सम्पादकीय

कब्जों का खुलासा करें

Triveni
18 Dec 2022 1:32 PM GMT
कब्जों का खुलासा करें
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फाइल फोटो 

अमरीका ने भारत सरकार से कुछ सेटेलाइट तस्वीरें साझा की हैं कि चीन एलएसी के सरहदी इलाकों में किस तरह बुनियादी ढांचे का विस्तार कर रहा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अमरीका ने भारत सरकार से कुछ सेटेलाइट तस्वीरें साझा की हैं कि चीन एलएसी के सरहदी इलाकों में किस तरह बुनियादी ढांचे का विस्तार कर रहा है। उसने भारत-भूटान-चीन सीमा पर 9-10 किलोमीटर अंदर एक बस्ती बनाई है। हालांकि यह भूटान के एक गांव की ज़मीन पर बनाई गई है। सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए खुलासा हुआ है कि चीन सिक्किम के पास एक गांव में अच्छा-खासा निर्माण कर रहा है। हालांकि चीन अब सिक्किम को भारत का हिस्सा मानता है। डोकलाम में भी चीनी सेना का जमावड़ा बढ़ाया जा रहा है। एलएसी के आसपास चीनी सेना किस तरह हथियारों की तैनाती कर रही है, इसके मद्देनजर भी अमरीका ने भारत को सचेत किया है। इन हलचलों के बावजूद रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध के कोई आसार नहीं हैं। चीन औसतन 300-400 बार सालाना घुसपैठ करने की रणनीति पर काम करता रहा है। आज भी 43-45,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि चीन के कब्जे में है। केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ने एक सवाल के जवाब में संसद को अवगत किया था कि भारत की करीब 43,180 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर चीनी कब्जा है, लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता अनुमा आचार्य और ओवैसी की पार्टी के नेता वारिस पठान के ऐसे बयान हास्यास्पद हैं कि चीन भारतीय सीमा में 1000 किमी. तक अंदर घुस आया है।

फिर भी हम अपेक्षा करेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी या रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह देश को यह स्पष्ट करें कि 2014 के बाद चीन कितनी ज़मीन पर और कहां-कहां हमारी सीमा के अंदर घुसा है। इसे राजनीतिक प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं। कमोबेश इसमें कुछ भी रणनीतिक गोपनीयता निहित नहीं है। देश प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री के खुलासे पर भरोसा करेगा, बेशक विपक्ष कुछ भी दावे करता रहे अथवा आरोप चस्पां करता रहे। इसी दौरान जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हवा में एक बयान उछाल दिया है कि एलएसी पर हमारे सैनिकों को पीटा जा रहा है और उन्हें पलटवार करने की इज़ाज़त नहीं है। महबूबा का यह बयान बिल्कुल गलत और संदर्भ से कटा हुआ है। महबूबा न कभी रक्षा मंत्रालय में रही हैं और न ही सैनिकों की समर्थक रही हैं। वह तो पाकपरस्त सियासतदां हैं। ऐसे बयान माहौल को उकसा सकते हैं और भारत की अपमानजनक छवि दुनिया में पेश कर सकते हैं, लिहाजा ऐसे बयान पर सेना के पूर्व जनरलों की तल्ख प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। बल्कि ऐसे खुलासे सामने आए हैं कि हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन के कुछ सैनिकों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी, लिहाजा चीनियों को दुम दबाकर भागना पड़ा।
वैसे हम ऐसे हिंसक टकराव की सम्यक पुष्टि नहीं कर सकते, क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने कोई अधिकृत खुलासा नहीं किया है। बहरहाल रक्षा विशेषज्ञों ने यह भी माना है कि चीन अपनी फितरत से मज़बूर है, लिहाजा तवांग जैसी हरकतें फिर करेगा, बार-बार करता रहेगा। चीन जापान के कुछ द्वीपीय स्थानों पर भी कब्जा करने की फिराक में है। हालांकि जापान ने पुरजोर विरोध कर चीन के मंसूबे नाकाम कर दिए हैं। भारत, जापान के अलावा, 25 देश ऐसे हैं, जिनके साथ चीन के भूमि विवाद और समुद्री सीमा पंगे हैं। उनमें रूस भी शामिल है, जिसे चीन अपना मित्र देश मानता रहा है। बहरहाल मौजूदा टकराव के अलावा, चीन के होश फाख्ता हो सकते हैं, जब आसमान में वह भारतीय वायुसेना के युद्धाभ्यास की गर्जनाएं सुनेगा। यह युद्धाभ्यास 15-16 दिसंबर को असम, अरुणाचल और बंगाल के एयरस्पेस में किया जा रहा है। राफेल, सुखोई-30 सरीखे लड़ाकू विमान, शिनुक, अपाचे जैसे हेलीकॉप्टरों को उड़ते देख चीन को थाह मिल सकती है कि भारतीय सेना की ताकत कितनी विराट और सशक्त है। प्रधानमंत्री से आग्रह है कि इस मुद्दे को बेवजह तूल नहीं देना चाहिए और आगे बढक़र जो खुलासे किए जा सकते हैं, उन्हें कर दिया जाए। संसद में हररोज़ हंगामा देश की छवि के लिए उचित नहीं है।


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