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सम्पादकीय
'प्रीकॉशन-बूस्टर' वैक्सीन जैसे अलग-अलग शब्दों से छात्र और मुसाफिर परेशान हो रहे हैं
Gulabi Jagat
14 April 2022 7:53 AM GMT
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भारत सरकार तीसरी डोज को ही बूस्टर डोज की जगह प्रीकॉशन डोज कह रही है
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने हाल ही में ऐलान किया कि 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को 10 अप्रैल से प्रीकॉशन डोज यानी कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) की बूस्टर डोज (Booster Dose) लगाई जाएगी. 18 से ज्यादा उम्र के पात्र लोगों को तीसरी डोज उसी टीके की दी जाएगी, जिसकी दोनों खुराक उन्होंने पहले लगवाई थी. सरकार ने दोनों टीकों की कीमत घटाकर 225 रुपये (उचित कर सहित) कर दी है. गौर करने वाली बात यह है कि भारत में बूस्टर ड्राइव की शुरुआत काफी धीमी थी, जिसमें योग्य आबादी ने महज 9674 बूस्टर डोज लगवाए.
हालांकि, एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि जैसे-जैसे अन्य निजी अस्पताल इस अभियान में शामिल होंगे, यह संख्या बढ़ जाएगी. हालांकि, इस ऐलान की वजह से दो बड़ी समस्याएं सामने आ गईं. पहली वैक्सीन की कीमत को लेकर थी, जिसका समाधान आखिरी क्षणों में कर दिया गया. वहीं, दूसरी समस्या इस टीके को प्रीकॉशन डोज कहने और बूस्टर डोज नहीं कहने से है, जबकि दुनिया के दूसरे हिस्सों में इसे बूस्टर डोज कहा जा रहा है.
भारत सरकार तीसरी डोज को ही बूस्टर डोज की जगह प्रीकॉशन डोज कह रही है
विदेश में पढ़ाई के लिए अपने वीजा का इंतजार कर रहे कुछ छात्रों ने TV 9 को बताया कि उन्हें अपने विदेशी कॉलेजों और उनके अधिकारियों को यह समझाना पड़ रहा है कि प्रीकॉशन डोज का सिर्फ नाम अलग है, जबकि हकीकत में इसका मतलब बूस्टर डोज ही है. म्यूनिख की लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी में हायर स्टडीज के लिए आवेदन करने वाली 20 वर्षीय छात्रा अश्का नवलवाला ने बताया, 'मैं काफी समय से बूस्टर डोज का इंतजार कर रही थी, क्योंकि जर्मनी में मौजूद मेरे कॉलेज में पीजी के लिए आवेदन करने से पहले बूस्टर डोज लगवाना अनिवार्य है.
लेकिन जब मैंने कल अपनी सेंटर हेड को लिखा कि मैं इस हफ्ते प्रीकॉशन डोज लगवा लूंगी और कॉलेज में पढ़ाई के लिए आवेदन करूंगी तो वह प्रीकॉशन डोज से अनजान नजर आईं. इसके बाद मुझे लगातार कई ईमेल भेजने पड़े, जिनमें मीडिया रिपोर्ट्स अटैच करके यह समझाना पड़ा कि भारत सरकार तीसरी डोज को ही बूस्टर डोज की जगह प्रीकॉशन डोज कह रही है. दुर्भाग्यवश मंत्रालय ने इस संबंध में कोई स्पष्ट सूचना नहीं दी है, जिसकी वजह से मुझ जैसे तमाम छात्रों को परेशानी से जूझना पड़ रहा है.'
बूस्टर वर्सेज प्रीकॉशन डिबेट
कॉलेजिफी के को-फाउंडर आदर्श खंडेलवाल ने बताया कि छात्रों ने अभी तक आवेदन पत्र खारिज होने की शिकायत नहीं की है, लेकिन उनमें से अधिकांश को अपने कॉलेजों और अधिकारियों को बताना पड़ रहा है कि प्रीकॉशन और बूस्टर दोनों का मतलब एक ही है. उन्होंने बताया, 'विदेशी कॉलेजों के अधिकारियों को यह समझाने के लिए बार-बार ईमेल भेजने पड़ रहे हैं कि तीसरी डोज या प्रीकॉशन डोज का मतलब बूस्टर डोज ही है. इससे वीजा मिलने में तो दिक्कत नहीं आ रही है, लेकिन मेरे जैसे तमाम एजेंट्स और छात्रों को कंफ्यूजन का सामना करना पड़ रहा है. दूसरी बड़ी समस्या यह है कि जिन छात्रों ने कोवैक्सीन का टीका लगवाया है, उन्हें दिक्कत हो रही है, क्योंकि कुछ देश इसे प्राइमरी डोज के रूप में भी स्वीकार नहीं करते हैं.'
विदेशों में पढ़ाई कराने वाले काउंसलर्स को विदेशी कॉलेजों के अधिकारियों को समझाने में मुश्किल हो रही है. वहीं, हॉलिडे पैकेज मुहैया कराने वाले ट्रैवल एजेंट्स भी इसी तरह की समस्या से रूबरू हो रहे हैं. उन्हें भी प्रीकॉशन डोज और बूस्टर डोज का मतलब बार-बार समझाना पड़ रहा है. इसके अलावा कोवैक्सीन के टीके की वजह से भी उन्हें दिक्कत हो रही है. नई दिल्ली स्थित एकलव्य ट्रैवल एजेंसी के राहुल महाजन ने टीवी 9 को बताया कि अधिकांश वीजा फॉमैलिटीज में उन्हें बूस्टर और प्रीकॉशन डोज का मतलब समझाने के लिए एक्स्ट्रा डॉक्युमेंट देने पड़ रहे हैं. उन्होंने बताया, 'इस मामले को लेकर दूतावासों से औपचारिक बातचीत अब तक नहीं हुई है. हालांकि, सूत्र बताते हैं कि प्रीकॉशन और बूस्टर डोज के बीच अंतर समझाने के लिए कागजात लगाना ज्यादा बेहतर हैं, जिससे उसके आधार पर वीजा खारिज न हो.'
उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के फाउंडर डायरेक्टर डॉ. सचिन बजाज ने कहा, 'सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि 'प्रीकॉशन डोज' जैसे शब्द का इस्तेमाल करने का कोई खास मतलब नहीं है. मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं कि मेडिकल साइंस में प्रीकॉशन डोज जैसा कोई शब्द ही नहीं है. यहां सिर्फ प्राइमरी डोज, बूस्टर डोज और दूसरा बूस्टर डोज बताया गया है. लेकिन मैंने कभी प्रीकॉशन डोज के बारे में नहीं सुना. मुझे समझ नहीं आता कि इसका नाम प्रीकॉशन डोज क्यों रखा गया. मुझे लगता है कि अटकलों की जगह सरकार को वास्तव में यह बताना चाहिए कि ऐसा क्यों है. यह समझाने की जरूरत है कि उन्होंने यह नाम क्यों चुना? यही कदम तमाम लोगों और वैज्ञानिक समुदाय को तमाम तरह के भ्रम से बचा सकता है.'
प्रीकॉशन शॉट उन लोगों के लिए है, जिनकी हालत गंभीर है
लेकिन, इस मामले में वॉकहार्ट अस्पताल के एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश शर्मा के विचार अलग हैं. उनका कहना है कि इस वक्त इन अतिरिक्त डोज को 'प्रीकॉशन' डोज कहना रणनीतिक रूप से ज्यादा सही हो सकता है, क्योंकि तीसरी डोज के असर को लेकर कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि इस समय इसे प्रीकॉशन शॉट कहना ज्यादा उचित और रणनीतिक रूप से सही है, क्योंकि तीसरी डोज के असर को लेकर ज्यादा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. बूस्टर शॉट से लगता है कि यह बेहद खास है और इस पर काफी स्टडी की गई है. ऐसे में इसे प्रीकॉशन डोज कहना ज्यादा सटीक लगता है.' डॉ. शर्मा ने कहा, प्रीकॉशन शॉट उन लोगों के लिए है, जिनकी हालत गंभीर है. दरअसल, हम अभी ज्यादा नहीं जानते हैं. ऐसे में इसे बूस्टर डोज नहीं कहा जा सकता है.'
एक रिपोर्ट के मुताबिक, वयस्कों के लिए COVID-19 की 'प्रीकॉशन' डोज की शुरुआत होने के पहले दिन रविवार (10 अप्रैल) को 9,496 टीके लगाए गए. CoWin डैशबोर्ड से पता चला कि लगभग 850 प्राइवेट अस्पतालों में लोगों के लिए वैक्सीन की तीसरी डोज उपलब्ध है. 18 साल से ज्यादा उम्र के ऐसे लोग, जिन्होंने कम से कम नौ महीने पहले वैक्सीन की दूसरी डोज लगवाई है, वे उसी वैक्सीन की तीसरी डोज प्राइवेट अस्पताल से लगवा सकते हैं. अधिकांश अस्पताल सोमवार से बूस्टर डोज लगाने की शुरुआत कर रहे हैं. एक्सपर्ट्स पहले ही यह बात कह चुके हैं कि नौ महीने के टाइम गैप और देशभर में टीकाकरण की रफ्तार अलग-अलग होने के कारण बूस्टर डोज की मांग शुरुआत में काफी धीमी हो सकती है.
(प्रज्वल वेले वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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