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- आफत का तूफान
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। तमिलनाडु के तटीय इलाकों में चक्रवाती तूफान 'निवार' का वेग बड़ा नुकसान पहुंचाने के पहले कमजोर हो गया, लेकिन इसके पूरी तरह शांत पड़ जाने का अंदाजा लगा कर लापरवाही बरतना शायद एक खराब फैसला होगा। प्रकृति का चक्र ऐसा है कि उसमें अचानक आई हलचल के बारे में पहले से पूरी तरह पता नहीं लगाया जा सकता।
फिर भी समुद्री तूफानों को लेकर पिछले कुछ समय से मौसम वैज्ञानिकों ने करीब-करीब सही अंदाजा लगाना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि अब समुद्री तूफानों की वजह से नुकसानों को कम करने की कोशिशें संभव हो पा रही हैं। 'निवार' को लेकर भी जो आकलन सामने आए थे, उसी वजह से पुदुचेरी और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों के दो लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। बचाव के इन्हीं पूर्व इंतजामों की वजह से बड़ी तादाद में लोगों को बचाया जा सका। फिर भी तमिलनाडु में तीन लोगों की जान चली गई। पुदुचेरी में व्यापक जलभराव हो गया और बहुत सारे पेड़ गिर गए, तेज हवा के साथ भूखलन के दौरान बिजली की आपूर्ति बाधित हुई।
निश्चित रूप से भूकम्प, चक्रवात, बरसात और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सकता, लेकिन उससे बचने के इंतजाम जरूर किए जा सकते हैं। दुनिया भर में ऐसे उदाहरण आम रहे हैं जिनमें समय-पूर्व संकेत मिल जाने के बाद समुद्री तूफानों से बचाव के इंतजाम किए गए और लाखों लोगों को बचा लिया गया।
भारत में भी ओड़ीशा के तटीय इलाकों में आने वाले तूफानों से तबाही किसी आम घटना की तरह थी। लेकिन 1999 में सुपर साइक्लोनिक तूफान वहां के तटीय किनारों से ढाई सौ किलोमीटर से भी ज्यादा रफ्तार से टकराया था और उसमें समूचे राज्य में भारी तबाही हुई थी। दस हजार से ज्यादा लोग और साढ़े चार लाख से ज्यादा जीव-जंतु मारे गए। उस आपदा के बाद ओड़ीशा ने सबक लिया और ऐसे तूफानों से लड़ने के बजाय उससे बचाव के मोर्चे पर ध्यान केंद्रित किया।
नतीजा यह सामने है कि इसी साल मई में जब 'अम्फान' नामक समुद्री तूफान ओड़ीशा और पश्चिम बंगाल के तटीय किनारों से टकराया तो उसमें ओड़ीशा में एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई, जबकि पश्चिम बंगाल में अस्सी लोगों की जान चली गई। इससे पहले चक्रवाती तूफान 'बुलबुल' के खतरनाक होने के बावजूद ओड़ीशा में किसी की जान नहीं गई।
'फानी' के दौरान भी सरकार ने दस लाख लोगों को तूफान के खतरे से बचाया था। जाहिर है, समुद्री और खतरनाक चक्रवाती तूफानों से बचाव के मामले में ओड़ीशा के आपदा प्रबंधन को एक उदाहरण की तरह देखा जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं को वैसे भी मनचाहे तरीके से रोका नहीं जा सकता है। लेकिन उसकी प्रकृति और नुकसान पहुंचाने की क्षमता का अध्ययन करके उससे बचाव के उपाय किए जा सकते हैं।
भूकम्प के सटीक पूर्वानुमानों तक पहुंचना अभी बाकी है, लेकिन समुद्री चक्रवाती तूफानों के मामले में दुनिया भर में विज्ञान के संसाधनों के जरिए करीब-करीब सही अंदाजा लगा लिया जाता है। अब तूफान आने के कुछ दिन पहले ही इसकी तीव्रता और नुकसान पहुंचाने की क्षमता के बारे में आकलन कर लिया जाता है।
समुद्र तटीय क्षेत्रों में मछुआरों सहित इसकी जद में आने वाले तमाम लोगों और रिहाइशी इलाकों में सावधान रहने की चेतावनी सहित जरूरतमंद लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया जाता है। तूफान के समय बिजली के तार गिरने से भी मौतें होती थीं। अब ऐसे वक्त में बिजली काट देना एक उपाय है। इस तरह के साधारण कदमों से नुकसान के अनुपात को काफी कम किया जा सकता है।