सम्पादकीय

आपदा में राहत

Subhi
24 Sep 2021 12:45 AM GMT
आपदा में राहत
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आखिरकार केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा है कि कोविड से हुई मौतों के मामले में आश्रितों को पचास हजार रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।

आखिरकार केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा है कि कोविड से हुई मौतों के मामले में आश्रितों को पचास हजार रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। यह व्यवस्था केवल अब तक हुई मौतों पर नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाली मौतों पर भी लागू होगी। राहत कार्य में लगे लोगों के लिए भी मुआवजा दिया जाएगा। कोरोना की दूसरी लहर के वक्त जब संक्रमितों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा था और विभिन्न अध्ययनों से पता चला कि बहुत सारे परिवारों के कमाने वाले सदस्य अपनी जान गंवा चुके हैं, अनेक बच्चे अनाथ हो गए हैं, उनका भरण-पोषण मुश्किल हो गया है, तब सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई थी कि कोविड से मरने वालों के आश्रितों को चार लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए।

मगर तब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना जैसी आपदा राष्ट्रीय आपदा में नहीं आती, इसलिए सरकार के लिए इस तरह का कोई मुआवजा देना संभव नहीं है। उस पर सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश सुनाया था कि महामारी कानून के मुताबिक पीड़ित लोगों को मुआवजा देना राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन का दायित्व है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि कोविड से मरने वालों के आश्रितों को आार्थिक सहायता देने के बारे में छह हफ्ते के भीतर दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। उसी संबंध में केंद्र सरकार ने यह हलफनामा दायर किया है।
किसी आपदा की वजह से लोगों का जीवन संकट में पड़ जाए या बड़े पैमाने पर लोगों के सामने गुजर-बसर की समस्या उत्पन्न हो जाए, तो कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य बनता है कि वह अपने नागरिकों को ऐसी मुसीबतों से पार पाने में मदद करे। इसी मकसद से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया था। उसमें प्राकृतिक आपदाओं की एक सूची तैयार की गई थी।
मगर कोरोना जैसी बीमारियों से बड़े पैमाने पर होने वाली मौतों का उसमें उल्लेख नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार ने उन नियमों का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया था। मगर कोई भी नियम-कायदा स्थायी नहीं होता, परिस्थितियों के अनुसार उनमें बदलाव किए ही जाते हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की जिम्मेदारी रेखांकित की। छिपी बात नहीं है कि कोविड की वजह से लाखों लोगों की मौत हो गई और उसमें बहुत सारे परिवार उजड़ गए। बड़े पैमाने पर लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए। अनेक बच्चे अनाथ हो गए। जिनकी पढ़ाई-लिखाई रुक गई, उनका भरण-पोषण मुश्किल हो गया। ऐसे लोगों को उनकी हालत पर नहीं छोड़ा जा सकता।
अब सरकार ने मुआवजे की रकम तो तय कर दी है, पर अड़चनें फिर भी बनी हुई हैं। हालांकि इतने कम पैसे से गुजारे का साधन तलाशना आसान नहीं होगा, फिर भी अगर यह रकम समय पर मिल जाती तो पीड़ितों को सहारा मिलता। यह रकम उन तक कब तक पहुंचेगी, देखने की बात है। सबसे बड़ी अड़चन इसमें यह आने वाली है कि कोरोना से हुई मौतों का सही-सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। अनेक राज्य सरकारों पर आरोप है कि उन्होंने मौतों के आंकड़े छिपाए। बहुत सारे लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर मौत का कारण कोरोना दर्ज ही नहीं किया गया।
फिर ऐसे गरीब लोगों की संख्या भी काफी है, जिन्होंने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों के दौरान कोरोना से हुई अध्यापकों की मौतों को लेकर वहां की सरकार का रुख पता ही चल गया था। ऐसे में राज्य सरकारें मुआवजे की रकम अदा करने में कितनी संजीदगी दिखाएंगी, कहना मुश्किल है। इसलिए इसे लेकर व्यावहारिक पैमाने की अपेक्षा अब भी बनी हुई है।


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