सम्पादकीय

कूटनीति : यूरोप को साधने में सफल रहे मोदी, परंतु युद्ध को समस्या का समाधान नहीं मानता भारत

Neha Dani
4 May 2022 1:53 AM GMT
कूटनीति : यूरोप को साधने में सफल रहे मोदी, परंतु युद्ध को समस्या का समाधान नहीं मानता भारत
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इस यूरोपीय कबड्डी में 'नाराज दोस्तों को' साधने की कोशिश की है। इसका परिणाम यूक्रेन युद्ध समाप्त होने या उसके बाद नजर आएगा।

यदि कूटनीति की तुलना कबड्डी मैच से की जाए, तो अब प्रतिद्वंद्वी पक्ष के खेमे में घुसने की भारत की बारी है। यूक्रेन में रूसी कार्रवाई की निंदा करने से नई दिल्ली के इनकार से नाराज विश्व नेताओं की प्रतिक्रिया के बाद भारत ने हमले को वापस मोड़ दिया है और वह भी यूरोपीय महाद्वीप के केंद्र में, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अपनी धरती पर पहली बार इतना लंबा संघर्ष देख रहा है। भारत की ओर से कप्तान के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में उतरे हैं, वह भी अपनी शैली में।

अपनी 65 घंटे की यात्रा के दौरान उन्होंने यूरोपीय नेताओं के साथ 25 बैठकें की, जिसमें यात्रा और विश्राम का भी समय शामिल है। यह यात्रा कई यूरोपीय देशों के नेताओं की भारत यात्रा की पृष्ठभूमि में हुई है, जिसमें यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन भी शामिल हैं, जिन्होंने आक्रामक रूस के खिलाफ एक आम मोर्चा बनाने की ऐतिहासिक जरूरत पर जोर दिया था। भारत ने उनकी बातें धैर्यपूर्वक सुनीं। मोदी ने रूसी पक्ष के आकलन के लिए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की भी अगवानी की।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत ने स्पष्ट कहा है कि युद्ध समाधान नहीं है। कूटनीति ही केवल इसका व्यावहारिक विकल्प होना चाहिए। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में न केवल पश्चिमी भागीदार देशों, बल्कि जापान और ऑस्ट्रेलिया के बढ़ते दबाव के सामने भी तटस्थता बनाए रखी। पिछले दो महीनों में भारत को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की पूरी तरह निंदा करने और प्रतिबंध झेलने के लिए तैयार रहने के गंभीर राजनयिक दबावों का सामना करना पड़ा है, जिसमें मॉस्को के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करना शामिल है।
अगर भारत रूसी हथियार खरीदता है, तो 44 अन्य देश भी लेते हैं। अगर भारत को रूसी तेल मिलता है, तो उसके बड़े खरीदार यूरोप में हैं और मोदी ने उनमें से सबसे बड़े देश जर्मनी का दौरा किया है। मोदी ने नाराज यूरोपीय देशों से रिश्ते बेहतर करने का कठिन काम हाथ में लिया है, जो चाहते हैं कि भारत रूस की जमकर निंदा करे और रूस के साथ व्यापार करना बंद कर दें, विशेष रूप से सस्ता तेल, जो आमतौर पर यूरोप में उपलब्ध है। इस नाराजगी में व्यावसायिक ईर्ष्या भी शामिल है।
दूसरी चीज रूसी हथियार है, जिसे लेकर यह मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है कि रूस से ही क्यों, हमसे हथियार क्यों नहीं खरीदते? मगर कूटनीति का पूरी तरह से इस्तेमाल करते हुए मोदी ने न केवल यूरोपीय लोगों के गुस्से और आहत भावना को शांत करने की कोशिश की है, बल्कि उनके साथ द्विपक्षीय व्यापार पर बात करने की भी पर्याप्त इच्छाशक्ति दिखाई है। उनकी टीम में कूटनीतिक बात करने के लिए विदेशमंत्री एस. जयशंकर और व्यापार/आर्थिक पक्ष को मजबूत करने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य मंत्री शामिल हैं।
उन्होंने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज से मुलाकात की और छठे भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श की सह-अध्यक्षता की। जर्मनी में नौ द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें हरित ऊर्जा साझेदारी और सतत विकास शामिल हैं। ये दोनों मुद्दे जलवायु परिवर्तन चिंताओं को संबोधित करते हैं। यात्रा शुरू होते ही नए विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने संकेत दिया कि भारत अपने सतर्क रुख पर कायम रहेगा और रूस की निंदा नहीं करेगा।
उन्होंने यह कहते हुए कि हम हिंसा बंद करने का आह्वान कर चुके हैं, आगे कहा कि भारत ऐसे रुख को निरर्थक मानता है, जो समाधान न दे सके। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी इस बात पर जोर दिया था। उन्होंने यूक्रेन मामले पर भारत की ज्यादा आलोचना करने के बजाय पुतिन को निजी तौर पर आगाह करने के लिए अपने 'खास दोस्त' मोदी की पीठ थपथपाई। इंदिरा गांधी ने भी ब्रेझनेव के साथ अपनी दोस्ती का इस्तेमाल अफगानिस्तान पर उन्हें सावधान करने के लिए किया था और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने 2003 में इराक पर हमले के खिलाफ बुश प्रशासन को समझाया था।
यह अलग और दुखद बात है कि भारत की बेहतर समझ का उपयोग आक्रमणकारियों द्वारा ठीक से नहीं किया गया, जिन्होंने आपदाओं को जन्म दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी में ठीक ही कहा कि यूक्रेन युद्ध में कोई भी देश विजयी नहीं हो सकता। लेकिन अमेरिका अडिग है। मोदी के यूरोपीय दौरे पर जाने के बाद भी, अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने सत्तारूढ़ डेमोक्रेट सांसदों के दबाव को झेलते हुए भारत पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।
यूरोपीय यात्रा शुरू करने से एक दिन पहले, मोदी ने अटलांटिक महासागर के पार कनाडा को एक दार्शनिक संदेश भेजा, जो वास्तव में यूक्रेन को रूस से लड़ने में मदद करने के लिए घातक हथियार स्थानांतरित कर रहा है। मोदी ने कनाडा के मार्खम में सनातन मंदिर सांस्कृतिक केंद्र में वीडियो लिंक के माध्यम से कहा, 'भारत दूसरों की कीमत पर खुद के उत्थान का सपना नहीं देखता है और देश की प्रगति से पूरी मानवता का कल्याण जुड़ा है।' इस साल यह प्रधानमंत्री मोदी की पहली विदेश यात्रा है।
बर्लिन से मोदी कोपेनहेगन गए, जहां उन्होंने डेनमार्क, आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन और नॉर्वे के प्रधानमंत्रियों के साथ दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में भारतीय टीम का नेतृत्व किया। यूक्रेन युद्ध के अलावा, मोदी एक बदलते या बदले हुए यूरोप का दौरा कर रहे हैं। फ्रांस में, इमानुएल मैक्रों फिर से चुने गए हैं। लौटते वक्त मोदी ने मैक्रों से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया और द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की।
राष्ट्रपति मैक्रों ने बातचीत के बाद हिंदी में ट्वीट किया, आज की बातचीत से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गति मिलेगी। हम ठोस परिणामों की दिशा में मिलकर काम करना जारी रखेंगे, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में। इसका जवाब प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रेंच में ट्वीट कर दिया, हमारी बातचीत विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के इर्द-गिर्द केंद्रित रही। इस प्रकार भारत ने इस यूरोपीय कबड्डी में 'नाराज दोस्तों को' साधने की कोशिश की है। इसका परिणाम यूक्रेन युद्ध समाप्त होने या उसके बाद नजर आएगा।

सोर्स: अमर उजाला

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