सम्पादकीय

बांट रहे नफरती भाषण

Subhi
17 April 2022 4:38 AM GMT
बांट रहे नफरती भाषण
x
कर्नाटक में हिजाब, हलाल और अजान जैसे विवादों से हंगामा मचा है। राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन विवादों को इस तरह से खड़ा किया गया है, जिससे कर्नाटक के लोग हिंदू और मुसलमान दो खेमों में बंट जाएं।

पी. चिदंबरम; कर्नाटक में हिजाब, हलाल और अजान जैसे विवादों से हंगामा मचा है। राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन विवादों को इस तरह से खड़ा किया गया है, जिससे कर्नाटक के लोग हिंदू और मुसलमान दो खेमों में बंट जाएं।

हिजाब एक पहनावा है, जिससे लड़की/ महिला घर से बाहर निकलने पर अपने चेहरे को ढकती है। उत्तर भारत में हिंदू महिलाएं, सिख महिलाएं, ईसाई नन या अन्य, जैसे सिख पुरुष भी अपने सिर को ढकते हैं।

हलाल पशुओं या मुर्गों को इस्लामी नियमों के अनुसार मार कर हासिल किया गया मांस होता है, जिसमें ग्रीवा, शिरा या सांस की नली को काट कर पूरा खून निकाल दिया जाता है। दूसरे धर्मों में खाद्य तैयार करने के लिए उनके अपने नियम हैं। यहूदी समुदाय भी अपने धर्म के नियमों के अनुसार ऐसा करता है और कई हिंदू जातियां भी निश्चित नियमों के अनुसार ही भोजन तैयार करती हैं।

अजान दिन में पांच बार मस्जिद से की जाने वाली दुआ होती है, जो अक्सर लाउडस्पीकरों से प्रसारित होती है। हिंदू और ईसाई धार्मिक स्थलों में घंटियां बजाई जाती हैं। हिंदुओं के धार्मिक उत्सवों में मंत्रोच्चार और धार्मिक संगीत बजता है, जिसका लाउडस्पीकरों से प्रसारण होता है।

हिजाब, हलाल और अजान कोई नई चीजें नहीं हैं। जबसे इस्लाम भारत में आया, तभी से ये उसका हिस्सा हैं। कर्नाटक (और पुराने मैसूर राज्य) के लोगों ने इन रिवाजों को सदियों से अपना रखा है, किसी ने इनका विरोध नहीं किया, न ही किसी मुसलमान ने हिंदू धार्मिक गतिविधियों का विरोध किया। संक्षेप में इसे देखें तो हिंदू, मुसलमान और ईसाई और अन्य धर्मों के लोग एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्वक रहते आए हैं।

भाजपा ने थोड़े समय कर्नाटक में अपनी सरकार भी चलाई है, गठबंधन के साथ और अकेले भी। हाल के वर्षों में इसने दूसरी पार्टियों के विधायकों को लालच देकर अपने साथ शामिल कर शासन चलाया है और विधायकों को तोड़ने की इस कोशिश को आपरेशन लोटस नाम दिया था। भाजपा को 2023 में विधानसभा चुनावों का सामना करना है। इसकी सरकारों ने कोई काम तो किया नहीं है और कर्नाटक में इसकी हालत एकदम डावांडोल है।

आपरेशन लोटस का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने बचाव की दीवारें खड़ी कर ली दिखती हैं। इसलिए अब भाजपा को दूसरी पटकथा गढ़ने की जरूरत पड़ गई, जो मतदाताओं को विभाजित कर और हिंदू बहुल वोटों को अपनी ओर खींच सके। भाजपा के पास ऐसे कुटिल महारथी पर्याप्त संख्या में हैं, जो राज्यों के हिसाब से विशिष्ट रणनीति बनाने में माहिर हैं। कर्नाटक में ऐसी ही एक रणनीति के तहत जानबूझ कर खान-पान, पहनावे और प्रार्थना को लेकर विवाद खड़े कर दिए गए हैं।

कर्नाटक के स्कूलों और कालेजों में राज्य सरकार द्वारा हिजाब पर अचानक लगाई गई पाबंदी को अदालत में चुनौती दी गई है। कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्ण पीठ ने सवाल उठाया कि क्या हिजाब पहनना एक अनिवार्य धार्मिक रिवाज है, और व्यवस्था दी कि नहीं। यह सवाल अप्रासंगिक था। प्रासंगिक सवाल सिर्फ यह था कि क्या राज्य सरकार को हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार था और इस तरह उसने एक मुसलिम छात्रा के निजता के अधिकार और उसके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई और उम्मीद है कि असल मुद्दे पर सुनवाई होगी और समाधान निकलेगा।

इस तरह के विवाद नफरती बातों के लिए जमीन तैयार करते हैं। दोनों तरफ से काफी ज्यादा नफरती बातें हो चुकी हैं, हालांकि हाल के कई मामलों में उकसावे की पहल हिंदू कट्टरपंथियों की तरफ से हुई। खेद है, कर्नाटक के कुछ ही मशहूर नागरिक इस पर बोले, इनमें मशहूर अपवाद इतिहासकार रामचंद्र गुहा और उद्योगपति किरण शा मजूमदार भी थीं। नफरती बोल बोलने वालों ने इन दोनों पर अपना गुस्सा निकाला!

कुछ राज्यों में नफरती संवाद सारी सीमाएं तोड़ चुका है, खासतौर से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में। बार-बार ऐसा अपराध करने वाला डासना देवी मंदिर का पुजारी यति नरसिंहानंद है। पिछले साल हरिद्वार में एक धार्मिक सम्मेलन में इसने मुसलिम महिलाओं के खिलाफ बेहद अपमानजनक टिप्पणियां की थी। तब उसे गिरफ्तार किया गया था और कुछ हफ्ते बाद जमानत पर छोड़ दिया।

3 अप्रैल, 2022 को दिल्ली में एक स्वघोषित हिंदू महापंचायत में इसने एक भाषण दिया था, जिसमें कहा कि अपनी बहन-बेटियों को बचाने के लिए हथियार उठा लो। खौफनाक भविष्यवाणियों के बीच उसने यह भी कहा कि 2029 या 2034 या 2039 तक कोई मुसलमान भारत का प्रधानमंत्री होगा। पुलिस ने एफआइआर दर्ज की, लेकिन गिरफ्तार नहीं किया, न ही जमानत रद्द करवाने के लिए कोई पहल की।

दूसरा खौफनाक उदाहरण स्वयंभू धार्मिक नेता महंत बजरंग मुनि है। इसे एक वीडियो में दो अप्रैल 2022 को एक भीड़ को संबोधित करते हुए दिखाया गया है। स्वागत करती भीड़ को संबोधित करते हुए इसने कहा- अगर इलाके में आपके समुदाय की किसी भी लड़की को किसी ने भी परेशान किया तो मैं आपके घर से आपकी बेटी को उठा ले जाऊंगा और उसके साथ बलात्कार करूंगा। लक्ष्य साफ था। राष्ट्रीय महिला आयोग ने उसकी गिरफ्तारी की मांग की। ग्यारह दिन बाद उसे गिरफ्तार किया गया।

विडंबना यह है कि हिंसा, असहिष्णुता और घृणा की ये घटनाएं भगवान राम के जन्मदिन पर हुईं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं और नीतिपरायणता की साक्षात मिसाल हैं। इन घटनाओं और कथनों को सिर्फ यह कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि इन्हें किसी उकसाने वाले एजेंट ने अतिरेक में अंजाम दे दिया होगा। ऐसे लोगों को भाजपा और आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल है, जो भारत के संपूर्ण हिंदू क्षेत्र जो अब हिंदीभाषी राज्यों में पड़ता है, में अपनी ताकत और दायरा बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता से काम कर रहे हैं।

प्रभावशाली फारेन अफेयर्स में हरतोष सिंह बल ने लिखा है- चालीस करोड़ से ज्यादा लोग या तो हिंदुत्ववाद से जुड़े नहीं हैं या फिर उस किस्म के हिंदुत्ववाद को मानते ही नहीं हैं, जिसे आरएसएस सर्वोच्च मानता है। फिर भी आखिरकार वे हिंदू आबादी को एकजुट करने के अपनी शाही परियोजना में लगे रहेंगे, जो यह सुनिश्चित करने के लिए है कि भारत के मुसलमान और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिक बना दिए जाएं। बढ़ती असहिष्णुता के बीच देश के शीर्ष कर्ताधर्ताओं ने जो सोची-समझी चुप्पी साध रखी है, वह महज शासन की चूक नहीं है।


Next Story