सम्पादकीय

भारत की खोज: गांधी का गंगौर– भारतीय देहात का महासागर

Gulabi Jagat
18 April 2022 2:09 PM GMT
भारत की खोज: गांधी का गंगौर– भारतीय देहात का महासागर
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भारत की खोज
जब साहित्य पढ़ो, पहले पढ़ो ग्रंथ प्राचीन,
पढ़ना हो विज्ञान अगर तो पोथी पढ़ो नवीन.
-रामधारी सिंह 'दिनकर'
ओलापुर-गंगौर का भूगोल उसके इतिहास से मेल खाता था. गांव की चौहद्दी बड़ी दिलचस्प हुआ करती थी. बल खाती बूढ़ी गंडक के किनारे लम्बा बसा गांव, बीच से गुजरती एक कच्ची सड़क. आबादी के ठीक बीच में एक ठाकुरवाडी, जहां घुसने के पहले हमें दंडवत सरकार कहकर महंत जी को साष्टांग प्रणाम करना पड़ता था.
गांव की शुरुआत में शराब की कलारी और ताड़ीखाना था. शाम को गाछी गुलजार हो जाती थी. जब पहली दफा मैला आंचल पढ़ा तो लगा, इस्स, रेणु कहीं मेरे गांव के बारे में ही तो नहीं लिख रहे रहे हैं:
तीन आने लबनी ताड़ी,
रोक साला मोटरगाड़ी.
गांव के आखिरी छोर पर एक खास जाति के कुछ ऐसे घर आबाद थे, जहां लोग रात के अंधेरे में ही जाया करते थे. उन्ही घरों में से एक का बालक मिडिल स्कूल में हमारा सहपाठी था. उसकी मदद से सारे बच्चों ने क्लास में ही कोकशास्त्र पढ़ लिया था, वह भी सचित्र.
रात का खजाना
अगर इस भूमिका से गांव के बारे में आपकी धारणा गलत बन रही हो, तो थोड़ा थम जाइये. गांव के बीचो-बीच एक लाइब्रेरी थी. खपरैल की छत वाला एक विशाल कमरा, जिसकी लकड़ी की अलमारियों में किताबें ठूसी हुई थीं. गांव वालों ने आपस में चंदा करके उस पुस्तकालय को खड़ा किया था. किसी ने बांस दिया, किसी ने पेड़. किसी ने खपरैल दिया तो किसी ने ईंट.
वैसे लोग जिनके पास अपने दो हाथों के अलावा कुछ भी नहीं था, उन्होंने भी मदद की. गरीब, अनपढ़ लोग – ऐसे लोग जिन्हे मालूम था कि वे लाइब्रेरी में कभी घुस भी नहीं पाएंगे. उन्होंने गैंती-कुदाल उठाकर नींव खोदी, मिट्टी के गिलाबे पर ईंटें जोड़ी, छप्पर छाने में मदद की, किताबें रखने के लिए लकड़ी की अलमारियां और अध्ययन के लिए कुर्सी टेबल बनाए, खिड़की-दरवाजा लगाया और चारों तरफ बांस की सुंदर जाफरी खड़ी कर फूल के पौधे रोपे. ऐसे बना वह पुस्तकालय!
शाम को लालटेन की रोशनी में वह खजाना खोला जाता था. वहीं मेरी मुलाकात पाइप पीने वाले सेक्सटन ब्लैक से लेकर ऐय्यारों के ऐय्यार भूतनाथ से हुई. राहुल सांकृत्यायन से लेकर प्रेमचंद और यशपाल से लेकर कृष्ण चंदर एमए जैसे लोगों से वहीं परिचय हुआ. गांधी, नेहरु तो थे ही, टॉलस्टॉय और टैगोर भी वहां मौजूद थे.
गंगौर आसपास के गांवों से काफी बड़ा था. सड़क और बिजली भले न हो, पर हाईस्कूल था, जहां सारे पडोसी गांवों के बच्चे पढ़ने आते थे. स्कूल की खपरैल भले बारिश में टपकती हो, पर उसकी प्रयोगशाला में बीकर भी था, रसायन भी और उनके साथ एक्सपेरिमेंट सिखाने वाले मास्साब भी.
कार्नवालिस की कचहरी
गांव का मिजाज सामंती था. हम अपने उस चाचा पर भी गर्व करते थे जो अपनी लठैती, पहलवानी और 7 फुटे शरीर के बल पर इलाके में डकैतियां डालने के लिए विख्यात थे. पर अपने गोतिया-फरिक में उन्हे शरीफ माना जाता था क्योंकि गांव में वे किसी को परेशान नहीं करते थे. खगड़िया-बेगूसराय की पट्टी पुलिस वालों के बीच क्राइम बेल्ट के रूप में कुख्यात है. उनके प्रताप से दूर-दूर तक के गैंग हमारे गांव की ओर फटक भी नहीं सकते थे. लठैत चाचा का जितना खौफ था, उतनी ही इज्जत थी!
गांव के एक कोने में एक कचहरी थी, जहां से सरसों के पीले खेत भी दिखते थे और नदी भी. अमरीका से लड़ाई में बुरी तरह हारने के बाद लॉर्ड कार्नवालिस (1738-1805) को भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज फैलाने के लिए भेज गया था. उन्होंने जमींदारी प्रथा लागू की और कंपनी बहादुर की हुकुमत में ऐसी कचहरियों का जाल बिछाया. जमींदार और हाकिम लगान और दूसरे टैक्स वसूल करने के लिए वहां अपनी इजलास लगाया करते थे.
इस गांव के बारे में लिखते हुए मैं कभी अपने आप को परती परिकथा के परानपुर में, कभी आधा गांव के गंगौली में तो कभी राग दरबारी के शिवपालगंज में पाता हूं. चारों गांव बुरी तरह गड्ड मड्ड हो जाते हैं.
तो, फणीश्वर नाथ रेणु, राही मासूम रजा और श्रीलाल शुक्ल का सुमिरन करते हुए भारतीय देहात के महासागर के बीचों बीच बसे इस गांव के सफर पर आप को लिए चलते हैं. इस बहाने पिछले 75 साल में गंगा-पट्टी में आए सामाजिक-आर्थिक बदलाव पर भी हम लगे हाथ एक नजर डाल लेंगे. साथ में कुछ भूले-बिसरे किस्से और सभी रसों में सबसे सर्वश्रेष्ट, बतरस का मजा.
अगले सप्ताह: कंसार-कथा…

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

एनके सिंह वरिष्ठ पत्रकार
चार दशक से पत्रकारिता जगत में सक्रिय. इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक भास्कर में संपादक रहे. समसामयिक विषयों के साथ-साथ देश के सामाजिक ताने-बाने पर लगातार लिखते रहे हैं.
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