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- टीकाकरण का कठिन...
कोविड महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप धीरे-धीरे मंद पड़ रहा है, पर इसने देश के अंदर भय और पीड़ा की एक ऐसा मंजर छोड़ा है, जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इस महामारी से बचने का अगर कोई कारगर तरीका है तो वह सिर्फ तेजी से टीकाकरण है। भारत के वैज्ञानिकों और फार्मा क्षेत्र के उद्यमियों को इसके लिए दाद देनी होगी कि वे कम समय में टीका बनाने में सक्षम हो गए। जहां भारत बायोटेक ने अपने स्तर पर कोवैक्सीन टीका बनाया, वहीं सीरम इंस्टीट्यूट ने ब्रिटेन में बने एस्ट्राजेनेका टीके का कोविशील्ड नाम से देश में उत्पादन सुनिश्चित किया। कोविड की पहली लहर दूसरी लहर के मुकाबले कहीं कम घातक साबित हुई थी, लेकिन टीके को लेकर जो संशय उपजा, वह समय रहते दूर नहीं हो सका। इस संशय का एक कारण टीके को लेकर की गई सस्ती राजनीति भी रही। कुछ विपक्षी दलों ने इसे भाजपा का टीका कहा तो किसी ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कुछ देशों में एस्ट्राजेनेका यानी कोविशील्ड लेने वालों में खून के थक्के जमने की समस्या के चलते भी टीकाकरण को लेकर कुछ लोगों में हिचक पैदा हुई। देर से ही सही, लोगों में टीके को लेकर विश्वास जगा, लेकिन अब टीकों की कमी आड़े आ रही है।