सम्पादकीय

ट्रांसजेंडर का कठिनाईपूर्ण जीवन

Rani Sahu
21 Jun 2022 7:13 PM GMT
ट्रांसजेंडर का कठिनाईपूर्ण जीवन
x
आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत शिमला में 16 जून से 18 जून 2022 तक आयोजित तीन दिवसीय ‘उन्मेष’ अभिव्यक्ति का अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय एवं साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित किए जाने वाले गौरवपूर्ण दिवस इतिहास बन गए हैं

आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत शिमला में 16 जून से 18 जून 2022 तक आयोजित तीन दिवसीय 'उन्मेष' अभिव्यक्ति का अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय एवं साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित किए जाने वाले गौरवपूर्ण दिवस इतिहास बन गए हैं, समाज के एक ऐसे वर्ग के लिए जो युगों-युगों से प्रताड़ना एवं शोषण झेलता आया है। जिस वर्ग का शोषण उसके घर से ही शुरू होता है, घरवाले ही उसे अपमानित करके जीवन भर के लिए उसका शोषण करने के लिए उसे संसार के सुपुर्द कर देते हैं। क्या ये बालक ही ऐसे होते हैं कि जिनके प्रति उनके माता-पिता भी निष्ठुर हो जाते हैं। 'मां' शब्द जिसके उच्चारण से ही ममता प्रस्फुटित होने लगती है, वह भी अपने खून से बने शरीर को संसार के थपेड़े सहने के लिए छोड़ती आ रही हैं। जबकि 'मां' के प्रेम में तो वात्सल्य की पराकाष्ठा होती है। मानवी बनकर वह अमानवीयता का व्यवहार करके अपने कोख जने के लिए दीवारें खड़ी कर देती है। वह समाज के किसी भी वर्ग से संबद्ध रही हो, उसने समाज के दबाव में आकर ऐसा किया ही है और आडंबर वादियों एवं ढोंगियों के बहकावे में आकर ऐसा कर ही रही है। न जाने कैसे वह अपनी ममतामई प्रवृत्ति को त्याग देती है, ये तो सहृदय माताएं ही बता सकती हैं। इस उन्मेष उत्सव के 17 जून 2022 वाले दिवस का 2.30 बजे से 4.00 बजे तक मुख्य सभागार में आयोजित हुवा सत्र (एलजीबीटीक्यू) भाव विभोर करने वाला था जिसकी अध्यक्षता मानवी बंधोपाध्याय कर रही थी तथा वक्ता गणों में धनंजय चौहान, मीरा परिडा, मृतिका (अभिजीत चटर्जी), विजयाराजमल्लिका, अलगू जगन, रितुपर्णा एवं ऋत्विक चक्रवर्ती थे/थीं। मैं समझता हूं कि शायद ही संसार की कोई ऐसी पीड़ा हो या ऐसा तिरस्कार हो जो इन्होंने न झेला हो। शायद यह पीड़ा तो प्रसव वेदना से भी अधिक पीड़ादायक होती है जिस पीड़ा को ये हर वक्त झेलते हैं, झेलते आए हैं। इनके साथ ऐसे अमानवीय व्यवहार करने के अधिकार हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति ने इनके माता-पिता तथा समाज एवं राष्ट्र को प्रदान किए हैं!

इस स्तर के मंच तक पहुंचने के लिए इन्हें आजादी के बाद लगभग 75 वर्ष लग गए। इस समारोह में अपनी प्रतिभागिता दर्ज करवाने ये प्रबुद्ध आत्माएं उपस्थित हुई थी, जिन्होंने शिक्षा प्राप्त करके प्रशासन तथा लेखन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है। अपने परिवार तथा समाज से बगावत करके किसी न किसी तरह से भारतीय संविधान में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रदत्त शिक्षा के मौलिक अधिकारों का हवाला देकर जिसमें सभी राष्ट्र के नागरिकों के लिए शिक्षा ग्रहण करने के द्वार खोले गए हैं, शिक्षा प्राप्त की तथा इस मुकाम तक पहुंची है। इन सभी के वक्तव्य में एक पीड़ा, एक संत्रास, एक डरावनी चीख एवं सभ्य कहलाए जाने वाले समाज द्वारा किए गए शोषण की एक भयावह कहानी थी। यह सभ्य समाज इन्हें किन-किन अलंकरणों से अलंकृत करके पुकारता है ये तो जगजाहिर ही है, किंतु फिर भी लिख ही रहा है जैसे वो छक्के, हिजड़े, किन्नर…न जाने और क्या-क्या? किसी-किसी का बीस-बीस युवकों द्वारा बलात्कार किया गया था। जिसकी न कोई अपील न कोई दलील स्वीकार की गई थी। कितनी पीड़ा थी उनके वक्तव्य में, उनकी वाणी में, सभी सुनने वाले स्तब्ध थे…! किंतु वे बोले जा रहे थे। हम सुन रहे थे, अपने से ही प्रश्न कर रहे थे कि क्या ऐसा भी इनसान इनसानों के साथ कर सकता है? जो कि सच्चाई थी। वर्तमान में वे सभी जागरूक नागरिक देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं तथा उन्हें अधिकार दिलवा भी रहे हैं। सबसे पहली प्राथमिकता उनकी इस प्रकार की शारीरिक अक्षमता वाले नागरिकों को शिक्षित करवाना, तदोपरांत उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ करके इन्होंने स्वयं को तीसरा लिंग अर्थात ट्रांसजेंडर की उपाधि का नाम प्राप्त कर लिया है जो उनकी एक बहुत बड़ी जीत है। अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ करके ये सरकारी, अर्धसरकारी एवं निजी क्षेत्रों के अतिरिक्त अपनी प्रतिभानुकूल स्वरोजगार के साधन जुटाने लगे हैं। किंतु फिर भी बहुत कुछ करना शेष है। ट्रांसजेंडर ही एक ऐसा वर्ग है जिसे अपने सामाजिक अधिकारों के लिए घर से ही लड़ाई लड़नी पड़ती है।
हिमाचल प्रदेश राज्य में भी एक बहुत बड़ा वर्ग है जो इस तरह के शोषण का हर दिन शिकार होता रहता है, किंतु कोई उसकी सुनाई नहीं करता। क्योंकि जिसका सम्मान घर में नहीं होता वह बाहर हवा में उड़ता है, यही इस राज्य में इस वर्ग के साथ भी हो रहा है। परिवार, समाज एवं सरकार को इस वर्ग की पीड़ा को समझना होगा तथा इनको भी अन्य नागरिकों की तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने होंगे। तभी ये सम्मान की जिंदगी जी सकते हैं अन्यथा इनका जीवन नारकीय ही बना रहेगा। यदि कोई इस प्रकार के नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार कर उनका अपमान करता है, उनके साथ अश्लील व्यवहार करता है तो सरकार को उसके विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि यदि ये अपनी समस्या या पीड़ा लेकर के पुलिस स्टेशन या किसी अन्य अधिकारी के पास जाते हों तो वह केवल मात्र इनका उपहास उड़ा करके मनोरंजन का साधन बनाएं और इन्हें दुत्कार कर भेज दें। जब तक इनके विरुद्ध अपराध करने वालों के लिए कड़े नियम बनाकर उन्हें कार्यान्वित नहीं किया जाता, तब तक इन्हें सामाजिक न्याय नहीं मिल सकता। यदि किसी दंपत्ति के घर में ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं तो उन्हें दुत्कारे न, बल्कि उनके साथ भी अन्य बच्चों की भांति ही व्यवहार करें तथा अंधविश्वास और आडंबरवाद में न पड़कर अपना पूर्ण वात्सल्य उन पर उड़ेलें। वे भी अन्य बच्चों की भांति उनका सहारा बन सकते हैं। केवल समाज को सोच बदलने की आवश्यकता है।
डा. राजन तनवर
एसोसिएट प्रोफेसर

सोर्स - divyahimachal


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story