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आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत शिमला में 16 जून से 18 जून 2022 तक आयोजित तीन दिवसीय 'उन्मेष' अभिव्यक्ति का अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय एवं साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित किए जाने वाले गौरवपूर्ण दिवस इतिहास बन गए हैं, समाज के एक ऐसे वर्ग के लिए जो युगों-युगों से प्रताड़ना एवं शोषण झेलता आया है। जिस वर्ग का शोषण उसके घर से ही शुरू होता है, घरवाले ही उसे अपमानित करके जीवन भर के लिए उसका शोषण करने के लिए उसे संसार के सुपुर्द कर देते हैं। क्या ये बालक ही ऐसे होते हैं कि जिनके प्रति उनके माता-पिता भी निष्ठुर हो जाते हैं। 'मां' शब्द जिसके उच्चारण से ही ममता प्रस्फुटित होने लगती है, वह भी अपने खून से बने शरीर को संसार के थपेड़े सहने के लिए छोड़ती आ रही हैं। जबकि 'मां' के प्रेम में तो वात्सल्य की पराकाष्ठा होती है। मानवी बनकर वह अमानवीयता का व्यवहार करके अपने कोख जने के लिए दीवारें खड़ी कर देती है। वह समाज के किसी भी वर्ग से संबद्ध रही हो, उसने समाज के दबाव में आकर ऐसा किया ही है और आडंबर वादियों एवं ढोंगियों के बहकावे में आकर ऐसा कर ही रही है। न जाने कैसे वह अपनी ममतामई प्रवृत्ति को त्याग देती है, ये तो सहृदय माताएं ही बता सकती हैं। इस उन्मेष उत्सव के 17 जून 2022 वाले दिवस का 2.30 बजे से 4.00 बजे तक मुख्य सभागार में आयोजित हुवा सत्र (एलजीबीटीक्यू) भाव विभोर करने वाला था जिसकी अध्यक्षता मानवी बंधोपाध्याय कर रही थी तथा वक्ता गणों में धनंजय चौहान, मीरा परिडा, मृतिका (अभिजीत चटर्जी), विजयाराजमल्लिका, अलगू जगन, रितुपर्णा एवं ऋत्विक चक्रवर्ती थे/थीं। मैं समझता हूं कि शायद ही संसार की कोई ऐसी पीड़ा हो या ऐसा तिरस्कार हो जो इन्होंने न झेला हो। शायद यह पीड़ा तो प्रसव वेदना से भी अधिक पीड़ादायक होती है जिस पीड़ा को ये हर वक्त झेलते हैं, झेलते आए हैं। इनके साथ ऐसे अमानवीय व्यवहार करने के अधिकार हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति ने इनके माता-पिता तथा समाज एवं राष्ट्र को प्रदान किए हैं!
सोर्स - divyahimachal