सम्पादकीय

लक्ष्मण रेखा की गरिमा : शक्ति संतुलन के लिए संविधान में है सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों का बंटवारा

Neha Dani
6 May 2022 1:49 AM GMT
लक्ष्मण रेखा की गरिमा : शक्ति संतुलन के लिए संविधान में है सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों का बंटवारा
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अधिकारों का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसले की पहल करे, तो करोड़ों मुकदमों के बोझ से समाज और देश को राहत मिल सकती है।

पिछले दिनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मलेन में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने लक्ष्मण रेखा की बात की थी। न्यायाधिकरण में नियुक्ति के मामले में बहस के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा था कि संविधान में सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों का बंटवारा है, इसलिए नीतिगत मामलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस सम्मलेन में लंबित मामलों और जेलों में बंद बेगुनाह कैदियों के दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस हुई।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि पिछली कॉन्फ्रेंस 2016 में हुई थी, तब 2.61 करोड़ लंबित मामलों के निपटारे के लिए जिला अदालतों में 24,112 जज थे। अब छह साल बाद जिला अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 55 फीसदी बढ़कर 4.1 करोड़ हो गई, लेकिन जजों की संख्या में सिर्फ 16 फीसदी वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जिला जजों की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर जेलों में बंद 3.5 लाख से ज्यादा विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई के लिए ठोस प्रयास होने चाहिए।
जेलों में बंद लोग पुरातन कानूनी व्यवस्था या पुलिस ज्यादती के शिकार हैं, पर इसके लिए अदालतों की ज्यादा जवाबदेही है। लाखों बेगुनाह मुकदमों में विलंब या जमानत नहीं मिलने की वजह से जेलों में बंद हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 में बराबरी और 21 में सभी को जीवन का अधिकार हासिल है। जेलों में बंद अधिकांश विचाराधीन कैदियों को (जो गरीब, अशिक्षित और वंचित वर्ग के हैं) जल्द रिहाई का सांविधानिक हक है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला दिया है।
प्रेमिका की हत्या के आरोप में गलत अभियोजन के कारण एक डॉक्टर को 13 साल जेल में काटना पड़ा, जिससे उसका जीवन तबाह हो गया। अदालत ने उसकी आजीवन कारवास की सजा रद्द करते हुए, तीन महीने के भीतर उसे 42 लाख रुपये का मुआवजा देने और भुगतान में विलंब होने पर नौ फीसदी ब्याज देने का आदेश दिया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा जारी 90 हजार नोटिसों को वैध ठहराते हुए इलाहाबाद, बंबई, कोलकाता, दिल्ली, मद्रास और राजस्थान हाई कोर्ट के अनेक फैसलों में बदलाव कर दिया।
अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है, जिससे देश भर में चल रहे नौ हजार मुकदमे खत्म हो जाएंगे। जब टैक्स मामलों में सुप्रीम कोर्ट अपने विशिष्ट अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती है, तो फिर लाखों लोगों के जीवन और उनके परिवार के कल्याण के लिए ऐसा आदेश क्यों नहीं दिया जा सकता? गिरफ्तारी होने पर बेल नियम और जेल अपवाद है। वंचित वर्ग को न्याय देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश पारित किए हैं, तो फिर विचाराधीन कैदियों के मामलों में भी वह ऐसा कर सकती है।
उसके तहत समयबद्ध तरीके से जेलों में बंद सभी कैदियों के मामलों के रिव्यू और रिहाई के लिए जिला जजों की जिम्मेदारी तय हो जाए, तो फिर लक्ष्मण रेखा पार किए बगैर इससे मुक्ति मिल सकती है। मुकदमेबाजी में कमी आए और कानून का शासन बढ़े, तो ईज आफ डूइंग बिजनेस, ईज ऑफ लिविंग व ईज ऑफ मोबिलिटी के साथ निवेशकों का भारत में भरोसा भी बढ़ेगा। चीफ जस्टिस के अनुसार, सरकार और अफसर अदालतों के आदेशों की परवाह नहीं करते।
इसकी वजह से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सरकारों के खिलाफ अवमानना के हजारों केस लंबित हैं। कानूनों में स्पष्टता हो, उन्हें बनाने से पहले पक्षकारों के साथ विमर्श हो और पुलिस-प्रशासन उनका दुरुपयोग न करे, तो मुकदमे में भारी कमी आ सकती है। बिहार में शराबबंदी कानून की वजह से बढ़ते आपराधिक मुकदमे हों या फिर चेक बाउंसिंग से जुड़े 33 लाख मामले-ये सरकार और विधायिका की विफलता को दर्शाते हैं। इस वजह से भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अकुशलता के साथ आम जनता का उत्पीड़न भी बढ़ता है।
ऐसे मामलों में राहत देने के बजाय सरकार और न्यायपालिका नियमित लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करते हैं। इसकी एक बानगी समान नागरिक संहिता मामले से सामने आती है। चीफ जस्टिस के अनुसार, कानून बनाना संसद का काम है, फिर भी इन मामलों में नियमित न्यायिक हस्तक्षेप होता है। इससे अराजकता के साथ अदालतों के ऊपर मुकदमों का बोझ भी बढ़ता है। दूसरी तरफ कानूनी सुधार और गवर्नेंस के मामलों में ठोस निर्णय लेने के बजाय सरकार और न्यायपालिका फाइल सरकाने में व्यस्त रहते हैं, जिसका पता सरकार और अदालतों में इस्तेमाल हो रहे कागजों से चलता है।
थिंक टैंक सीएएससी ने पिछले चार साल में पूरे देश में एक समान ए-4 कागज के दोनों तरफ प्रिंट करने के लिए केंद्र, राज्य और सभी हाई कोर्ट को अनेक प्रतिवेदन दिए। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट और 16 हाई कोर्ट ने ए-4 कागज के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। लेकिन अनेक हाई कोर्ट में सिर्फ एक तरफ प्रिंट का सिस्टम बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट न्यायिक आदेश से या फिर केंद्र सरकार नियमों में बदलाव की पहल करे, तो 'एक देश एक कागज' का सिस्टम लागू हो सकता है।
इससे प्रशासनिक क्षमता बढ़ने के साथ अरबों लीटर पानी की बचत और हजारों पेड़ों को कटने से बचाया जा सकेगा। लॉकडाउन के दौरान घरों से बैठकर सुनवाई करने, लिमिटेशन पीरियड में छूट, स्टे आदेश को आगे बढ़ाने जैसे कई मामलों में स्पष्ट कानूनी-व्यवस्था नहीं होने के बावजूद, अदालतों ने क्रांतिकारी आदेश पारित किए। उन्हीं मापदंडों और अधिकारों का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसले की पहल करे, तो करोड़ों मुकदमों के बोझ से समाज और देश को राहत मिल सकती है।

सोर्स: अमर उजाला

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