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मार्केटिंग उपभोक्ता की जरूरत बनाने और उसे पूर्ण करने का काम करता है
प्रोफेसर राजेश ननरपुरा : मार्केटिंग उपभोक्ता की जरूरत बनाने और उसे पूर्ण करने का काम करता है। इसके लिए मार्केटिंग के व्यक्ति को इस बात की सलाह दी जाती है कि वह उपभोक्ता की दिख रही और छिपी हुई जरुरतों को पहचानें। इसके लिए उसे मार्केट रिसर्च एक्टिविटी करने का परामर्श दिया जाता है। एक बार उपभोक्ता की जरुरत मालूम पड़ने के बाद मार्केटिंग प्रोफेशनल को कंज्यूमर की आवश्यकता को संतुष्ट करते प्रोडक्ट और सर्विस को पूरा करना होता है। अगर कंज्यूमर की आवश्यकता बेहतर कूलिंग की है तो मार्केटिंग प्रोफेशनल को उसे उत्कृष्ट कूलिंग सॉल्यूशन मुहैया कराना होता है। अगर एक संस्थान अपने प्रतिस्पर्द्धियों के मुकाबले बेहतर करने में सफल होता है तो संस्थान की उम्मीदें और आकांक्षाएं बढ़ जाती हैं। इससे कई संस्थानों को फायदा मिलता है। इसमें एक खामी देखने को मिलती है कि कंज्यूमर की जरूरत को उसकी सुविधा से जोड़ दिया जाता है।
बहुत पीछे न जाएं तो हम पहले किराना स्टोर में थम्सअप पीते थे और ग्लास बोतल को दोबारा इस्तेमाल के लिए वापस कर देते थे। बाद में उपभोक्ता की जरुरत बदली और लोग घरों में सॉफ्ट ड्रिंक रखने लगे जिसकी वजह से प्लास्टिक बोतल में यह ड्रिंक आने लगा। अच्छी रूम कूलिंग के लिए एयरकंडीशन चलन में आ गए। नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि इसने उपभोक्ता की सुविधा को बढ़ाया। लेकिन एक सवाल जो कभी नहीं पूछा जाता है वह यह कि यह सुविधा किस कीमत पर आई। समुद्रों में बढ़ता प्लास्टिक, लैंडफिल साइट, ओजोन लेयर का पतला होना इस बात का सुबूत है कि हमारी प्राथमिकताएं किस कदर बदली हैं।
एक दौर ऐसा था जब लगता था कि पृथ्वी के संसाधन अथाह हैं। ज्ञान का अभाव होने की वजह से हम इनका दोहन करते रहे। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि हमारे भूतकाल के कामों ने हमें किस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। मार्केटर्स को इसे सुधारने के लिए सस्टेनेबल सॉल्यूशन तलाशने होंगे। मार्केटिंग माइंडसेट में बदलाव करना होगा। इसके लिए नए प्रोडक्ट डेवलपमेंट, विज्ञापन, कीमत और गठबंधन पार्टनर प्रक्रिया में सुधार करना होगा। मार्केटिंग प्रोफेशनल को स्थाई फायदों पर अधिक जोर देना होगा। इससे हमने पर्यावरण को लेकर बीते समय में जो गलतियां की हैं उसे सुधार सकते हैं।
इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि कंज्यूमर नए इनोवेशन का आकलन करते समय सुविधा देने वाले फायदों को प्राथमिकता दें। कंज्यूमर के माइंडसेट और आकांक्षाओं में बदलाव लाने के लिए आवश्यक है कि उसे को-क्रिएशन की प्रक्रिया में शामिल किया जाए। नए और बदले हुए प्रोडक्ट लाने के दौरान बिजनेस इस बात को कम ही जेहन में रखते हैं कि इससे पर्यावरण को किस तरह की क्षति पहुंचेगी। मार्केटर्स को इस मामले में आगे बढ़कर कदम उठाना होगा। अब प्रश्न उठता है कि क्या वे उठाएंगे?
(इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, उदयपुर में मार्केटिंग के प्रोफेसर हैं। वह आईआईएम उदयपुर में कंज्यूमर कल्चर लैब शुरू करने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं। यह पहल करने वाला आईआईएम उदयपुर एकमात्र स्कूल है)
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