सम्पादकीय

आए दिन दस्त नवाचार के

Rani Sahu
2 Aug 2022 6:55 PM GMT
आए दिन दस्त नवाचार के
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हे मेरे ऑफिस के मुझे जबरदस्ती ऑफिस का काम करने को मजबूर करने वाले बेशर्म, बेहया, गंदे, बदतमीज कर्मियों

हे मेरे ऑफिस के मुझे जबरदस्ती ऑफिस का काम करने को मजबूर करने वाले बेशर्म, बेहया, गंदे, बदतमीज कर्मियों। पता नहीं क्यों आज तुम्हें अपना सह कर्मी कहते, अपने को तुम्हारा सह कर्मी बताते मुझे अपने से घिन्न आ रही है। वैसे तो तुम्हारे लाख काम करने के कहने के बाद भी मैंने आज तक इस ऑफिस में तिनका तक इधर से उधर न किया ताकि तुम फिर मुझे ऑफिस का काम करने को कहने से पहले दस बार सोचो। पर अब मैं यहां कोई काम करने वाला नहीं। इसलिए नहीं कि अब मैंने अपनी बदतमीजी में और इजाफा कर लिया है। इसलिए कि इस ऑफिस में पुराने हेड साहब के जाने के बाद जो नए हेड साहब आए हैं, वे मेरी बिरादरी के हैं। गया पुराना साहब! गया पुराना जमाना पुराने हेड साहब के साथ ही जो मुझसे ऑफिस का काम करवाने को मुझसे दिन में पचास पाचस बार गालियां सुनता था। वह था ही इसी लायक। जिसका ऑफिस है, वह अपने ऑफिस में काम करे। कामचोरों को जो कोई साहब काम करने के लिए तंग करेगा तो वह मुझ जैसों से गालियां नहीं सुनेगा तो क्या मेरे जैसे उस पर फूल बरसाएंगे! हे मेरे ऑफिस के पिछले साहब के मुंह लगे बदतमीजो! अब मेरा तुमसे इंच इंच हिसाब करने का समय आ गया है। अब तो मैं तुमसे मुझसे न की गई बदतमीजियों का भी पाई पाई हिसाब लेकर रहूंगा ताकि फिर कभी तुम मेरे जैसों को हमारे हिस्से के काम करने को कहने से पहले सौ बार सोचो।

हे दूसरी बिरादरी के मेरे तमाम ऑफिस वालो! ऑफिस में काम को कोई नहीं पूछता। काम से पहले सब बिरादरी को ही पूछते हैं। वैसे काम करने ऑफिस में आता भी कौन है! सब वेतन लेने ही तो आते हैं। काम करने आते तो हमारे ऑफिस की एक ब्रांच चांद पर भी न खुल जाती। पर यहां तो अपना ऑफिस ही बंद होने वाला है। जिनके पास कान हों, वे कान खोल कर सुनें! जिनके पास बची नाक हो वे नाक फुफकारते सूंघें। अब केवल मेरे ऑफिस में मेरी बिरादरी के हेड साहब आ गए हैं। अब मुझे किसी से कोई डर नहीं। जहां मन करेगा वहां बैठूंगा। जहां मन करेगा वहां लेटूंगा। जहां मन करेगा, वहां थूकुंगा। जिस पर मन करेगा, उस पर थूकुंगा। अब सारा ऑफिस मेरा है। ऑफिस की हर कुर्सी मेरी है। वैसे तो पहले भी मैं अपनी मर्जी से ही ऑफिस आता ऑफिस से जाता था
पर अब तो मैं अपनी पूरी मर्जी से ऑफिस आया करूंगा, ऑफिस से जब मन किया जाया करूंगा। वैसे तो किसी के लाख कहने पर पहले भी मैं समय पर ऑफिस नहीं आता था। किसी के लाख रोकने पर भी ऑफिस में नहीं रुकता था। पर अब देखता हूं, मेरे ऑफिस आने जाने को कौन नोट करता है। ऑफिस न आने पर छुट्टी देने का तो अब सवाल ही नहीं उठता। छुट्टी अब वे दें जिनकी बिरादरी के उनके हेड साहब न हों। देखता हूं अब मेरा वो नालायक बॉस मुझसे ऑफिस न आने पर छुट्टी मांगने का साहस कैसे करता है। उसका बॉसपना हेड साहब के पास जाकर चूर चूर न कर दिया तो मेरा नाम भी…। हेड साहब ही अब अपना नाम है। ऑफिस के सभी को खुलेआम डंके की चोट सूचित किया जाता है कि मेरी बिरादरी के हेड साहब से उनके ज्वाइन करने से पहले ही शिष्टाचारी, अनौपचारिक मुलाकात हो गई है। और उन्होंने मुझे मन से मेरी पीठ थपथपाते आश्वासन दिया है कि मैं ही क्या, मेरी बिरादरी के किसी को भी अब ऑफिस में काम करने को प्रताडि़त नहीं किया जाएगा। जब तक वे हैं, दूसरी बिरादरी वाले ही इस ऑफिस के सारे काम करेंगे। मैं बस, सब पर कड़ी नजर रखूंगा कि वे ऑफिस का काम मन लगा कर कर रहे हैं या नहीं। वे समय पर ऑफिस आ रहे हैं या नहीं। वे समय पर ऑफिस से घर जा रहे हैं या नहीं।
अशोक गौतम

By: divyahimachal

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