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अफगानिस्तान के हालात पर इनकी चिंता भारत से मेल खाती
यह भारतीय कूटनीतिक कामयाबी ही कही जायेगी कि जिस समय इस्लामाबाद में इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी के सदस्य देशों की अफगानिस्तान के मुद्दे पर बैठक हो रही थी उसी दिन भारत में आयोजित सम्मेलन में मध्य एशिया के पांच इस्लामिक देश भाग ले रहे थे। दरअसल, दिल्ली में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अध्यक्षता में आयोजित तीसरे भारत-मध्य एशिया डायलॉग में उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान व कजाखस्तान के विदेश मंत्रियों ने शिरकत की। वे इस्लामाबाद जाने के बजाय दिल्ली सम्मेलन में पहुंचे। इस सम्मेलन में जहां मध्य एशिया के इन देशों के बीच व्यापार संबंधी व क्षेत्रीय जुड़ाव पर बात हुई, वहीं अफगानिस्तान के मुद्दे पर गंभीर विमर्श हुआ। उल्लेखनीय है कि इन पांच देशों में से तीन ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान से लगती है।
अफगानिस्तान के हालात पर इनकी चिंता भारत से मेल खाती है। इस सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में भारत ने इन पांचों देशों के साथ एक सुर में कहा कि बदले हालात में अब अफगानिस्तान की धरती का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिये नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही मानवीय संकट से जूझ रहे अफगानिस्तान की भरपूर मदद की जाये। निस्संदेह भारत समेत इन देशों की क्षेत्रीय सुरक्षा को अफगानिस्तान में तालिबान के आने से खतरा उत्पन्न हुआ है।
इन पड़ोसी देशों के व्यापार पर भी प्रभाव पड़ा है। दरअसल, अफगानिस्तान से अमेरिका व नाटो संगठन की वापसी के बाद तालिबान कब्जा होने से भारत की गंभीर भूमिका नहीं रह गई थी। एक वजह यह कि तालिबान पाक के गहरे प्रभाव में है और पाक नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका हो। लेकिन भारत ने कूटनीतिक प्रयासों से इस दिशा में अपनी भूमिका के लिये जगह बनाने का प्रयास किया है।
उल्लेखनीय है कि दस नवंबर को भी इन मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों का भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में दिल्ली सम्मेलन हुआ था। महत्वपूर्ण यह कि इसमें रूस और ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी मौजूद थे।
दरअसल, भारत की सोच रही है कि वह मध्य एशिया के देशों से संबंध बेहतर करके अफगानिस्तान में अपने कूटनीतिक हितों का पोषण कर पायेगा। इसमें भारत के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह के जरिये मध्य एशिया के इन देशों से जुड़ाव का लक्ष्य भी शामिल है, जिसमें इन देशों में आपसी व्यापार के लिये मालवाहक गलियारा बनाने पर सहमत होना भी शामिल है।
अच्छी बात है कि भारत की चिंताओं में शामिल इन देशों ने अफगानिस्तान में पनप रहे आतंकवाद पर कारगर कार्रवाई पर सहमति जतायी। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रावधानों के अनुरूप अफगान धरती को आतंकवाद की उर्वरा भूमि बनाने से रोकने के सभी आवश्यक कदम उठाने पर बल दिया गया। वहीं भारत समेत इन देशों के विदेश मंत्रियों ने सहमति जतायी कि जहां अफगानिस्तान की संप्रभुता व अखंडता की रक्षा होनी चाहिए, वहीं सभी अल्पसंख्यक समूहों की भागीदारी वाली समावेशी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हो, जिसमें महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित हो। प्रयास हो कि अफगानिस्तान में मानवीय अधिकारों का सम्मान किया जाये।
तालिबान सरकार बनने के बाद अफगानिस्तान की धरती से नशे के कारोबार फलने-फूलने पर चिंता जताते हुए इस पर रोक के लिये सख्त प्रयास करने की जरूरत बतायी गई। सभी सहमत थे कि नये अफगानिस्तान में यूएन की प्रभावी भूमिका हो। वक्त आ गया है कि मानवीय संकट को दूर करने के लिये तुरंत मदद पहुंचाई जाये। साथ ही जातीय अल्पसंख्यकों, महिलाओं व बच्चों के हितों को संरक्षण मिले। निस्संदेह, पाक को इस बात की परेशानी होगी कि इस्लामाबाद में चालीस साल बाद हुए इस्लामिक देशों के सम्मेलन के समांतर भारत ने मध्य एशियाई देशों के सम्मेलन के जरिये कुछ बढ़त तो हासिल कर ली है। निस्संदेह, जनवरी में होने वाले मध्य एशिया-भारत सम्मेलन के बाद यह मुहिम और विस्तार लेगी।
वहीं इस्लामाबाद में हुई ओआईसी की बैठक में पारित 31 मुद्दों वाले संकल्पपत्र में भी अफगानिस्तान में पनप रहे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने व मानवीय सहायता पहुंचाने पर बल दिया गया।
दैनिक ट्रिब्यून
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