सम्पादकीय

क्या कोरोना ने नौकरी करने वालों को संकट में डाला? बेरोजगार लाठी खा रहे हैं और नेता सत्ता बचा रहे

Tara Tandi
3 July 2021 2:01 PM GMT
क्या कोरोना ने नौकरी करने वालों को संकट में डाला? बेरोजगार लाठी खा रहे हैं और नेता सत्ता बचा रहे
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कोरोना की वजह से देशभर में रोजगार पर बड़ा असर पड़ा है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | राहुल सिन्हा, एडिटर असाइनमेंट| कोरोना की वजह से देशभर में रोजगार पर बड़ा असर पड़ा है जो लोग बेरोजगार थे उन्हें तो पहले से ही नौकरी की तलाश थी, लेकिन कोरोना संकट ने नौकरी कर रहे लोगों को भी संकट में डाल दिया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के इस दौर में 8 से 10 लाख ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी चली गई. लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की दर 11.9% तक पहुंच गई इतना ही नहीं भारत में 97% लोगों की रियल इनकम कम हो गई. अगर आय नहीं भी घटी तो महंगाई की वजह से रियल इनकम घट गई.

कोरोना संकट की सबसे बड़ी मार MSME यानी उन छोटा व्यापार करनेवाले लोगों पर पड़ा है. इस सेक्टर की कमर कोरोना ने तोड़ दी है. इस सेक्टर में 11 से 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है. सिर्फ नौकरी के मोर्चे पर ही नहीं कोरोना ने दूसरे मोर्चे पर भी लोगों को भारी परेशानी में डाला है. हमने चार राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी को लेकर हालात समझने की कोशिश की. इन राज्यों मे कई जगह सरकारी नौकरियों को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है.
यूपी में सरकारी नौकरी की मांग कर रहे नौजवानों का आरोप है कि उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद ग्रुप सी नौकरी नहीं मिली, नौजवानों का आरोप है कि पिछले 4 सालों में महज 18 हजार सरकारी नौकरी निकली है जबकि यूपी के 37 विभागों में 32 हजार से ज्यादा पद खाली हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ ने नवंबर 2020 में खाली पदों को 6 महीने में भरने का ऐलान किया था, लेकिन सरकारी नौकरी की चाह रखनेवालों को अब भी उस ऐलान पर अमल का इंतजार है. कांग्रेस लगातार जोरशोर से रोजगार का मुद्दा उठाती रही है, लेकिन उसी कांग्रेस पार्टी के दफ्तर के बाहर सरकारी नौकरी के लिए राजस्थान से आएं नौजवान मुर्गा बनकर प्रदर्शन कर रहे हैं. यूपी की तरह राजस्थान में भी सरकारी नौकरियों को लेकर प्रदर्शन जारी हैं राज्य के सरकारी स्कूलों में 65 हजार से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं. राजस्थान के 12 विभागों में हजारों पद खाली हैं.
मध्य प्रदेश में करीब 17 हजार पद खाली
कई महकमों में नौकरी निकालने के बाद आगे की प्रक्रिया रोक दी गई. राजस्थान के 25 लाख से ज्यादा नौजवानों का भविष्य इन नौकरियों मे अटका हुआ है. मध्यप्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति बेहद चिंताजनक है. एमपी सरकार की रोजगार संबंधी वेबसाइट के आंकड़ों की मानें तो मध्य प्रदेश में करीब 33 लाख बेरोजगार हैं, जबकि सूबे में 16 हजार से ज्यादा रोजगार देने वाली संस्थाएं काम कर रही हैं. फिलहाल एमपी में करीब 17 हजार पदों के लिए नौकरियां खाली हैं. बेरोजगारी का आलम ये है कि सिर्फ भोपाल में बीते एक साल के दौरान 22 हजार लोगों ने रोजगार कार्यालय में रजिस्ट्रेशन कराया है. नौकरी के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वालों में सबसे ज्यादा ग्रेजुएट हैं, जिनमें से सिर्फ 7 हजार बेरोजगारों को रोजगार मेलों के जरिए नौकरी मिल पाई है. हालांकि एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिनों पहले ही मंत्रियों के साथ बैठक कर एक लाख नई नौकरियां पैदा करने पर ज़ोर दिया. सरकार का दावा है कि कोरोना काल खत्म होने के बाद रोज़गार में इज़ाफा होगा.
मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का हाल ऐसा ही है. नौकरी के लिए यहां भी बेरोजगार सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने पर बेरोजगारों को नौकरी देने का ऐलान किया गया था, लेकिन दो साल बीत जाने के बावज़ूद बेरोजगारों का धरना-प्रदर्शन जारी है. छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षक भर्ती के लिए 9 मार्च 2019 को वैकेंसी निकाली थी, जिसके बाद 14 जुलाई से 25 अगस्त 2019 तक परीक्षा भी हुई फिर 1 अक्टूबर से 21 नवंबर तक रिजल्ट भी जारी कर दिया गया और 1 नवम्बर 2019 से फरवरी 2020 तक सत्यापन किया गया, लेकिन कोरोना की वजह से भर्ती प्रक्रिया एक साल से रुकी हुई है. हालांकि कोरोना काल में ही कई बार आंदोलन किया गया, जिसके बाद 1 मार्च से 31 मार्च तक 2671 नियुक्ति की गई. मगर अब भी 12 हजार अभ्यर्थी बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. कोरोना ने सिर्फ रोजगार का संकट ही खड़ा नही किया बल्कि इलाज कराने के खर्चे ने लोगों को गरीबी रेखा से नीचे ला दिया.
हेल्थ सिस्टम के कारण लोगों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ा
कोरोना के इलाज के दौरान हुए खर्चे से लोगों का बजट बिगड़ा है. देश में कमजोर सरकारी हेल्थ सिस्टम के कारण इलाज के लिए लोगों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ा. बिहार के ग्रामीण इलाकों में इलाज पर खर्च हुए 100 में से 99.9 रुपए लोगों ने अपनी जेब से भरे हैं. वहीं उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में इलाज पर खर्च हुए 100 में से 98.5 रुपए लोगों ने अपनी जेब से दिया है. मध्य प्रदेश में ग्रामीण इलाकों में 100 रुपए में से 97.9 रुपए लोगों को खुद खर्च करना पड़ा है. तमिलनाडु में 100 में से 97.5 रुपए लोगों ने अपनी जेब से खर्च किया. नतीजा ये रहा कि पिछले एक साल में 6 करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोग सिर्फ मेडिकल खर्चों की वजह से ही गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं. यानि एक तरफ बेरोजगारी की मार तो दूसरी तरफ मेडिकल खर्चों ने लोगों की परेशानी दोगुनी कर दी.


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