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Written by जनसत्ता; ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच रिश्तों को नया आयाम देने की दिशा में किसी महत्त्वपूर्ण कदम से कम नहीं है। दोनों देश एक दूसरे के लिए कितने मददगार और उपयोगी हैं, यह बात जानसन की इस यात्रा से रेखांकित हुई है। शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जानसन की जिन मुद्दों पर स्पष्टता के साथ बात हुई, उससे यह और साफ हो गया कि आने वाले दशक में दोनों देश एक दूसरे के लिए काफी कुछ करने वाले हैं। वैसे भी भारत और ब्रिटेन ने जो 'रोडमैप 2030' बनाया है, उसमें दोनों देशों के दीर्घकालिक पारस्परिक हितों की झलक साफतौर पर दिखाई देती है।
इसलिए भारत-ब्रिटेन रक्षा गठजोड़ और मुक्त व्यापार समझौते जैसे मुद्दे काफी अहम बने हुए हैं। यही वजह है कि दोनों नेता रक्षा क्षेत्र में मजबूत गठजोड़ बनाने को राजी हुए। इसमें कोई संदेह नहीं कि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत ब्रिटेन सहित दुनिया के कई देशों से सामान खरीदता है। इसलिए ब्रिटेन भारत को रक्षा सामान के एक बड़े बाजार के रूप में भी देख रहा है। फिर भारत की सुरक्षा चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ऐसे में ब्रिटेन का भी हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल से जुड़ने का फैसला भारत के लिए तो फायदेमंद ही है।
दरअसल, वैश्विक पटल पर भारत की भूमिका जिस तेजी से बढ़ी है, उसे देखते हुए ब्रिटेन भारत की अहमियत समझ रहा है। वैसे भी यूरोपीय संघ से अलग हो जाने के बाद ब्रिटेन के लिए भारत की महत्ता ज्यादा बढ़ गई है। ब्रिटेन में भारतीयों की संख्या भी खासी है। भारतीय मूल के लोग वहां वित्त और गृह मंत्री जैसे पद पर हैं। एक लाख से ज्यादा भारतीय छात्र वहां पढ़ रहे हैं। ब्रिटेन को भारत कई तरह का सामान निर्यात करता है।
इस वक्त दोनों देशों के बीच व्यापार सोलह अरब डालर से ज्यादा का है। इन्हीं सब बातों और हितों को ध्यान में रखते हुए जानसन ने भारतीय पेशेवरों खासतौर से आइटी पेशेवरों के लिए वीजा देने की नीति को उदार बनाने का संकेत भी दिया है। गौरतलब है कि पिछले साल ब्रिटेन की सरकार ने जितने प्रशिक्षित पेशेवरों को वीजा दिए थे, उनमें चालीस फीसद भारतीय ही थे। फिर भारतीय कंपनियां वहां हरित प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र में भारी निवेश कर रही हैं। जाहिर है, पारस्परिक आर्थिक और कारोबारी हित ही दोनों देशों के रिश्तों की नई मंजिल तक ले जाएंगे।
गौरतलब है कि ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में तेजी से काम चल रहा है। इसकी पहल पिछले साल मई में हुई थी। शुक्रवार को बातचीत में बड़ा फैसला यह हुआ कि इस साल के आखिर तक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाए। हालांकि इससे पहले अंतरिम व्यापार समझौते को अमली जामा पहनाने पर जो सहमति बनी है, उससे साफ है कि निर्यात बढ़ाने और व्यापार साझेदारी मजबूत करने की दिशा में दोनों ही देश अब और देर नहीं चाहते।
बोरिस जानसन की भारत यात्रा ऐसे मुश्किल भरे दौर में हुई है जब रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दुनिया दो खेमों में बंट गई है और भारत ने इस मुद्दे पर तटस्थता की नीति अपनाई है। ब्रिटेन रूस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। जानसन यह भी भलीभांति समझते ही हैं कि रूस और भारत के रिश्ते कैसे और कितने पुराने हैं! यह बात उन्होंने कही भी। इसीलिए इस मुद्दे पर भारत को खटकने वाली कोई बात नहीं कर उन्होंने यह संदेश दिया है कि हमारे रिश्तों की बुनियाद कारोबारी और आर्थिक हित ही हैं।