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- भ्रष्टाचार का रोग
Written by जनसत्ता; लोगों को समय के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता और जिनके पास सरकारी पद-प्रतिष्ठा है, वे अपनी छवि थोड़े लालच भाव में धूमिल करने में लगे रहते हैं! क्या इन लोगों को अपनी जमी-जमाई नौकरी, पद-प्रतिष्ठा व इज्जत का कोई भान नहीं? जिस तरह से वेतन होता है, उस तरह से कार्य तो शिथिल ही नजर आता है! बगैर डर-भय के हजारों-लाखों रुपए मिलने के बाद भी इनकी आत्मा को संतुष्टि नहीं मिलती। समझ से परे लगता है कि रिश्वतखोरी, गबन-घोटालों, और आर्थिक व अन्य पहलुओं से ये लोग नौकरी को दांव पर लगा देते हैं और उन्हें मलाल कुछ भी नहीं होता!
ऐसे लोगों की नकेल कसने के लिए कारगर और ठोस कदमों की जरूरत है। इन्हें निलंबित करने के बजाय सेवामुक्त करना चाहिए। न सिर्फ इन्हें जेल की सलाखों के पीछे धकेलना चाहिए, बल्कि सारी सुविधाए बंद होनी चाहिए! अक्सर रोजगार की तलाश में उच्च शिक्षित वर्ग निजी क्षेत्र में नौकरी में समय की महत्ता को समझते हुए भरसक मेहनत कर शिखर तक पहुंचता है। जबकि वेतनमान तुलनात्मक रूप से कम ही होता है। सरकारी नौकरी में अच्छा वेतन पाने के बाद भी बेईमानी की यह फितरत कर्मचारियों मे चिंतनीय है! भ्रष्टाचार की जड़ को खत्म करने के लिए नकेल कसना और समय-समय पर निरीक्षण, परीक्षण जरूरी है।
साल 2022 का वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट जारी हो चुकी है। इसमें मुख्य रूप से बताया गया है कि भारत की हालत पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी बदतर हो चुकी है। 121 देशों की रैंकिंग को लेकर जारी इस रिपोर्ट में भारत 107वें पायदान पर है, जबकि उसका पड़ोसी देश पाकिस्तान 99वें पायदान पर है। इस सूची में दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर स्थिति में श्रीलंका है। आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहे श्रीलंका को इस सूचकांक में 64वां स्थान दिया गया है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल 81वें स्थान पर, जबकि बांग्लादेश 84वें स्थान पर है।
इस पर भारत में सत्ता के समर्थक लोग यह तर्क दे रहे हैं कि जब श्रीलंका दिवालिया हो चुका है, उसके यहां मूलभूत खाद्यान्नों की भयंकर कमी हो गई है, तो श्रीलंका की स्थिति भारत से बेहतर कैसे हो सकती है। जबकि श्रीलंका का मसला बिल्कुल दूसरा है और वैश्विक भूख वाला सूचकांक को नापने का पैमाना बिल्कुल अलग है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की गणना तीन संकेतकों के औसत के रूप में की जाती है।
कुपोषित आबादी का अनुपात (अल्पपोषण), पांच साल से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का अनुपात, और बच्चों का पांच साल की उम्र से पहले मरना। इस पैमाने पर भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है, क्योंकि उसका ध्यान ऊपर के तरफ है कि कैसे भारत की अर्थव्यवस्था को पांच खरब डालर का बनाया जाए। भारत इसी बात से खुश है कि ब्रिटेन को पछाड़कर वह पांचवां सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था बन गया है। मगर जमीनी स्तर पर गरीबी और भुखमरी की तरफ उसका ध्यान गया ही नहीं।