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![संघ और भाजपा के बुने जाल में फिर से खुद को फंसा तो नहीं गए राहुल गांधी? संघ और भाजपा के बुने जाल में फिर से खुद को फंसा तो नहीं गए राहुल गांधी?](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/12/13/1424406-1.gif)
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मैं हिन्दू हूं, मगर हिन्दुत्ववादी नहीं हूं. ये सब (आम जनता) हिन्दू हैं
प्रवीण कुमार मैं हिन्दू हूं, मगर हिन्दुत्ववादी नहीं हूं. ये सब (आम जनता) हिन्दू हैं मगर हिन्दुत्ववादी नहीं हैं. महात्मा गांधी हिन्दू थे और गोडसे हिन्दुत्ववादी. ये शब्द हैं कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के जो पीएम मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से ठीक एक दिन पहले राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित 'महंगाई हटाओ महारैली' में हिन्दू और हिन्दुत्ववादी के बीच का फर्क समझा रहे थे. लेकिन क्या राहुल गांधी ने इन दोनों शब्दों के मायने और दोनों शब्दों के बीच के अंतर की व्याख्या करने से पहले इस बात का अंदाजा लगाया था कि देश इस बात को समझना चाहता है भी या नहीं?
दरअसल, ये पूरा भाषण राहुल गांधी के मन की एक भड़ास थी जिसे उन्होंने उगल दिया. महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, किसानी और कोरोना की त्रासदी के बीच जनता क्या चाहती है, नेता और जनता के बीच का कैसा संवाद हो कि वह एक-दूसरे को कनेक्ट कर पाए, इसको समझने में राहुल गांधी बार-बार चूक जाते हैं और यही वो बात है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को पीछे छोड़ देते हैं.
मिटाना होगा 'मुसलमान विरोधी हिन्दू' का भाव
इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दू और हिन्दुत्ववादी के गूढ़ अर्थ को समझाने के लिए राहुल गांधी ने जो बात की वह सौ प्रतिशत सत्य है. सरसंघचालक मोहन भागवत भी कई मौकों पर 'वाद' शब्द से परहेज करने की नसीहत देते रहे हैं. आप इसको इस तरीके से भी समझ सकते हैं कि चाहे वह हिन्दुत्ववाद हो, राष्ट्रवाद हो या फिर मार्क्सवाद ही क्यों न हो, इसमें 'वाद' सामूहिक जीवन का नमक है. यह नमक अगर ना हो तो बेस्वाद और ज्यादा हो जाए तो जहर बन जाता है. किसी भी चीज में 'अति' यानी जरूरत से बहुत ज्यादा खतरनाक होता है. लिहाजा हमें इस बात को समझना होगा कि हिन्दुत्ववाद में 'वाद' रूपी नमक वाकई इतना ज्यादा हो गया है कि वह जहर बन गया है. देश को समझना यही बात है और राहुल गांधी भी यही बात समझाने की कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन राहुल इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि उनकी इस बात को देश कितना समझना चाहता है. दरअसल, इस देश में बड़े ही करीने से इस बात को स्थापित कर दिया गया है कि दक्षिणपंथी दल भाजपा का मतलब है हिन्दुओं की पार्टी, मुसलमान विरोधी हिन्दू पार्टी. कांग्रेस पार्टी समेत तमाम भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों को हिन्दू विरोधी पार्टी के तौर पर देखा जाता है. हिन्दुओं में जो मुसलमान विरोधी भाव बीते कुछ वर्षों में इस तरह से भर दिए गए हैं कि भारत में अगर मुसलमानों को कोई सबक सिखा सकता है तो वह भाजपा ही है, इस भाव को मिटाना बेहद जरूरी है. लेकिन ये काम इतना आसान है नहीं. लोग हिन्दू और हिन्दुत्ववादी के गूढ़ दर्शन को नहीं समझना चाहते हैं. हिन्दुत्व के व्हाट्सप ज्ञान का असर ज्यादा है क्योंकि वो ज्यादा सहज तरीके से लोगों से संवाद कर रहा है, लोगों को हिन्दुत्ववाद से कनेक्ट कर पा रहा है. लिहाजा राहुल गांधी को इस तरह के टूलकिट ईजाद करने होंगे जो लोगों में 'मुसलमान विरोधी हिन्दू' का जो भाव अंदर तक समाया हुआ है उसे सहज संवाद के जरिये मिटा पाए.
संघ और भाजपा के बुने जाल में फंसे राहुल
कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा और उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जिस हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दुत्ववाद का ताना-बाना पूरे देश में तैयार किया है, राहुल गांधी बार-बार उसमें आकर फंस जाते हैं. जब भी कोई बड़ा चुनाव देश में होता है, कभी राहुल के गोत्र को उछाला जाता है, कभी जनेऊ की बात होती है. कभी उनके धर्म को लेकर सवाल खड़े किए जाते हैं. ऐसे में कांग्रेस नेता को लगता है कि अगर आरएसएस और भाजपा के इन सवालों का जवाब नहीं दिया गया तो जनता इस बात को मान लेगी कि भाजपा और आरएसएस के लोग जो आरोप लगा रहे हैं उसमें सच्चाई है. और फिर योगी आदित्यनाथ जैसे नेता भी कहने से नहीं चूकते कि राहुल का जनेऊ दिखाकर खुद को सनातनी हिन्दू दिखाने का प्रयास हमारी यानी संघ परिवार की वैचारिक विजय है. फर्क इससे नहीं पड़ता कि मुसलमान उन्हें क्या मानते हैं? फर्क इससे जरूर पड़ता है कि हिन्दू उन्हें क्या मानते हैं. फर्क इससे पड़ता है कि राहुल गांधी के परनाना जवाहरलाल नेहरू को किसी गयासुद्दीन का वंशज बताने वाली व्हाट्सऐप कंटेंट की जो धार है उसे मोड़ा जा सकता है या नहीं. अगर आप देखें तो विगत पांच-सात वर्षों से इस तरह की बातें लगातार सोशल मीडिया और गोदी मीडिया प्रचारित व प्रसारित करती रही है बिना रुके और बिना थके. कांग्रेस कभी इन हमलों का कोई करारा जवाब नहीं दे पाती है. और ये बात सिर्फ राहुल गांधी की नहीं है. याद करें तो यह कांग्रेस में पनपी शॉर्टकट संस्कृति का ही नतीजा था कि हिन्दू वोट पाने की हड़बड़ी में राजीव गांधी ने खुद 1989 में राम मंदिर का शिलान्यास करा दिया था. मतलब एजेंडा संघ का और काम किया कांग्रेस पार्टी ने. इससे कांग्रेस को हिन्दू वोटों का कोई लाभ नहीं हुआ. लाभ अगर किसी को हुआ तो वह संघ के हिन्दुत्व एजेंडे को हुआ. अब राहुल गांधी भी वही कर रहे हैं. एजेंडा संघ परिवार या भाजपा तय कर रहा है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस हिन्दू विरोधी हैं, मुस्लिम समर्थक हैं. लेकिन दूसरी तरफ सोनिया गांधी तिलक लगा कर, राहुल गांधी भगवा पहन कर, जनेऊ दिखा कर, खुद को शिवभक्त बोल कर, अपना गोत्र बता कर और धर्मनिरपेक्षता की चादर फेंककर खुद को हिन्दू साबित करने में लगे हैं. कहने का मतलब यह कि संघ और भाजपा ने कांग्रेस को धकेल-धकेल कर उस कोने तक पहुंचा ही दिया है, जहां वह खुद को हिन्दू कहने से बच नहीं पा रही है.
तो अब क्या करना चाहिए राहुल गांधी को?
इसमें कोई शक नहीं कि गांधी और गांधी के दर्शन इस देश और दुनिया में हमेशा प्रासंगिक रहेंगे. लेकिन देश राजनीति के उस दौर को जी रहा है जिसमें गांधी और पटेल तक को कांग्रेस से छीनकर भाजपा ने हाईजैक कर लिया है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का लोकार्पण कर ऐसे जताया जा रहा है कि इसी से हर साल 2 करोड़ युवाओं को नौकरी मिल जाएगी. ऐसे में राहुल और उनकी कांग्रेस पार्टी के पास एक ही विकल्प बचता है कि वह 'पंथनिरपेक्ष भारत' जो भारतीय संविधान की आत्मा है को ही आधार बनाकर विकास की बात करें. गांधी, नेहरू, पटेल और इंदिरा की विरासत वाली कांग्रेस को लेकर आगे बढ़ना होगा. देखना और समझना होगा इन नेताओं के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक दर्शन को. कांग्रेस पार्टी राजनीति के एक ऐसे मुहाने पर खड़ी है जहां उसे अपने वोट बैंक को नए रूप में खड़े करने होंगे. क्योंकि कांग्रेस जिस वोट बैंक पर खड़ी थी उसमें भाजपा और आप जैसी तमाम क्षेत्रीय पार्टियां जबरदस्त सेंध लगा चुकी है. ऐसे में बात हिन्दू और मुसलमान वाली राजनीति से नहीं बनेगी. बात किसानों की करनी होगी, बात महिलाओं की करनी होगी, बात युवाओं और बच्चों के भविष्य की करनी होगी, बात बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी को मिटाने की करनी होगी. बात संविधान को बचाने की करनी होगी, बात लोकतंत्र को बचाने की करनी होगी. और सिर्फ बात ही नहीं करनी होगी बल्कि उसे जमीन पर उतारना भी पड़ेगा. अगर इतना कर पाए तो हिन्दू-मुसलमान की बुनियाद पर खड़ी हिन्दुत्व की राजनीतिक इमारत को गिरने से कोई नहीं बचा सकता.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ऑर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
![Rani Sahu Rani Sahu](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/03/14/1542683-copy.webp)
Rani Sahu
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