सम्पादकीय

आर्थिक नियमों का निरादर, पांव पसारती रेवड़ी संस्कृति और जनता के हितों की अनदेखी

Rani Sahu
15 Sep 2022 5:48 PM GMT
आर्थिक नियमों का निरादर, पांव पसारती रेवड़ी संस्कृति और जनता के हितों की अनदेखी
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सोर्स- Jagran

आगामी लोकसभा चुनाव में अभी समय है, लेकिन उसके लिए अभी से तैयारियां होती दिख रही हैं। ऐसा प्रायः होता है। लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश होने लगती है। अभी तक का अनुभव यही बताता है कि ऐसी कोशिश मुश्किल से ही सफल होती है। पता नहीं इस बार क्या होगा, लेकिन यह विचित्र है कि भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश कामयाब होने के पहले ही आर्थिक नियमों की अनदेखी करने वाली घोषणाएं की जाने लगी हैं।
कुछ दिनों पहले भाजपा विरोधी दलों को एक करने की मुहिम में जुटे एक नेता की ओर से यह कहा गया कि यदि 2024 में विपक्ष की सरकार बनी तो देश भर के किसानों को मुफ्त बिजली-पानी दिया जाएगा। अब इसी तरह की एक अन्य घोषणा यह की गई है कि देश के सभी पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा। प्रश्न यह है कि क्या देश की आर्थिक स्थिति सभी किसानों को मुफ्त बिजली-पानी देने अथवा समस्त पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने की अनुमति देती है? क्या पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देना उन राज्यों की अनदेखी करना नहीं होगा, जिन्होंने विकास के मामले में बेहतर काम करके दिखाया है
ध्यान रहे कि विभिन्न समितियों और वित्त आयोग की ओर से बार-बार यही कहा गया है कि राज्यों को विशेष आर्थिक पैकेज तो दिया जा सकता है, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा नहीं, क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो हर राज्य किसी न किसी आधार पर अपने लिए विशेष दर्जा चाहेगा। अतीत में जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, वे मुख्यतः दुर्गम इलाकों और कम जनसंख्या वाले पर्वतीय राज्य हैं।
निःसंदेह पिछड़े राज्यों को भी विकसित करने की आवश्यकता है, लेकिन यह काम केवल केंद्रीय सहायता और विभिन्न करों में में छूट से संभव नहीं। इसके लिए ऐसे राज्यों को अपने यहां ऐसा माहौल बनाना होगा, जिससे वहां उद्योग-धंधे पनप सकें और निवेशक आकर्षित हो सकें। यह काम तभी होगा, जब वित्तीय अनुशासन का परिचय देने के साथ उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर चला जाएगा। ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
यह ठीक नहीं कि जहां कुछ राज्य उद्योग-व्यापार के मामले में प्रतिस्पर्द्धा करने में लगे हुए हैं, वहीं कुछ अपनी आर्थिक स्थिति की अनदेखी कर रेवड़ी संस्कृति का सहारा ले रहे हैं। इनमें वे राज्य भी हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। क्या ये राज्य इससे परिचित नहीं कि इसी संस्कृति के कारण श्रीलंका की दुर्गति हुई? चूंकि राजनीतिक अथवा चुनावी लाभ के लिए आर्थिक नियमों की अनदेखी करना जनता के हितों को बलि लेना है, इसलिए उसे भी चेतना होगा।
Rani Sahu

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