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राजनेता खेल के मैदान में जाना पसंद नहीं करते और ना ही खेल पर कोई चर्चा करते हैं
ज्योतिर्मय रॉय साधारणतः राजनेता खेल के मैदान में जाना पसंद नहीं करते और ना ही खेल पर कोई चर्चा करते हैं. नतीजतन, जब 2022 बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक के राजनयिक बहिष्कार की आवाज सुनाई देती है, तो यह मान लेना स्वाभाविक है कि इसके पीछे जरूर कोई खेल है, एक ऐसा खेल जो खेल के मैदान से दूर खेला जा रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की है कि उनका देश बीजिंग ओलिंपिक का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार करेगा. यानि ना तो वह और ना ही सरकार से जुड़ा कोई शख्स इसमें शामिल होगा. उनकी टिप्पणी की घोषणा के तुरंत बाद, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम ने भी अपने राजनयिकों को बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक में भाग नहीं लेने की घोषणा की. अभी तक कोई भी देश सीधे बहिष्कार समूह में शामिल नहीं हुआ है. हालांकि, हमें आश्चर्य नहीं होगा यदि हम कुछ देशों को बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक के बहिष्कार की घोषणा करते हुए देखें, जहां शीतकालीन खेल आयोजित नहीं होते हैं. आखिर यह गुटबाजी का खेल है, राजनीति समीकरण का खेल है.
विश्व बाजार में चीन की बढ़ती मौजूदगी से अमेरिका चिंतित
अमेरिका पिछले कुछ समय से चीन को लेकर चिंतित है. विश्व बाजार में बढ़ती आर्थिक शक्ति के रूप में चीन की मौजूदगी अमेरिका के लिए चिंता का विषय है. इसका मुख्य कारण सोवियत संघ के पतन के बाद से पिछले तीन दशकों में, संयुक्त राज्य अमेरिका निर्विरोध 'विश्व प्रभुत्व' के खेल में शामिल रहा है, और आज इस खेल में एक नए प्रतिद्वंद्वी के अचानक उभरने से अमेरिका के विश्व शक्ति खेल को बर्बाद होने की संभावना है. इसके लिए किसी भी तरह से इस नई संभावना को उभरने से रोकना होगा.
रूडयार्ड किपलिंग ने विश्व नियंत्रण को थामे रखने के लिए दुनिया को सभ्य बनाने के शाही ब्रिटेन के प्रयास को 'व्हाइट मैन्स बर्डन' अर्थात 'गोरे आदमी का बोझ' कहा. ऐसा लगता है कि अमेरिका ने अब यह जिम्मेदारी ली है. इसलिए इस नए युद्ध में हथियार के रूप में बंदूक नहीं, बल्कि मानवाधिकार और लोकतंत्र को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
चीन लोकतांत्रिक राज्य नहीं है. बीजिंग खुद यह दावा नहीं करता कि लोकतंत्र देश की मूल नीति है. फिर भी, चीन ने पिछले चार दशकों में देश के लोगों को आर्थिक प्रगति के लाभों का आनंद लेने के लिए जो अवसर प्रदान किया है, वह भी कई लोकतांत्रिक देशों में देखने को नहीं मिलेगा. दूसरी ओर, आर्थिक सफलता ने चीन को और अधिक आत्मनिर्भर बना दिया है. एक ओर, बीजिंग अब विकासशील देशों को उदारतापूर्वक ऋण दे कर और अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाकर, विश्व राजनीति के क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करने की कोशिश कर रहा है. यह अब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की सिरदर्द का कारण बनता जा रहा है. वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि चीन अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अग्रणी खिलाड़ी न बने.
चीन पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप
यही कारण है कि पिछले एक दशक में, पश्चिमी सरकारें और साथ ही उन देशों में मीडिया बीजिंग के मानवाधिकारों के हनन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इनकार के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना के बारे में मुखर रही है. चीन अपनी बढ़ती सैन्य शक्ति और मजबूत आर्थिक स्थिति के कारण अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद को हवा दे रहा है. चीन अपनी 'विस्तारवाद नीति' के कारण आक्रामक हो गया है. इसलिए सैन्य शक्ति के मामले में चीन को दबाव में रखने के लिए 'क्वाड' समेत कुछ सैन्य गठबंधन बनाने की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है. भू-राजनीतिक वर्चस्व को लेकर विश्व स्तर पर खेल चल रहा है. बीजिंग ओलिंपिक पर पश्चिम का अचानक हमला भी खेल का एक अलग हिस्सा है.
एक चीनी महिला टेनिस खिलाड़ी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप ट्विटर पर सामने आने के बाद विवाद खड़ा हो गया. अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाख ने एक लाइव ऑनलाइन चैट में टेनिस स्टार से पुष्टि की कि महिला सुरक्षित और स्वस्थ है. फिर भी, अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (IOC) के अध्यक्ष के दिये गए बयान के तुरंत बाद ओलिंपिक के बहिष्कार का मुद्दा सामने आया. 'स्टेटिस्टा' के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में बलात्कार के 1,26,430 मामले दर्ज किए गए. इस आंकड़े में बलात्कार करने के प्रयास और हमले भी शामिल हैं, लेकिन जबरन वैधानिक बलात्कार और अन्य यौन अपराधों को इस आंकड़ों में सम्मिलित नहीं किया गया है.
संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने ओलिंपिक के राजनयिक बहिष्कार के पक्ष में दो तर्क दिया है. एक चीनी महिला टेनिस स्टार के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप और दूसरा दक्षिण पश्चिम चीन के शिनजियांग प्रांत में मुस्लिम अल्पसंख्यक उइगर आबादी के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
पश्चिमी गठबंधन का कहना है कि चीन में इस तरह के मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए ओलिंपिक का बहिष्कार करने की जरूरत है. तर्क दिया जा रहा है कि यह खेल मदन का बहिष्कार नहीं, बल्कि कूटनीतिक बहिष्कार है. हालांकि, खेलों में कूटनीतिक बहिष्कार जैसी कोई बात नहीं है. ऐसा क्यों नहीं लगता है कि एक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है. कोई भी अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन खेल से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय संघों द्वारा आयोजित किया जाता है, दुनिया के सभी देश आमतौर पर उन संघों के सदस्य होते हैं. जैसा की फुटबॉल के क्षेत्र में विश्व कप के आयोजन की जिम्मेदारी फीफा की होती है. प्रत्येक देश का फ़ुटबॉल महासंघ फीफा का सदस्य है, न कि उन देशों के राजनीतिक या राजनयिक नेता. सदस्य विश्व कप के आयोजन स्थल से लेकर कार्यक्रम तक सब कुछ आपसी चर्चा से तय करते हैं.
चूंकि ओलिंपिक या विश्व कप समग्र अर्थों में विश्व स्तरीय आयोजन हैं, इसलिए किसी भी देश के राजनीतिक या राजनयिक नेताओं को खेलों में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से आमंत्रित नहीं किया जाता है, हालांकि इसके अपवाद भी हैं. उदाहरण के लिए, विश्व कप फाइनल के दिन, आयोजन में भाग लेने के लिए अगले मेजबान देश की सरकार या राज्य के प्रमुख को आमंत्रित करने की प्रथा है. ओलिंपिक खेलों में भी इन्हीं नियमों का पालन किया जाता है.
इसके अलावा अन्य तरीकों से प्रतियोगिता के आयोजन से जुड़े देशों के नेताओं को भी इस तरह के आयोजनों में आमंत्रित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने आमंत्रित अतिथि के रूप में दक्षिण कोरिया में 2018 शीतकालीन ओलिंपिक के उद्घाटन समारोह में भाग लिया था. उन्हें 2020 ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक के मेजबान देश जापान की सरकार का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया था. अगर किसी दूसरे देश का नेता ओलिंपिक में शामिल होना चाहता है, तो वे इसे सहजता से कर सकते हैं, लेकिन एक आमंत्रित अतिथि के रूप में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत पहल पर. नतीजतन, अगर कोई नेता जो खुद से जुड़ना चाहता है, अचानक कहता है, मैं वहां नहीं जाऊंगा, क्योंकि मैं उस घटना का बहिष्कार कर रहा हूं – वह तर्क मान्य नहीं है.
बहिष्कार के बाद भी कोई भी राष्ट्र ओलिंपिक में भाग ले सकता है
राजनयिकों या राजनीतिक नेताओं को विभिन्न विश्व स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अधिकार नहीं माना जा सकता क्योंकि वे एक ही पैटर्न का पालन करते हैं. बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक को लेकर अमेरिकी नीति निर्माता वही गलती कर रहे हैं. ओलम्पिक का समग्र बहिष्कार, निश्चित रूप से यह एक सरकार का निर्णय है. उस स्थिति में, कोई भी एथलीट अपने हाथों में देश के झंडे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा. हालांकि वे बहिष्कार के आह्वान से बच सकते हैं और अपने देश के ओलिंपिक या किसी अन्य खेल संघ का झंडा लेकर खेलों में भाग ले सकते हैं, जैसा कि 1980 के मास्को और 1984 लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में देखा गया था.
फ्रांस पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह कैबिनेट के एक सदस्य के नेतृत्व में बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक में भाग लेगा. ध्यान दें कि 2024 के ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक पेरिस में आयोजित किए जाएंगे और इसीलिए फ्रांसीसी नेतृत्व को 2022 शीतकालीन ओलिंपिक में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है. जर्मनी सहित नाटो के कुछ अन्य सदस्यों ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे क्या करने जा रहे हैं.
दूसरी ओर, एशिया में अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी जापान ने कहा है कि कोई भी कैबिनेट सदस्य बीजिंग ओलिंपिक में भाग नहीं लेने के बाद भी वह जापानी ध्वज के साथ देश के ओलिंपिक संघ के प्रमुख के तहत एक शीतकालीन ओलिंपिक टीम बीजिंग भेजेगा. हालांकि, दक्षिण कोरिया ने अपने अन्य एशियाई सहयोगियों से अलग रुख अपनाते हुए कहा है कि वह बीजिंग ओलिंपिक के राजनयिक बहिष्कार पर विचार नहीं कर रहा है. खेलों को हमेशा राजनीति से दूर रखा गया है, लेकिन शक्तिशाली देशों ने कई मामलों में इस तरह के आह्वान का जवाब अपने फायदे के लिए दिया है. चूंकि यह जटिल अंतरराष्ट्रीय स्थिति को बढ़ा सकता है और खेल के समग्र विकास में भी बाधा डाल सकता है, इसलिए खेल को खेल भावना से खेलने में भलाई है.
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