सम्पादकीय

सीमा पर बढ़ा विवाद, चीनी सामानों का हो रहा बहिष्कार, फिर चीन से कैसे बढ़ रहा है आयात

Gulabi
18 July 2021 12:50 PM GMT
सीमा पर बढ़ा विवाद, चीनी सामानों का हो रहा बहिष्कार, फिर चीन से कैसे बढ़ रहा है आयात
x
बीते 2 वर्षों से एशिया के 2 बड़े देश भारत और चीन आपसी सीमा विवाद के चलते एक दूसरे के दुश्मन बन चुके हैं

बीते 2 वर्षों से एशिया के 2 बड़े देश भारत और चीन आपसी सीमा विवाद के चलते एक दूसरे के दुश्मन बन चुके हैं. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर स्थिति ऐसी है की एक छोटी सी झड़प अब दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात पैदा कर सकती है. लेकिन इन सबके बीच भारत से चीन का व्यापार घटने की बजाय बहुत तेजी से बढ़ा है. चीन से भारत का जब भी सीमा विवाद होता है तो देश में एक नारा सबसे पहले बुलंद होता है कि हम चीनी सामानों का बहिष्कार करेंगे. हालांकि, अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें मालूम होगा कि हमने बहिष्कार से ज्यादा उसे अपनाया है.


इसी साल जब एलएसी पर भारत और चीन के सैनिक आमने सामने खूनी संघर्ष कर रहे थे तब अप्रैल में ही भारत ने चीन से 65.1 लाख डॉलर का सामान आयात किया था, जो पिछले साल अप्रैल के मुकाबले लगभग दोगुने से ज्यादा है. सवाल उठता है कि एक तरफ जहां देश की सरकार भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर चीन से इतनी भारी मात्रा में सामान आयात करके भारत के आत्मनिर्भर बनने के सपने को चोट भी पहुंचाती है. भारत, चीन से इस वक्त सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम, कंप्यूटर हार्डवेयर और दूरसंचार उपकरण आयात कर रहा है.

इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत कब आत्मनिर्भर बनेगा
चीन पूरी दुनिया में आज सबसे मजबूत स्थिति में अगर कहीं है तो वह है इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, वहीं भारत इस क्षेत्र में अभी चीन से कहीं पीछे है. एशिया में चीन का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक बाजार भारत ही है, यही वजह है कि जब भी भारत चीन के व्यापार वाले पूंछ पर अपने पैर रखता है तो चीन छटपटा जाता है. वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि देश की कुल इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों की जरूरत का 40 फ़ीसदी हिस्सा चीन से आयात कर पूरा किया जाता है. यानि भारत में जितने फ़ीसदी इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों की आवश्यकता होती है उसका 40 फ़ीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि जहां भारत की निर्भरता चीन पर कम होनी चाहिए, वहीं साल दर साल यह निर्भरता और बढ़ ही रही है. 2020 में भारत 33.54 फ़ीसदी इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे चीन से आयात करता था, वहीं 2019 में 33.82 फ़ीसदी और 2018 में 33.90 फ़ीसदी आयात करता था.

सबसे अधिक एक्सपोर्ट के बाद भी चीन से भारत का व्यापारिक घाटा ज्यादा है
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पूरी दुनिया में जितना निर्यात किया, उसका 16.53 फ़ीसदी हिस्सा चीन से था. यह आंकड़ा बीते 12 सालों में सबसे ज्यादा है. यही वजह रही कि 2020-21 में चीन के साथ भारत का कुल व्यापार घाटा 44.12 अरब डॉलर का रहा. हालांकि देश के कुल व्यापार घाटे में चीन की हिस्सेदारी भी कम नहीं थी, लगभग 43 फ़ीसदी. भारत के व्यापार घाटे में चीन की इतनी बड़ी हिस्सेदारी बीते 4 वर्षों में पहली बार देखी गई. भारत ने साल 2021 में अपनी जरूरत का 63 फ़ीसदी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट चीन से आयात किया. जबकि पिछले साल यह हिस्सेदारी महज 26 प्रतिशत थी. यानी 2020-21 में कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स के आयात में चीन की हिस्सेदारी 52.3 फीसदी बढ़ी जो 2019-20 में महज़ 44 फ़ीसदी थी.

कुल मिलाकर देखा जाए तो भारतीय बाजार इस साल चीन के प्रोडक्ट्स से भरा रहा जिसमें घरेलू उत्पादों की भी हिस्सेदारी खूब देखी गई. वेक्यूम क्लीनर, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव जैसे चीन के घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद भारतीय बाजारों में छाए रहे.

चीन के जैसा प्रोडक्शन सिस्टम इतनी जल्दी खड़ा करना आसान नहीं है
चीन एक ऐसा देश है जो दुनिया भर को अपने यहां बनी जरूरत की चीजें मुहैया कराता है, जितने बड़े-बड़े कारखाने और प्रोडक्शन यूनिट चीन में स्थापित हैं उतने शायद ही पूरी दुनिया में किसी देश के पास हों. भारत के पास आत्मनिर्भर बनने का विजन और दृढ़ निश्चय ज़रूर है लेकिन फिलहाल उसके पास प्रोडक्शन के इतने बड़े-बड़े यूनिट नहीं है कि वह 130 करोड़ की आबादी वाली जनता की जरूरतों को पूरा कर सके. यही वजह है कि ना चाहते हुए भी भारत को चीन से सामान आयात करना पड़ता है, क्योंकि अगर भारत चीन से जरूरत की चीजें आयात नहीं करता है तो देश में इनकी कमी हो जाएगी और कीमतें आसमान छूने लगेंगी जिससे देश की जनता के साथ-साथ जीडीपी पर भी असर पड़ेगा. भारत आत्मनिर्भर जरूर बनेगा क्योंकि मौजूदा सरकार की नीतियां उसी ओर इशारा करती हैं. हालांकि अभी उसमें कुछ समय लगेगा तब तक के लिए हमें चीन के सहारे की जरूरत का सच स्वीकार करना होगा.

क्या हमारे पास चीन का कोई विकल्प मौजूद है
जब हम सीमा विवाद के बीच चीन से आयात बढ़ाते हैं तो जाहिर सी बात है सवाल उठेंगे ही कि हम ऐसा क्यों करते हैं? क्या हमारे पास चीन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है? जहां से हम अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें. जवाब है शायद नहीं! हम चीन के अलावा दक्षिण कोरिया, अमेरिका और जापान जैसे देशों की मदद जरूर ले सकते हैं. लेकिन उनकी भी इतनी क्षमता नहीं है कि वह भारत की 130 करोड़ आबादी की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसके साथ ही चीन जितने कम दामों में कोई चीज उपलब्ध कराता है उतने कम दामों में ना तो अमेरिका ना जापान ना साउथ कोरिया करा सकता है. यही वजह है कि भारत भले सीमा पर चीन से दो-दो हाथ कर रहा हो, लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से स्थिति आज भी कूटनीतिक रास्ते पर ही चल रही है.

यही वजह है कि हाल ही में हुए ताजिकिस्तान में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात में दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की बात हुई. शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ साफ शब्दों में चीन से कहा कि अगर एलएसी पर हमारे रिश्ते जल्द नहीं सुधरे तो यह भारत और चीन के संबंधों को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने लगेगा.

जब पूरी दुनिया कोरोना के कहर से परेशान थी तो चीन अपना प्रोडक्शन बढ़ा रहा था
चीन एक ऐसा देश बन चुका है जो किसी भी स्थिति में अपने व्यापार से समझौता नहीं करता है, कोरोनावायरस ने चीन से ही निकलकर पूरी दुनिया में तबाही मचाई, उसकी वजह से पूरी दुनिया में लॉकडाउन लगा, काम धंधे ठप हो गए फैक्ट्रियां बंद हो गईं लेकिन चीन इसके बावजूद भी आगे बढ़ता रहा. 'ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स' की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में जून तक चीन ने अपना प्रोडक्शन 8.3 फ़ीसदी बढ़ा दिया. वहीं जनवरी 2021 में जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत हो रही थी तब चीन में धड़ल्ले से मेडिकल उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट से लेकर हर चीज का प्रोडक्शन बढ़ रहा था. भारत आज भी कोरोना की लहरों के बीच घिरा हुआ है, जबकि चीन इससे उबर चुका है और वहां अब स्थिति सामान्य हो गई है.
Next Story