सम्पादकीय

क्या सुशील कुमार मोदी अपने 'मोदी' उपनाम की वजह से केन्द्रीय मंत्री नहीं बने?

Tara Tandi
9 July 2021 8:45 AM GMT
क्या सुशील कुमार मोदी अपने मोदी उपनाम की वजह से केन्द्रीय मंत्री नहीं बने?
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पिछले कुछ महीनों से, जबसे केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के विस्तार की चर्चा चलनी शुरू हुयी थी

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |अजय झा | पिछले कुछ महीनों से, जबसे केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government Expansion) के विस्तार की चर्चा चलनी शुरू हुयी थी, दो नेता जिनका केन्द्रीय मंत्री बनना सत्ता के गलियारों में तय माना जा रहा था, वह थे ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और सुशील कुमर मोदी (Sushil Kumar Modi). होता भी क्यों नहीं. सिंधिया ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी (Congress Party) को अलविदा कहते हुए पिछले वर्ष बीजेपी में शामिल हुए थे, बल्कि गिफ्ट में उन्होंने मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिरा कर बीजेपी को सरकार का तोहफा भी दिया था. वहीं दूसरी तरफ बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जब एनडीए की सरकार बनाने की बात आयी तो नीतीश कुमार मंत्रिमंडल से सुशील कुमार मोदी का नाम गायब होने से सभी को आश्चर्य भी हुआ.

बिहर में बीजेपी को उठाने और उसे मजबूती देने में सुशील कुमार मोदी की अहम् भूमिका रही थी. जब जब बिहार में बीजेपी सरकार में शामिल हुयी, सुशील कुमार मोदी उसमें उपमुख्यमंत्री की भूमिका में दिखें. 2005 से 2020 के बीच सुशील मोदी तीन बार उपमुख्यमंत्री बने. बिहार को जंगल राज से बाहर ला कर विकास की राह पर आगे बढ़ने में सुशील कुमार मोदी की अहम् भूमिका रही थी. वह बिहार के वित्त मंत्री भी होते थे, और सीमित संसाधनों का विकास के काम पर खर्च होना उन्हीं के नेतृत्व में शुरू हुआ था.

बिहार में बीजेपी को उठाने में सुशील मोदी का बड़ा हाथ है

2013 में नीतीश कुमार, नरेन्द्र मोदी के एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा होने से पहले ही एनडीए से अलग हो गए, बीजेपी सत्ता से बाहर हो गयी और नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस पार्टी के समर्थन से अल्पमत की सरकार चलाते रहे. 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा बनी, महागठबंधन की सरकार नीतीश के नेतृत्व में बनी और उसके एवज में उन्हें अपने पुराने मित्र लालू प्रसाद यादव के दोनों पुत्रों को मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ा.

तेजश्वी यादव को उपमुख्यमंत्री के रूप में और तेजप्रताप यादव को कैबिनेट मंत्री के रूप में. 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद आरजेडी की सत्ता में वापसी हुयी थी. सत्ता में आते ही आरजेडी ने एक बार फिर से अराजकता और भ्रष्टाचार का तांडव दिखाना शुरू कर दिया था. नीतीश कुमार असहज ढंग से सरकार चलाते रहे. फिर अचानक 2017 में एक बड़ा राजनीतिक धमाका हुआ. नीतीश कुमार ने महागठबंधन से खुद को मुक्त कर लिया, हाथों हाथ बीजेपी ने जेडीयू को समर्थन का ऐलान कर दिया. नीतीश कुमार सरकार चलती रही, बस तेजश्वी की जगह सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री बने और बीजेपी की सत्ता में वापसी हुयी. पर्दे के पीछे से सारा खेल सुशील कुमार मोदी ने किया और नीतीश कुमार को समझाने में वह सफल रहे कि आरजेडी के साथ रह कर वह अपनी छवि धूमिल कर रहे हैं.

राज्यसभा तो पहुंचे लेकिन मंत्रीपद से चूंक गए

2020 के चुनाव में एनडीए सफल रही, बस अंतर इतना रहा कि जेडीयू की सीटें कम हो गईं और बीजेपी बड़ी पार्टी बन कर उभरी. सुशील कुमार मोदी के समर्थकों को लगने लगा था कि शायद इस बार वह ही मुख्यमंत्री बनेंगे. पर बीजेपी आलाकमान ने साफ़ कर दिया की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बनेगी. पर यह क्या, कहां बात मुख्यमंत्री बनने की चल रही थी, पर सुशील कुमार मोदी को उपमुख्यमंत्री पद से भी बेदखल कर दिया गया. बीजेपी आलाकमान की तरफ से घोषणा हुई कि सुशील कुमार मोदी को पार्टी केंद्र में लाएगी. और फिर हुआ भी ऐसा ही. लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से रिक्त हुए राज्यसभा सीट से सुशील कुमार मोदी को उम्मीदवार बनाया गया और वह संसद में आ गए.

उस समय से ही कयास लगाया जा रहा था कि जब भी केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार का विस्तार होगा, सुशील कुमार मोदी को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा. नरेन्द्र मोदी सरकार का विस्तार बुधवार को हुआ तो जरूर, पर उन 43 नेताओं में जिन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाई गयी, सुशील कुमार मोदी का नाम गायब था.

'मोदी' उपनाम की वजह से कहीं सुशील मोदी को नुकसान तो नहीं हुआ?

बात नवम्बर 2014 की है. अक्टूबर महीने में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार हरियाणा में बीजेपी चुनाव जीती और पार्टी ने मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया. खट्टर नयी दिल्ली आये और प्रधानमंत्री से मिलने गए. एक तो शिष्टाचार के नाते नवनियुक्त मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलते ही हैं, पर खट्टर मोदी को धन्यवाद भी देना चाह रहे थे. मोदी और खट्टर घनिष्ट मित्र थे. पूर्व में हरियाणा में दोनों ने साथ में काम किया था. मोदी हरियाणा के प्रभारी होते थे और खट्टर हरियाणा बीजेपी के संगठन महासचिव. दोनों में कई समानताएं थीं और पहली मुलाकात के बाद ही दोनों नजदीकी मित्र बन गए. मोदी ने खट्टर को कंप्यूटर गिफ्ट दिया और उन्हें कंप्यूटर चलाना सिखाया भी, जिसका नतीजा है कि E-Governance के मामले में आज हरियाणा देश के अग्रणी राज्यों में से एक है. हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद भी खट्टर के लिए मोदी का तोहफा था.

बातों-बातों में मोदी ने खट्टर से पूछा कि ये खट्टर नाम का वकील कौन है, जिसके नाम पर मीडिया में विवाद शुरू हो गया है? खट्टर ने जवाब दिया कि मीडिया में यह गलत खबर चल रही है, वह इस खट्टर नामक वकील को जानते भी नहीं हैं और वह उनका रिश्तेदार नहीं है. किसी के कहने पर उन्होंने उसका नाम सरकारी वकीलों के सूंची में शामिल कर लिया था.

"जिसे भी सरकारी वकील बनाना है बनाओ, पर खट्टर ही क्यों? मेरे आसपास कभी किसी और मोदी को देखा है क्या?" मोदी ने पूछा. खट्टर को सन्देश मिल गया और चंडीगढ़ लौटते ही उस खट्टर नामक वकील से इस्तीफा ले लिया गया. अब ऐसा प्रतीत होता है कि सुशील कुमार मोदी अगर मोदी ना हो कर सिर्फ सुशील कुमार ही होते तो वह भी बुधवार को केंद्रीय मंत्री बन चुके होते. 'खट्टर के आसपास कोई खट्टर नहीं देखे' का उपदेश देने वाले मोदी ने शायद यह निश्चय किया कि उनके आसपास भी कोई दूसरा मोदी नहीं दिखना चाहिए.

राजनीति में सुशील कुमार मोदी, नरेंद्र मोदी से पुराने हैं

वैसे यह अलग बात है कि राजनीति में सुशील कुमार मोदी नरेन्द्र मोदी से पुराने हैं. एमरजेंसी के ठीक पहले पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ में तीन छात्र नेताओं का दबदबा होता था. लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष, नीतीश कुमार उपाध्यक्ष और सुशील कुमार मोदी महासचिव. तीनों ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन बिहार में कांग्रेस पार्टी और इंदिरा गांधी के खिलाफ आन्दोलन में अग्रणी भूमिका अदा की थी. जब सम्पूर्ण क्रांति बिहार से निकल कर अन्य राज्यों तक पहुंचा तब नरेन्द्र मोदी गुजरात में उस आन्दोलन में युवा नेता के रूप में उभर कर पहली बार सामने आये थे.

बिहार की जनता और सुशील कुमार मोदी के समर्थकों का केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें नहीं शामिल किए जाने से झटका लगना स्वाभाविक है. बीजेपी सुशील कुमार मोदी को बिहार की राजनीति से अलग कर के राज्यसभा तो ले आयी. पर क्या बस उनकी जरूरत सिर्फ राज्यसभा में ही थी और सबने गलत समझ लिया था कि केंद्र में भूमिका का मतलब केंद्रीय मंत्री बनना होता है? हां, बीजेपी आलाकमान ने यह तो नहीं कहा था कि सुशील कुमार मोदी को केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा, तो क्या उन्हें पार्टी में कोई पद दिया जाएगा? देखना दिलचस्प होगा कि कैसे बीजेपी सुशील कुमार मोदी को बिना नरेन्द्र मोदी के करीब लाये भी केंद्र की राजनीति में समुचित और सम्मानजनक रूप से स्थापित करेगी?



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