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फिल्म बिजनेस में भौगोलिक सीमाओं के भेद मिट गए
कोमल नाहटा का कॉलम:
जैसे लगना शुरू हुआ कि अब फिल्म इंडस्ट्री पटरी पर आ चुकी है कि कोरोना के नए वैरिएंट-ओमिक्रॉन ने ऐसा कहर ढाया कि सबसे पहले सरकारों ने अपने-अपने प्रांतों में सिनेमाघरों पर बंदिशें लगा दीं। इस सबमें मौत हुई फिल्म व्यवसाय की। कुछ समय बाद तो शायद इतिहास की किताबों में ऐसा छपना शुरू हो जाएगा कि कोविड-19 का ब्रीडिंग ग्राउंड सिनेमा और सिर्फ सिनेमा ही था।
खैर, जो भी हो, अब तो फिल्म इंडस्ट्री का कल्याण तब ही होगा, जब सिनेमा को कोविड के मामले में सबसे सॉफ्ट टारगेट नहीं बनाया जाएगा या फिर कोविड का भयानक रूप दुनिया से चला जाएगा। पहली बात नामुमकिन लगती है, दूसरी के लिए दुआ की जा सकती है! कोरोना की दहशत के रहते हए, फिल्म व्यवसाय ऐसे ही चलता रहेगा, कभी गरम-कभी नरम। इसकी वजह ये भी है कि जब सरकार सिनेमा पर रोक लगाती है, तब बिजनेस पर सीधा असर तो पड़ता है, मगर पब्लिक की साइकोलॉजी पर भी बहुत गहरा असर पड़ता है, जिसकी वजह से लोग घर से बाहर निकलकर कम से कम सिनेमा जाना तो कम कर ही देते हैं।
वैसे सच पूछो तो, इससे भयानक लॉकडाउन में केवल ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ही थे, जो निर्माताओं के लिए मसीहा बनकर आएं। अगर नेटफ्लिक्स, एमेजॉन जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म फिल्मों के लिए ज्यादा रुपए देकर उनके प्रीमियर राइट्स नहीं खरीदते तो फिल्मों के इन्वेस्टमेंट अटक जाते। ना सिर्फ फिल्म निर्माता के लिए बल्कि रिटायर्ड एक्टर्स के लिए भी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स वरदान हैं। वेब शोज और ओटीटी पर प्रीमियर होने वाली फिल्मों की खासियत ये है कि उनके सिर पर ओपनिंग शो और ओपनिंग डे या वीकेंड के लिए कलेक्शन का टेंशन नहीं होता है।
इसलिए, उनमें सेलेबल स्टार्स की जरूरत कम होती है। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर, बिकने वाले नाम से ज्यादा अहम होते हैं अच्छे कलाकार। यही कारण है कि हमें ओटीटी पर ऐसे कलाकारों के दीदार होते हैं जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री भुला चुकी थी। क्या सिनेमा बिजनेस को, इस कठिन समय को पार करने के लिए बदलना होगा? अरे भाई, सिनेमा बिजनेस बदल चुका है। आठ हफ्तों के बजाय फिल्में अब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सिनेमा में रिलीज़ के चार हफ्तों बाद ही आ जाती है।
इसकी वजह से लाखों लोग सिनेमा नहीं जाते हैं क्योंकि उन्हें चार हफ्तों का इंतजार ज्यादा नहीं लगता है। ये नुकसान सिनेमा मालिकों को परेशान कर रहा है। वैसे भी कई फिल्म निर्माता थिएटर्स बायपास करके फिल्में ओटीटी पर प्रीमियर कर रहे हैं। उन फिल्मों में तो थिएटर्स की कुछ भी कमाई नहीं हो पाती है। पर थिएट्रिकल रिलीज वाली फिल्मों में भी एक्सक्लूसिव थिएट्रिकल विंडो आधा होने से लगभग 10 से 15% आमदनी में कटौती हुई है।
अगर सूर्यवंशी चार के बजाय प्री कोविड दिनों की तरह, आठ हफ्तों बाद ओटीटी पर आती तो 225 करोड़ नेट कलेक्शन इकट्ठा कर पाती लेकिन अब 197-198 करोड़ पर रुक गई है। साल 2021 ने फिल्म इंडस्ट्री को बहुत सारे सबक सिखाए, जिनमें से एक ये भी था कि हॉलीवुड और साउथ की इंडस्ट्रीज़ कड़े स्पर्धी हैं। साल खत्म होते-होते, हॉलीवुड ने बॉलीवुड को पीछे छोड़ दिया क्योंकि 'स्पाइडरमैन...' बीते साल की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर रही।
केवल तीन हफ्तों में स्पाइडर मैन ने बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ रुपए से अधिक कलेक्शन बटोर लिया, जो सूर्यवंशी दो महीनों में नहीं कर सकी। तेगुलु फिल्म 'पुष्पा, द राइज पार्ट-1' का हिंदी डब्ड वर्जन भी ऐसा बिजनेस कर रही है कि उसके 18वें और 19वें दिन का ऑल इंडिया कलेक्शन 83 जैसी हिंदी फिल्म के 11वें और 12वें दिन के ऑल इंडिया कलेक्शन से बेहतर है। कहने का मतलब है कि अब फिल्म बिजनेस में भौगोलिक सीमाओं की से वजह से जो लाभ-हानि थे, वो मिट चुके हैं।
आज सलमान खान या आमिर खान की टक्कर सिर्फ उनके बीच की नहीं रही। अब उनके प्रतिस्पर्धी हॉलीवुड के टॉम हॉलैंड और तेलुगु फिल्मों के अल्लू अर्जुन भी हैं। सैटेलाइट चैनल्स और नेटफ्लिक्स-अमेजॉन ने पूरी दुनिया के स्टार्स को एक तरीके से एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर खड़ा कर दिया है। शायद यही वजह है कि आज ये अंदाजा लगाना मुश्किल हो चुका है कि साल 2022 की सबसे बड़ी फिल्म लाल सिंह चड्ढा, पठान या सर्कस होगी या तेलुगु इंडस्ट्री की आरआरआर या फिर हॉलीवुड की कोई और स्पाइडरमैन निकल आएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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