सम्पादकीय

आपदा : असम की बाढ़ है खतरे की घंटी, मौसम के पूर्वानुमान के हिसाब से पहले ही कर लेनी चाहिए तैयारी

Rani Sahu
6 July 2022 8:47 AM GMT
आपदा : असम की बाढ़ है खतरे की घंटी, मौसम के पूर्वानुमान के हिसाब से पहले ही कर लेनी चाहिए तैयारी
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असम के दरांग जिले के बासाचुबा गांव के लोग पहले मई और फिर जून में दो बार भयंकर बाढ़ से बेघर हो गए। अगर जुलाई में फिर इसी तरह से बारिश हुई

सुबीर भौमिक

सोर्स- अमर उजाला


असम के दरांग जिले के बासाचुबा गांव के लोग पहले मई और फिर जून में दो बार भयंकर बाढ़ से बेघर हो गए। अगर जुलाई में फिर इसी तरह से बारिश हुई, तो दरांग के गांवों में तीन महीने में फिर तीसरी बार बाढ़ आ सकती है। मौसम के पूर्वानुमान में जुलाई के अंत में भारी बारिश की आशंका व्यक्त की गई है, ऐसे में पूरे असम के ग्रामीण लोग सबसे बुरी स्थिति न आने के लिए केवल प्रार्थना कर सकते हैं।

दरांग वह जिला है, जहां ब्रह्मपुत्र नदी की कई सहायक नदियां भूटान से नीचे बहती हैं और नदी की मुख्यधारा में मिल जाती हैं। बासाचुबा के ग्रामीणों ने बताया कि कई दिनों तक बारिश होने से सहायक नदियों के दोनों किनारों पर तटबंध टूट गए, इससे दोनों तरफ के गांव डूब गए। एक ग्रामीण मृणमयनाथ बताते हैं, 'गांव के ऊंचे इलाकों में भी घुटनों तक पानी भर गया। चार-पांच दिनों से पीने का पानी नहीं है क्योंकि नलकूप पानी में डूबे हुए हैं। यहां तक कि शौचालय भी पानी में डूब गए।'
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, असम की मौजूदा बाढ़ ने 181 लोगों की जान ले ली और 32 जिलों में करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए। कई जगहों पर गांवों को नदियों की बाढ़ से बचाने के लिए बनाए गए तटबंध टूट गए। ग्रामीणों पर यह आरोप लगा कि दक्षिणी असम में बराक नदी के खतरे के निशान पर पहुंचने के साथ उन्होंने अपने गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए बेथुकांडी बांध के एक बड़े हिस्से को काट दिया। इससे बराक नदी के तटबंध में बड़ा छेद हो गया और असम का दूसरा सबसे बड़ा शहर सिलचर बाढ़ की चपेट में आ गया।
सिलचर के निवासियों ने कहा कि शहर पूरे 18 दिनों तक कमर तक पानी में डूबा रहा। 83 साल के रंजीत नंदी ने कहा, 'हमने कई बाढ़ देखी है, लेकिन 70 साल में ऐसी बाढ़ नहीं देखी। लगभग एक सप्ताह तक न बिजली थी, न पीने का पानी, न भोजन।' असहाय आबादी को पानी की बोतल एवं खाने के पैकेट उपलब्ध कराने के लिए कछार जिला प्रशासन को भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर की मदद लेनी पड़ी।
पुलिस ने बताया कि महिषा बील के निवासियों ने बराक नदी से अतिरिक्त पानी निकालने के लिए बेथुकांडी में तटबंध तोड़ दिया था। जल संसाधन विभाग के कार्यकारी अभियंता देबब्रत पाल ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने सिलचर में बाढ़ वाले इलाके में जाकर लोगों की तकलीफों को समझने की कोशिश की और जिला पुलिस को तटबंध काटने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
निरंतर भारी बारिश के कारण लोगों को कोई राहत नहीं है। राज्य में 19 जून, 2022 तक 53.4 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई। जून के पहले 12 दिनों में कुल 528.5 मिलीमीटर बारिश हुई, जो 109 प्रतिशत अधिक थी। पृथ्वी के सबसे नम क्षेत्र मेघालय में जून में 1,215.5 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई, नतीजतन 185 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। भारी बारिश के चलते असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और अंत में मणिपुर में भयंकर भूस्खलन हुआ, जिसमें दर्जनों प्रादेशिक सेना के जवान और स्थानीय ग्रामीण दब गए।
मणिपुर में हुए भूस्खलन में मरने वालों की संख्या अब 27 हो गई, और 40 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने इस अभूतपूर्व बारिश और बाढ़ के बाद पूर्वोत्तर में विनाशकारी भूस्खलन को दुर्लभ घटना बताया है। उन्होंने कहा कि प्रशांत क्षेत्र में ला नीना और हिंद महासागर में एक नकारात्मक द्विध्रुवीय संयोजन ने बंगाल की खाड़ी में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने वाली हवाओं को मजबूत किया है।
बंगाल की खाड़ी में ये तेज मानसूनी हवाएं अब पहले से कहीं अधिक नमी ला सकती हैं। बढ़ते तापमान के साथ वायुमंडलीय नमी की मात्रा बढ़ जाती है, क्योंकि गर्म हवा लंबे समय तक अधिक नमी रखती है। इसलिए अब हम जो भारी मात्रा में वर्षा देखते हैं, वह जलवायु परिवर्तन के कारण हो सकती है। असम का अधिकांश हिस्सा बाढ़ से बचाव के लिए नदी के तटबंधों पर निर्भर है। लेकिन मई में तटबंध टूट गए और ठेकेदारों द्वारा जल्दबाजी में बनाए गए तटबंध जून में भारी बारिश के दौरान फिर से टूट गए।
जिन कंपनियों को सरकार द्वारा ठेके दिए जाते हैं, उन्हें बार-बार तटबंध टूटने से लाभ हुआ। 19 जून, 2022 की असम राज्य आपदा प्रबंधन बाढ़ रिपोर्ट के अनुसार, असम के 20 जिलों में कुल 297 तटबंध टूट गए, जिनमें से 33 केवल दरांग जिले में हैं। इससे लाखों लोगों को ब्रह्मपुत्र या बराक जैसी उग्र नदी से कोई वास्तविक सुरक्षा नहीं मिली। सबसे बुरी बात है कि असम के दस प्रतिशत जिला प्रशासन ने अपनी आपदा प्रबंधन योजना (डीडीएमपी) को अद्यतन नहीं किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि डीडीएमपी को अद्यतन करने और उसे व्यावहारिक रूप से लागू करने से बाढ़ के बेहतर प्रबंधन में मदद मिल सकती है। विभिन्न कारणों से असम में बार-बार बाढ़ आने का खतरा रहता है। पहला, उच्च अवसादन और खड़ी ढलानों के कारण असम से गुजरते हुए ब्रह्मपुत्र नदी बेतरतीब ढंग से बहती है। दूसरा, असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ अन्य हिस्सों में बार-बार भूकंप आने का खतरा होता है, जो भूस्खलन का कारण बनता है।
बार-बार भूकंप और भूस्खलन से नदियों में भारी मलबा आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप नदी में गाद भर जाती है। तीसरा, असम ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के आसपास तट कटाव का भी सामना कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार, असम में लगभग 8,000 हेक्टेयर भूमि कटाव के कारण नष्ट हो गई है। तट कटाव के कारण ब्रह्मपुत्र नदी की चौड़ाई 15 किलोमीटर तक बढ़ गई है। चौथा, असम में बाढ़ के मानव निर्मित कारणों में पहाड़ियों पर स्थित बांधों से पानी छोड़ना भी शामिल है।
पांचवां, इस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना कटोरे की तरह है, जिसके चलते क्षेत्र में जलभराव हो जाता है। बाढ़ से बचाव के लिए क्या किया जाना चाहिए? सरकार को जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ नदियों का भी अध्ययन कराना चाहिए। नदी को बेहतर तरीके से समझने के लिए जल प्रवाह की जानकारी जनता के साथ साझा की जानी चाहिए। यह जानकारी चीन ने भारत के साथ साझा की है। बारिश का बेहद सटीक पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए, ताकि तैयारी में मदद मिल सके। जिलों को अपनी आपदा प्रबंधन योजना को निरंतर अद्यतन करना चाहिए।
Rani Sahu

Rani Sahu

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