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- राजनय और झुंझलाहट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले दिनों जारी अमेरिकी एनजीओ फ्रीडम हाउस और स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टिट्यूट की रिपोर्टों को सिरे से खारिज कर दिया। यह तो खैर कोई बड़ी बात नहीं है, पर पिछले कुछ समय से विदेशों में हो रही आलोचना को लेकर सरकार के रुख में जो एक किस्म की झुंझलाहट दिख रही है, उसके कारणों पर समय रहते विचार किया जाना चाहिए। फ्रीडम हाउस की सालाना रिपोर्ट में भारत का दर्जा फ्री (स्वतंत्र) से घटाकर पार्टली फ्री (आंशिक रूप से स्वतंत्र) कर दिया गया है। लगभग इसी तर्ज पर वी-डेम इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब इलेक्टोरल डेमोक्रेसी नहीं रहा, यह इलेक्टोरल ऑटोक्रैसी यानी चुनावी तानाशाही में बदल चुका है। निश्चित रूप से ये बड़े निष्कर्ष हैं जो अधिक तथ्यों, गंभीर अध्ययन और जिम्मेदार बहस की मांग करते हैं। इन सबके अभाव में इन निष्कर्षों की विश्वसनीयता पर यूं भी पूरी दुनिया में सवाल उठेंगे और भारत सरकार की भूमिका इतनी ही हो सकती है कि वह इस वितंडावाद को उचित मंचों पर तथ्यों के जरिये खारिज करे।