोजगारी, महामारी, सांप्रदायिक विद्वेष-ये सब हमारे समय के अंधकार हैं। महामारी शुरू होने पर जब अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गई, तो दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लाखों प्रवासी श्रमिक हजारों किलोमीटर दूर अपने गांव-घर की ओर पैदल ही चल पड़े। रास्ते में वे जिन भयावह कठिनाइयों को झेलते हुए महज अपनी और अपने परिजनों की जान बचाने के लिए पलायन कर रहे थे, उस समय के दृश्य देखकर आंखें भर जाती थीं और आज भी उस मंजर को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
न जाने कितने रास्ते में ही भूख से मर गए, बहुत से लोग दुर्घटनाओं में मर गए। उनके प्रति प्रशासन तंत्र का संवेदनहीन रवैया भी अंधकार ही कहा जाएगा। यह हमारी मानसिक संकीर्णता और आर्थिक असमानता का अंधकार है कि एक तरफ हजारों-लाखों लोगों की नौकरियां छिन गईं, सैकड़ों लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं, लाखों लोग भयंकर गरीबी में धकेल दिए गए, वहीं दूसरी तरफ अरबों रुपये खर्च कर आईपीएल का आयोजन हो रहा है। सेंसेक्स लगातार बढ़त पर है।
देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ गई है। अपार धन-संपत्तियां पैदा की जा रही हैं। यह सब हमारे समय के अंधकार के ही तो रूप हैं। एक तरफ संचय की समृद्धि का हिमालय है, दूसरी तरफ गरीबी का रसातल है। यह हमारे समय का महान अंधकार है-है अमानिशा, उगलता गगन घन अंधकार। आज हमारे समय में अंधकार का सबसे भयावह रूप प्रकृति का प्रकोप है।
पेड़-पौधे, नदियां-झरने, विविध प्रकार के जीव इस धरती की शोभा हैं। लेकिन हमने पेड़ों को काट डाला, पहाड़ों को खोद डाला, नदियों को प्रदूषित कर दिया और हवा में भी जहर घोल दिया। हम अंधेरे पर उजाले और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का पर्व दीपावली मनाते हैं और उत्सव मनाते हुए हवा में पटाखों का जहर घोलने की नासमझी करते हैं! मनुष्य ने प्रकृति का शोषण करना ही विकास मान लिया है।
ऐसे में मुझे जयशंकर प्रसाद की कामायनी की याद आ रही है, जिसके नायक मनु ने श्रद्धा की उपेक्षा करके बुद्धि-केवल बुद्धि का भरोसा कर लिया है। वह बुद्धि और विवेक का अंतर भूल गया है। फलतः विकास विनाश का समानार्थक हो गया है। विवेकहीनता हमारे समय का सबसे भयावह अंधकार है। इस तरह सबका साथ-सबका विश्वास हमारी सांस्कृतिक उदारता की पारंपरिक सदिच्छा है, किंतु इस इच्छा रूपी लक्ष्मी को क्रिया से संयुक्त होना चाहिए। केवल इच्छा व्यर्थ होगी।
इच्छा को क्रिया और ज्ञान से युक्त होना चाहिए। महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना महामारी के भय ने हमें उत्साहहीन कर दिया है। हमें अंधकार के इन रूपों के विरुद्ध प्रकाश पर्व मनाना है। इन समस्याओं से पार पाना है। हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता है-इसकी विविधता। यह विविधता इसकी घुट्टी में पड़ी है। लोग, भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, पोशाकें, धर्म-पंथ, पर्व-त्योहार ही नहीं, ऋतुओं में भी विविधता है।
इस विविधता का सम्मान किया जाना चाहिए, क्योंकि यह विविधता ही हमारी आंतरिक शक्ति है। अगर कोई एकता की बात करता है, लेकिन विविधता का सम्मान न करके एकरूपता की वकालत करता है, तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा। एकता और एकरूपता अलग-अलग चीजें हैं। अगर हम वाकई इस देश की समृद्धि और कल्याण चाहते हैं, तो हमें महालक्ष्मी की समग्रता में पूजा करनी पड़ेगी और इस देश की विविधता का सम्मान करना पड़ेगा। मन के कलुष को मिटाना होगा, तभी ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलेगा।

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