सम्पादकीय

धारावी की मिसाल

Subhi
29 May 2021 2:16 AM GMT
धारावी की मिसाल
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जिस दौर में दुनिया के तमाम देशों सहित भारत में कोरोना विषाणु का संक्रमण और उसके खतरे एक जटिल चुनौती बन चुके हैं,

जिस दौर में दुनिया के तमाम देशों सहित भारत में कोरोना विषाणु का संक्रमण और उसके खतरे एक जटिल चुनौती बन चुके हैं, उसमें मुंबई का धारावी इस संकट से कामयाब लड़ाई का आदर्श बन कर सामने आया है। यों पिछले साल कोरोना के कहर के दौरान भी सबके लिए यह चौंकाने वाला मामला था कि झुग्गी बस्तियों की घनी रिहाइश वाले इलाके धारावी में स्थितियां कैसे नियंत्रण में रहीं। इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर की मार से समूचा देश तबाह है, हर रोज संक्रमितों और मरने वालों की तादाद देश सहित समूची दुनिया के लिए चिंता का मामला बना हुआ है, धारावी ने एक बार फिर यह साबित किया है कि अगर सुचिंतित तरीके से हौसले के साथ हालात का सामना किया जाए तो सबसे मुश्किल चुनौती से भी पार पाया जा सकता है।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अप्रैल में जहां एक दिन में धारावी में कोविड-19 के मामले करीब सौ तक पहुंच गए थे, वहीं अब पिछले कुछ दिनों से वहां संक्रमण के महज पांच या इससे भी कम नए मामले सामने आ रहे हैं। जबकि मुंबई में यह आंकड़ा अब भी रोज हजारों में है। इसके अलावा, इलाज करा रहे मरीजों की संख्या घट कर पचास हो गई है। हालांकि धारावी के बारे में आया ताजा आकलन कोई अचानक पैदा हुई परिस्थिति का नतीजा नहीं हैं। इससे पहले जब कोरोना विषाणु शुरुआती दौर में ही देश भर में कहर बरपा रहा था, तब भी धारावी के निवासियों ने इस महामारी से निपटने के मामले में एक शानदार मिसाल सामने रखी थी। मुंबई में काफी दूर तक फैला और भीड़-भाड़ वाला झुग्गियों का यह कस्बा देश के उन इलाकों में शामिल था, जिन पर पिछले साल कोविड-19 का बहुत ज्यादा कहर बरपा था। लेकिन आज अगर चुनौतियों के बीच धारावी पर सबकी नजर है, तो इसकी वजहें रही हैं।
बृहन्मुंबई महानगरपालिका के अधिकारियों का कहना है कि 'धारावी मॉडल' और टीकाकरण अभियान ने इलाके में दूसरी लहर को कामयाबी के साथ रोकने में मदद की। सही है कि टीकाकरण का इसमें एक अहम योगदान रहा, लेकिन इस इलाके के लोगों और प्रशासन ने इस महामारी का सामना करने के लिए जिस स्वरूप में लड़ाई की, उसने सबसे ज्यादा बड़ी भूमिका निभाई। यही वजह है कि आज उस स्वरूप को 'धारावी मॉडल' के नाम से जाना जाने लगा है। साफ है कि पहले दौर में जिस तरह की सावधानियां बरती गईं और उसमें निरंतरता कायम रखी गई, उसी का यह हासिल है कि दूसरी लहर में भी यह अहम फर्क दर्ज किया गया।
दरअसल, आज भले ही टीकों के रूप में कोरोना पर काबू पाने की एक उम्मीद सबके सामने है, लेकिन शुरू में सबके लिए चिंता की बात यही थी कि जिस घातक बीमारी की कोई दवा नहीं है और जिसके संक्रमण का खतरा व्यापक है, उससे कैसे लड़ा जाएगा। ऐसे में संक्रमण से बचाव ही अकेला रास्ता था और इसके लिए कई स्तरों पर काम किया जा रहा था। लेकिन धारावी में यह चुनौती ज्यादा गहरी थी क्योंकि बेहद घनी बस्ती वाले इलाके की आबादी और उसका घनत्व संक्रमण से लिहाज से बेहद खतरनाक है। ऐसे में प्रशासन ने एक व्यापक और सुचिंतित योजना के तहत चार 'टी' यानी ट्रेसिंग, ट्रैकिंग, टेस्टिंग और ट्रीटिंग के फार्मूले पर काम किया और इसमें वहां के निवासियों ने भी भरपूर साथ दिया। जब विषाणु का प्रसार धीमा पड़ा था, तब भी वहां जांच और मामलों का पता लगाने का काम जारी रहा। इसी का हासिल तब भी दिखा था और विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित विश्व बैंक ने भी 'धारावी मॉडल' की तारीफ की थी। जाहिर है, देश के दूसरे हिस्सों में इस स्वरूप पर काम किया जाए तो वहां भी कामयाबी की उम्मीद की जा सकती है।

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