सम्पादकीय

द्वेष का निदान

Rani Sahu
17 March 2022 10:10 AM GMT
द्वेष का निदान
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संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव पारित हो गया

संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव पारित हो गया, तो इस पर न केवल बहस तेज हो गई है, बल्कि अन्य धर्मों की भी चर्चा हो रही है। गौरतलब है, 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस्लामिक सहयोग संगठन ने यह प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के पीछे मुख्य रूप से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, कुवैत जैसे देशों का सर्वाधिक सहयोग है। सबसे बड़ी बात कि जिस देश में सहज धार्मिक आजादी नहीं है, ऐसे देश चीन ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। भारत और फ्रांस जैसे चंद देश हैं, जो इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे। भारतीय प्रतिनिधि ने महासभा में खुलकर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि किसी भी धर्म विशेष के लिए ऐसा विशेष दिन नहीं होना चाहिए।

भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत समझता है, पारित प्रस्ताव कोई मिसाल कायम नहीं करता है। इसका नतीजा यह होगा कि कई अन्य धर्मों से संबंधित फोबिया के प्रस्ताव भी संयुक्त राष्ट्र में आएंगे और संयुक्त राष्ट्र धार्मिक खेमों में बंट जाएगा। भारत ने उचित ही यह भी याद दिलाया कि 2019 में ही यह तय हो चुका था कि धार्मिक हिंसा के शिकार लोगों के साथ सहानुभूति जताने के लिए हर साल 22 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाएगा। वास्तव में, 2019 के फैसले के बाद किसी धर्म विशेष के संरक्षण के लिए दिवस घोषित करने की जरूरत नहीं थी। संयुक्त राष्ट्र को धर्म संबंधी घृणा का समग्रता में उपचार करना चाहिए। जब दुनिया में पचास से अधिक विशेष धर्म आधारित देश हैं, इनमें से ज्यादातर देशों में दूसरे धर्मों का विरोध सामान्य रूप से देखा जाता है। आज दुनिया में जहां इस्लाम के प्रति नफरत बड़ा खतरा है, वहीं गैर-इस्लामी पंथों के प्रति घृणा को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इस फैसले या विचार को समता भाव के साथ न्यायपूर्ण नजरिये से देखना चाहिए। बेशक, इस्लामोफोबिया को रोका जाता है, तो इससे भी दुनिया में शांति व सद्भाव को बल मिलेगा।
यहां चिंता इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि इस दिवस के लिए पाकिस्तान सरकार वर्ष 2019 से ही प्रयासरत थी। वर्ष 2020 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सभी मुस्लिम देशों को पत्र लिखा था और उसके बाद ही वर्ष 2021 में पाकिस्तान की पहल पर इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस 15 मार्च को मनाया गया था। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। और तो और, इसी महीने पाकिस्तान में पुलिस ने हाफिजाबाद शहर में अहमदिया मुस्लिम संप्रदाय से संबंधित 45 कब्रों को नष्ट किया है। पाकिस्तानी संविधान आधिकारिक तौर पर इस्लाम के अहमदिया संप्रदाय को काफिर मानता है। दूसरे समाजों, संप्रदायों के प्रति द्वेष का भाव जब वहां संविधान में है, तो इस्लामोफोबिया के प्रति शिकायत कितनी वाजिब है? पाकिस्तान को अपने यहां सद्भाव की कोई चिंता नहीं है, पर कथित रूप से गैर-मुस्लिम देशों में बढ़ते इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए वह कार्य करना चाहता है। दुनिया को सांप्रदायिकता के मामले में ज्यादा ईमानदार होना चाहिए। अगर कोई देश धर्म के आधार पर किसी भी तरह की प्राथमिकता का इजहार कर रहा है या दूसरे धर्म के लोगों के प्रति भेदभाव बरत रहा है, तो उसे ईमानदारी से इंसानियत के दायरे में सोच लेना चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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