सम्पादकीय

2013 और 2019 के हेमंत का फर्क

Rani Sahu
3 May 2022 12:11 PM GMT
2013 और 2019 के हेमंत का फर्क
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संगत से गुण होत है,संगत से गुण जात. यह कहावत कई मायने में झारखंड की वर्तमान राजनीति में फिट बैठती दिखती है

Shyam Kishore Choubey

संगत से गुण होत है,संगत से गुण जात. यह कहावत कई मायने में झारखंड की वर्तमान राजनीति में फिट बैठती दिखती है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को स्टोन माइंस और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को औद्योगिक भू-खंड आवंटन मामले से झारखंड की राजनीति गरमाई हुई है. प्रतिपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप के तीर चलाये जा रहे हैं. इस प्रकरण का पटाक्षेप किस रूप में होगा, यह भविष्य के गर्भ में है. मौजूदा हालात ने अतीत में झांकने को मजबूर कर दिया है. वर्ष 2013-14 के अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में आज की बनिस्पत युवा और कम अनुभवी हेमंत सोरेन ने झारखंडवासियों में उम्मीद जगा दी थी. उस दौरान काम करने के उनके अंदाज, सबको साथ लेकर चलने की तरकीब, विनम्रता, प्रशासनिक क्षमता आदि ने राज्य की राजनीति में उनको स्थापित कर दिया था. यही वजह थी कि अपेक्षाकृत अधिक मजबूत इच्छाशक्ति और अधिक काम करने वाले रघुवर दास के शासन काल में कई मर्तबा लोग हेमंत के 14 महीने की सरकार से तुलना करने में बाज नहीं आते थे.
हेमंत की कार्यशैली और रघुवर की कतिपय गलतफहमियों का मिलाजुला असर यह रहा कि वर्ष 2019 के चुनाव में 'अबकी बार, हेमंत सरकार' के नारे पर राज्य ने भरोसा किया. उसने ऐतिहासिक समर्थन देते हुए झामुमो को रिकॉर्ड 30 सीटों पर विजय दिलाई. इन्हीं परिस्थितियों का राजनीतिक लाभ कांग्रेस को भी मिला. कांग्रेस की झोली में झारखंड बनने के बाद सबसे ज्यादा 16 विधानसभा सीटें उतर आईं. इस प्रकार बिना किसी बाह्य समर्थन के बहुमत के साथ हेमंत के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी. यह परिस्थिति लगभग वैसी ही थी, जैसी वर्ष 2014 के चुनाव में एनडीए के खाते में आई थी.
चुनाव के बाद वर्ष 2019 के अंतिम दिनों में बिना किसी विवाद के हेमंत ने अपनी दूसरी पारी में बतौर मुख्यमंत्री प्रवेश किया तो राज्य के पास उम्मीदों का जितना बड़ा झोला था, उसको भरने के लिए हेमंत के पास उससे अधिक अवसर था. ऐन उसी वक्त पर विकराल कोरोना काल ने दस्तक दी, लेकिन हेमंत ने उससे निपटने में कोई कसर बाकी न रखी. इसी काल में मुख्य सचिव, डीजीपी आदि की पदस्थापना ने भी सबका ध्यान खींचा. लगा, अब बेहतरी से कोई रोक नहीं सकता. मिडिल ऑर्डर और शीर्ष स्तर के अधिकारियों के तबादला-पदस्थापन से भी संतुष्टि का भाव जगता रहा. लोगों की उम्मीदें और बढ़ गईं.
बिना कोई चूक करते हुए हेमंत सरकार ने बरसों से लंबित पारा शिक्षकों की मांगों और उनके आंदोलनों का समाधान कर यह संकेत दिया कि वह जन मानस का ख्याल रखती है. इसके बाद सत्ता के गलियारे ने ऐसी-ऐसी करवटें लेनी शुरू कर दी कि राज्य की उम्मीदें किंकर्तव्यविमूढ़ हो गईं और खुद हेमंत बदनामियों के फंदे में फंसते चले गए. ट्रांसफर-पोस्टिंग और ठेका-पट्टा का खुला खेल सामने आने लगा. दागी अधिकारियों की फिर से बल्ले-बल्ले हो गयी. जनता खुद को ठगा महसूस करने लगी. प्रखंड से लेकर सचिवालय तक किसी प्रकार का काम कराने के लिए मध्यस्थ अनिवार्य हो गये. मध्यस्थ कौन हैं, उनकी फीस कितनी है, यह भी जग जाहिर हो कर चौक-चौराहों पर चर्चा का विषय बन गया.
जैसे-जैसे समय सरकता गया, हेमंत द्वारा अपने नाम मामूली सी ही सही लेकिन माइनिंग लीज लेने, पत्नी कल्पना सोरेन की कंपनी को 11 एकड़ भूमि आवंटित करने, प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू और हेमंत के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र के नाम माइनिंग लीज आवंटित होने की बातें सामने आने से जिस हेमंत की छवि छीजने लगी, वह वर्ष 2013 के हेमंत तो कतई न लगे. इसके पहले तक बढ़-चढ़कर बोलनेवाला उनका दल झामुमो सफाई की मुद्रा में आ गया. वर्तमान परिस्थितियों में हेमंत और उनकी सरकार पर संकट है या नहीं, यह तो संवैधानिक संस्थाएं तय करेंगी. लेकिन खुद हेमंत, उनकी सरकार और यहां तक कि झारखंड के हिस्से में जितनी बदनामी आ गई, उसकी भरपाई आसान न होगी. अब तो चिंतन और चर्चा यही है कि जिस हेमंत ने 14 माह के पहले कार्यकाल में अपनी विशिष्ट छवि बनाई थी, उन्होंने सुरक्षित माने जानेवाले अपने दूसरे कार्यकाल में क्यों और कैसे छोटी-छोटी गलतियां कर खुद को संकट में डाला और पूरे राज्य को हंसी का पात्र बना दिया.
राज-काज पर गौर करें तो पता चलता है कि शीर्ष पदों पर आसीन राजनेताओं की सलाहकार मंडली और दल के अंदर की लोकशाही बहुत मायने रखती है. नौकरशाही आमतौर पर बिन मांगी सलाह देने में परहेज करती है. वह थोड़ा-बहुत आगाह जरूर करती है, लेकिन उसमें भी कई खुदगर्ज होते हैं, जिनसे सावधानी बरतना संबंधित राजनेता के विवेक पर निर्भर करता है. वर्ष 2013-14 के हेमंत के कार्यकाल और वर्ष 2019 के बाद के हेमंत के कार्यकाल में झांकें तो व्यापक बदलाव नजर आता है.
Rani Sahu

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