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यूक्रेन के शहर सूमी में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स मंगलवार को वहां से कामयाबी के साथ निकाल लाए गए। उन्हें बसों में बिठाकर यूक्रेन के अपेक्षाकृत सुरक्षित शहरों की ओर ले जाया गया, जहां से ऑपरेशन गंगा के तहत चलाए जा रहे विमानों के जरिए स्वदेश लाया जाएगा। जिन प्रतिकूल हालात में तमाम मुश्किलों के बीच इन 694 स्टूडेंट्स को बचाकर लाया जा रहा है, उसके लिए भारतीय विदेश मंत्रालय और यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों की तारीफ करनी होगी। सूमी यूक्रेन के उन कुछेक शहरों में शामिल है, जहां युद्ध की सबसे ज्यादा मार पड़ रही है। स्वाभाविक ही वहां फंसे स्टूडेंट्स खुद को सबसे ज्यादा घिरे हुए महसूस कर रहे थे। बाहर निकलना तो खतरे से खाली नहीं ही था, बंकरों या कमरों में बंद रहना भी इसलिए मुश्किल था क्योंकि इससे खाना और पानी की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही थी। एक बार तो वह घड़ी भी आई, जब हर तरफ से लाचार ये स्टूडेंट्स पैदल ही निकल पड़े कि चाहे बम या मिसाइल हमलों में जान चली जाए, पर देश लौटने की कोशिश जरूर करेंगे। बड़ी मुश्किल से भारतीय दूतावास अधिकारी उन्हें समझा-बुझाकर वापस लौटने को राजी कर सके। चूंकि यह शहर रूसी सीमा से करीब है, इसलिए युद्धविराम के बगैर इन स्टूडेंट्स को वहां से सुरक्षित नहीं निकाला जा सकता था। जब रूस ने युद्धविराम की घोषणा की, तब भी इन्हें निकालने का एक प्रयास नाकाम हो गया क्योंकि इन्हें रूस की सीमा से होकर जाने देने के लिए यूक्रेन राजी नहीं था।
इससे पता चलता है कि युद्ध के हालात में छोटी-छोटी बातें भी कितनी बड़ी बाधा बन जाती हैं। बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद पहल करते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत की और तब जाकर इन स्टूडेंट्स को वहां से निकालने की ऐसी योजना बन सकी, जिस पर सभी पक्ष सहमत हुए। ऑपरेशन गंगा का यह सबसे कठिन हिस्सा था, जो सफलतापूर्वक पूरा हुआ। हालांकि अब भी कई भारतीय यूक्रेन के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं। उनके लिए रूस और यूक्रेन की सहमति से मानव गलियारा बनाया गया है। विदेश मंत्रालय ने ऐसे सभी भारतीयों से अपील की है कि मानव गलियारा का फायदा उठाते हुए जो भी साधन उपलब्ध हों, उनसे सुरक्षित क्षेत्रों में आ जाएं। युद्ध है ही ऐसी चीज जिसका सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों को उठाना पड़ता है, जो उसके लिए सबसे कम जिम्मेदार होते हैं। और जो सबसे ज्यादा मजबूर, सबसे ज्यादा लाचार होते हैं। घर-परिवार से दूर किसी अनजान देश में पढ़ने गए स्टूडेंट्स इसी श्रेणी में आते हैं। अच्छी बात यह है कि भारत सरकार न केवल इन स्टूडेंट्स के साथ खड़ी रही बल्कि असाधारण कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए इन सबको सुरक्षित अपने देश ले भी आई। इस सफल अभियान से दुनिया भर में फैले एनआरआई समुदाय में भी एक नया आत्मविश्वास भरा है कि किसी भी संकट की स्थिति में उनका देश उनके साथ खड़ा रहेगा।
नवभारत टाइम्स