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सम्पादकीय
Dhoni Left Captaincy: धोनी ने दिया कप्तान जडेजा को विकल्प, अगर खराब खेलें तो टीम उन्हें आराम दे सकती है
Gulabi Jagat
25 March 2022 10:05 AM GMT
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धोनी तो आखिरकार धोनी ही ठहरे! जब भी क्रिकेट इतिहास में उन कप्तानों की चर्चा होगी
धोनी तो आखिरकार धोनी ही ठहरे! जब भी क्रिकेट इतिहास में उन कप्तानों की चर्चा होगी, जिन्होंने ना सिर्फ अपने फैसलों से टीम की तकदीर बदली बल्कि अपने फैसले लेने के अंदाज से भी हर किसी को चौंकाया, तो उसमें महेंद्र सिंह धोनी का नाम सबसे पहले होगा. एक तरह से देखा जाए तो क्रिकेट में अक्सर चकित करने वाले फैसलों के मामले में धोनी ने अनौपचारिक तौर पर कॉपीराइट हथिया लिया है. तभी तो जब पूरी दुनिया धोनी की कप्तानी को लेकर तमाम लेख लिख चुकी थी. चेन्नई टीम की खूबियों और खामियों का आकलन करते हुए हजारों टीवी शो बन गए थे. धोनी ने टूर्नामेंट शुरू होने से पहले उन सबों की मेहनत पर पानी फेर दिया!
रवींद्र जडेजा को अपना उत्तराधिकारी बनाने के फैसले में धोनी ने लगभग वही किया, जो टीम इंडिया की कप्तानी के दौरान उन्होंने विराट कोहली के साथ किया था. धोनी की अद्भुत क्रिकेट समझ से उन्होंने बता दिया था कि उनकी विरासत को भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम पर ले जाने वाले कोहली थे. अब चेन्नई सुपर किंग्स की महान परंपरा को बरकरार रखने के लिए कप्तान के तौर पर जडेजा से बेहतर विकल्प तो कोई और नहीं. अगर सुरेश रैना ने भावना में बहकर आनन-फानन में धोनी के साथ अंतराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का फैसला नहीं लिया होता, तो शायद वो अब भी क्रिकेट में सक्रिया होते और कौन जानता है कि धोनी की गद्दी पर वही बैठते. लेकिन, रैना अब स्टार स्पोर्ट्स के कॉमेंट्री पैनल की खूबसूरती बढ़ाएंगे. उन्होंने भी ये सार्वजनिक तौर पर माना है कि जडेजा से बेहतर उत्तराधिकारी धोनी का कोई नहीं.
लेकिन, आज मौका रैना या जडेजा की कप्तानी पर बात करने का नहीं बल्कि धोनी के अनूठे व्यक्तिव पर फिर से दिलचस्प नजर डालने की है. धोनी ने जिस तरह से अचानक ही टूर्नामेंट शुरू होने के सिर्फ 2 दिन पहले कप्तानी को अलविदा कहा. उसमें उन सब बातों की झलक मिलती है, जिसके लिए धोनी मशहूर हैं. शायद, धोनी के सिर्फ ऐसे फैसलों को याद करते हुए और उसकी विवेचना करते हुए एक किताब लिखी जा सकती है. मैनेजमैंट स्कूल भी अभी से इस विषय पर केस स्टडी में जुड़ सकते हैं कि क्या है धोनी का अनूठा लीडरशीप मॉडल. जो ना सिर्फ उन्हें विवादों से दूर रखता है, बल्कि साथी खिलाड़ियों, दिग्गजों और युवा खिलाड़ियों के बीच भी उन्हें उतना ही दुलारा बनाए रखता है. और तो और कॉर्पोरेट जगत के बड़े घराने भी धोनी की आभा के आगे बिलकुल नतमस्तक दिखतें हैं.
मालिक होने के बावजूद एन श्रीनिवासन जैसे क्रिकेट प्रशासक और मालिक अपनी टीम का असली मालिक धोनी को ही समझते हैं. और यही वजह है धोनी के फैसलों में भी इस बात की पूरी झलक मिलती है. धोनी कभी भी अपने हित या फिर अपने स्वार्थ की परवाह नहीं करते हैं और चेन्नई सुपर किंग्स के साथ उनका यही रवैया ही उन्हें करोंड़ों फैंस के बीच इतना लोकप्रिय बनाता है.
ये सच है कि धोनी अक्सर क्रिकेट के मैदान और उससे बाहर भी ऐसे फैसले उस वक्त लेते हैं, जब उनसे इसकी उम्मीद सबसे कम होती है. वो लोगों को हमेशा चौंकाने में यकीन रखतें है. लेकिन, इसका मतलब कतई नहीं है कि वो फैसले बिना किसी तर्क या सूझ-बूझ के यूं ही ले लेते हैं. इससे पहले कोई उनकी पोजिशन को लेकर सवाल करता कि अरे माही तो 40 साल के हो गए हैं और उनके बल्ले में पहले वाली बात नहीं. वो तो सिर्फ कप्तान होने के चलते प्लेइंग-11 का हिस्सा बन जाते हैं, तो धोनी ने एक अद्भुत मिसाल दी है.
अब उन्होंने अपनी टीम और नए कप्तान जडेजा को ये विकल्प दिया है कि अगर वो विकेटकीपर बल्लेबाज की भूमिका में उचित योगदान नहीं कर पा रहें हैं, तो टीम उन्हें आराम देने का फैसला भी ले सकती है. ये जबरदस्ती नहीं है कि उन्हें हर मैच में खिलाया ही जाए. आपको पता है ना कि कैसे इस साल धोनी के पास ये विकल्प था कि वो सुपरकिंग्स के लिए रीटेन होने वाले सबसे पहले खिलाड़ी बन सकते थे. लेकिन, उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया, उन्हें नहीं बल्कि जडेजा को सबसे ज्यादा रुपये मिले. धोनी को पहले से पता था कि वो बहुत लंबे समय तक कप्तान या खिलाड़ी के तौर पर चेन्नई का हिस्सा नहीं हो सकते हैं. इसलिए उन्होंने इसकी तैयारी हर किसी के सोचने और समझने से पहले ही कर ली थी.
बहरहाल, धोनी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि कैसे उनकी टीम आसानी से बदलाव के दौर से गुजरे. इस टीम में अनुभवी और रिटायर्ड खिलाड़ियों की भरमार है और ऐसे में जडेजा जैसे नए कप्तान के लिए भविष्य के लिए एक बढ़िया आधार पेश करना धोनी के लिए बड़ा दायित्व है. धोनी जानते हैं जब तक वो ड्रेसिंग रूरम में कप्तान के तौर पर बने रहेंगे. बदलाव की कोई भी प्रकिया बहुत सहज नहीं हो सकती. चाहे कप्तान या लीडर धोनी जैसा कितना भी नम्र क्यों ना हो, किसी नए खिलाड़ी को अपनी टीम बनाने में, अपनी सोच का एक अलग रूप देने में वक्त लगता है. जडेजा को भी वक्त की जरूरत होगी और शायद इसलिए धोनी ने करीब एक साल पहले ऐसा फैसला लेकर जडेजा की यात्रा को और सुगम बनाने की कोशिश की है.
धोनी ने चेन्नई की कप्तानी को शालीन और शानदार तरीके से अलविदा करके अपनी स्वर्णिम यात्रा में एक और सुनहरा अध्याय लिख डाला है. लेकिन, उन चाहने वालों का क्या, जो अब धोनी को हर मैच के बाद अपनी राय देते हुए नहीं देख पाएगे. हार हो या जीत, हर मौके पर धोनी जिस अंदाज में अपनी बात कहते थे वो युवा खिलाड़ियों और कोच के लिए किसी लाइव ट्यूटोरियल से कम नहीं होता था. लेकिन, अब इसकी कमी हर किसी को खलेगी, क्योंकि धोनी प्रेस के समने रूबरु नहीं होंगे.
आपको पता ही है कि अपने सर्वोच्चता के दौर में भी धोनी को अलग से इटंरव्यू देना पसंद नहीं रहा. टीम इंडिया की कप्तानी छोड़ने के बाद उन्होंने प्रेस काॅन्फ्रेंस तक नहीं की. सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर धोनी के करोड़ों चाहने वाले हैं, लेकिन फिर भी एक शब्द नहीं बोलतें हैं. सचिन तेंदुलकर का जन्म-दिन हो या फिर शेन वॉर्न की मौत. धोनी अपनी भावनाओं का इजहार हर हालात में नहीं करना चाहते हैं. शायद यही वजह है कि लोगों को हमेशा ऐसा लगता है कि इस शख्स में कुछ तो बेहद अलग है, जो उन्हें दिगग्जों की फेहरिस्त में भी एक खास स्थान देता है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
Gulabi Jagat
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