- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- छवि बिगाड़ती छवियां
सोनम लववंशी: बाजारवाद ने आज हर चीज की नुमाइश शुरू कर दी है। विज्ञापन के चलन ने औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर वैश्वीकरण के विकास तक हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है। आज ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसका विज्ञापन न किया जाता हो। मगर कितने आश्चर्य की बात है कि इन विज्ञापनों में महिलाओं को कामुक, अर्धनग्न रूप में प्रदर्शित किया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि ये विज्ञापन स्त्री-शरीर केंद्रित ही क्यों होते हैं? ऐसी क्या वजह है जो उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए महिलाओं के अंग प्रदर्शन का सहारा लिया जाता है।
एक शोध के अनुसार विज्ञापनों की दुनिया आज अरबों रुपए की हो चली है। यहां एक प्रकार की 'लैंगिक जड़ता' है। विज्ञापनों में महिलाओं की निजी पसंद केवल सौंदर्य प्रसाधन, घर साफ करने वाले उत्पाद और खाना पकाने संबंधी वस्तुओं की खरीदारी के दायरे में सिमटी हुई दिखाई जाती है। कार, इलेक्ट्रानिक उपकरण, कंप्यूटर, मकान आदि खरीदने के मामले में महिलाओं को किनारे खड़ा कर दिया जाता है।
विज्ञापन अधिकतर महिलाओं को घर की सजावट में दिखाते हैं और पुरुषों को व्यवसाय संचालन में। अगर महिला को किसी उत्पाद के प्रचार के लिए सामने लाया जाता है तो उसकी देह का व्यावसायिक इस्तेमाल ही होता है। अश्लील प्रदर्शन के विरुद्ध कानून है, फिर भी उसकी धज्जियां उड़ाई जाती हैं। ज्यादातर चर्चित चेहरों को ही विज्ञापनों में लाया जाता है, क्योंकि उनका शरीर कामुक होता है।
विज्ञापनों में अश्लीलता का दौर अपने चरम पर है। हमारे समाज ने अश्लीलता को भले कभी मान्यता न दी हो, पर अपना मौन समर्थन जरूर प्रदान किया है। यही वजह है कि अब ये विज्ञापन टेलीविजन के माध्यम से घर घर तक अपनी पैठ बना चुके हैं। आज बाजार में बड़ी सहजता से अश्लील सामग्री मिल जाएगी। एक आंकड़े के अनुसार इस समय करीब पौने चार सौ पोर्न साइटें हैं, जिनको करोड़ों लोग देखते हैं। आधुनिकता की चाह में फूहड़ता का कैसा घिनौना खेल खेला जा रहा है!
वैसे अक्सर देखा गया है कि विज्ञापन कंपनियां उन्हीं विज्ञापनों में महिलाओं को प्राथमिकता देती हैं, जो उनके अंग प्रदर्शन से संबंधित हों या फिर जिनमें महिलाओं की छवि एक घरेलू महिला की हो, जो बर्तन, कपड़े या फिर घर की साफ-सफाई करती हो। कभी उनकी बुद्धि के विकास, सर्जनात्मकता, उनकी पढ़ाई को लेकर कोई विज्ञापन नहीं दिखाया जाता है। कहीं न कहीं यह पुरुष वर्चस्ववादी सोच का ही परिणाम है। उनमें पितृसत्तात्मक सोच साफ देखी जा सकती है। विज्ञापन में महिलाओं को दिखाया जाना गलत नहीं है, पर सवाल यह है कि महिलाओं को किस रूप में दिखाया जा रहा है।
हद तो तब हो जाती है, जब पुरुषों के बनियान और जांघिए तक में स्त्री को प्रदर्शित किया जाता है और किसी पुरुष की अंडरवियर को देख कर महिला उस पर मोहित हो जाती है। ऐसे में सवाल है कि क्या जिस स्त्री स्वरूप की हमारी संस्कृति में देवी से तुलना की गई है, वह अब इसी की हकदार बची है। दुर्गंधनाशकों के विज्ञापनों में तो अधनंगी स्त्रियां पुरुषों के साथ खास किस्म की कामुक मुद्रा में प्रस्तुत की जाती हैं।
इसका एकमात्र मकसद है, स्त्रियों के कामोत्तेजक हाव-भाव और सम्मोहक अंदाज के जरिए पुरुष दर्शकों को आकर्षित करना। मगर हम पैसे बनाने के लिए एक स्त्री की क्या छवि गढ़ रहे हैं, इस बात को क्यों भूल रहे हैं। सवाल उन नायिकाओं का भी है, जो ऐसे विज्ञापनों में काम सिर्फ पैसे की खातिर कर लेती हैं।
विज्ञापनों के संदर्भ में यूनिसेफ की रिपोर्ट में लैंगिक भेदभाव की बात कही गई है। विज्ञपनों में भले महिलाओं की मौजूदगी बहुत अधिक हो, लेकिन सवाल यही है कि उनके किस रूप को दिखाया जा रहा है। कोरोना काल ने न जाने कितनी महिलाओं का रोजगार छीन लिया। उन्हें घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा। पर किसी भी विज्ञापन कंपनी का ध्यान इस ओर नहीं गया।
ऐसा कोई विज्ञापन नहीं दिखा, जो महिला प्रताड़ना के खिलाफ हो, उनकी वास्तविक स्थिति दिखाता हो। यह कहना गलत न होगा कि आज तमाम विज्ञापन कंपनियां बने-बनाए ढर्रे पर चल रही हैं। महिलाओं को कामुक और सुंदर दिखाना ही उनकी प्राथमिकता में शुमार है। मोटरसाइकिल से लेकर सेविंग क्रीम तक के विज्ञापनों में महिलाओं को कामुक और पुरुषों के प्रति आकर्षण की वस्तु के रूप में दिखाया जाता है।
आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहां महिलाओं ने अपनी काबिलियत का लोहा न मनवाया हो। यहां तक कि देश की सुरक्षा जैसे कार्यों में भी वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। ऐसे में विज्ञापन कंपनियों को अपनी दोहरी मानसिकता से बाहर निकलना होगा। समाज में महिलाओं की स्वच्छ छवि को विज्ञापनों के माध्यम से दिखाना होगा। महिलाओं को भी आगे बढ़ कर उन विज्ञापन का विरोध करना होगा, जिनमें उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। खासकर उन अभिनेत्रियों को भी समझना होगा कि वे समस्त महिला जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं।