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श्राद्ध पक्ष में अब कौए कम दिखाई देते हैं, जबकि भोजन उन्हीं को ध्यान में रखकर बनाया जाता है
श्राद्ध पक्ष में अब कौए कम दिखाई देते हैं, जबकि भोजन उन्हीं को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। सवाल उठता है, गुजरे हुए पुरखों तक भोजन पहुंचाने वाले वाहक रूपी 'कौए' ही नहीं होंगे, तो श्राद्ध की मान्यताएं कैसे पूरी होंगी? शुरू से होता आया है कि श्राद्ध में पितरों का भोजन जब तक कौए नहीं खाएंगे, श्राद्ध की मुकम्मल परंपरा पूर्ण नहीं होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कौए अब भी दिख जाते हैं, लेकिन शहरों में दिखाई नहीं देते।
बदलते वक्त के साथ-साथ श्राद्ध का स्वरूप भी बदल गया। कौओं की जगह श्राद्ध के भोजन पर गली-मोहल्ले के आवारा कुत्ते, भेड़-बकरी आदि जानवर झपट्टा मारते जरूर देखे जाने लगे हैं। मजबूरन अब लोगों ने इन्हीं को कौओं का प्रतिरूप मान लिया है, क्योंकि इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प भी नहीं? लगातार दूषित होते पर्यावरण में पक्षियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई हैं, उन्हीं में कौए भी हैं।
एक वक्त था, जब घरों के आंगन और मुंडेरों पर कौओं की शगुन भरी कांव-कांव की आवाजें सुनाई देती थीं। कौए दूसरे पक्षियों के मुकाबले तुच्छ माने जाते हैं। पुरानी मान्यताओं में इस बात का ज्रिक है कि मरने के पश्चात कौए का शरीर औषधि के तौर पर भी प्रयुक्त किया गया। गौरतलब है, बेजुबान पक्षियों की आबादी घटने में मानवीय हिमाकत प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है। पक्षियों के रहने और खाने की जगहें नष्ट हो रही हैं।
पक्षियों के ठिकाने कच्चे घरों की छत हुआ करती थी, वह अब नदारद हैं। पेड़ों पर भी इनका निवास होता था, वे भी लगातार काटे जा रहे हैं। वह वक्त ज्यादा दूर नहीं, जब श्राद्ध ही क्यों, किसी भी समय कोई पक्षी नहीं दिखाई देगा। आधुनिक सुविधाओं ने इंसानी जीवन को तो सुरक्षित कर दिया है, पर प्रकृति से छेड़छाड़ और धरती के अथाह दोहन ने बेजुबान जीवों का जीवन मुश्किल में डाल दिया।
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के संरक्षक वैज्ञानिक केनेथ रोजेनबर्ग ने कहा भी है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन ने पक्षियों को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई है। विशेषकर कौए, तोते, गिद्ध और गौरैया जैसे पक्षियों को। समूची दुनिया में पक्षियों की आबादी लगभग एक तिहाई खत्म हो चुकी है। सवाल उठता है, कौए को बचाया कैसे जाए। सबसे पहले सामाजिक और सरकारी स्तर पर लोगों को जागरूक करना होगा।
खेती-बाड़ी में कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचना होगा। पक्षियों के प्राकृतिक आवासों को प्रोत्साहित करना होगा, ताकि उनके रहन-सहन को बढ़ावा मिल सके। तमाम ऐसे प्रयास हैं, जिनसे पक्षियों की बची हुई प्रजातियों को बचाया जा सकता है। कौओं की भूमिका को संसार नकार नहीं सकता। पर्यावरण संरक्षण की बात हो, या फिर प्रकृति को संतुलित रखने की बात, हर तरह से कौओं ने अपना महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इतना सब होने के बाद भी उन्हें बचाने के लिए कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं। संख्या तेज गति से कम हो रही है। कौए के बारे में सटीक जानकारी न सरकार के पास है और न वन विभाग के पास।
अमर उजाला
Gulabi
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