सम्पादकीय

उत्तराखंड धाम में आये 'धामी'

Triveni
4 July 2021 2:59 AM GMT
उत्तराखंड धाम में आये धामी
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देव भूमि कहा जाने वाला छोटा सा पहाड़ी मगर सीमान्त राज्य उत्तराखंड मुख्यमन्त्रियों के लिए 'बहारों के सपने' बना हुआ है।

आदित्य चोपड़ा| देव भूमि कहा जाने वाला छोटा सा पहाड़ी मगर सीमान्त राज्य उत्तराखंड मुख्यमन्त्रियों के लिए 'बहारों के सपने' बना हुआ है। जिस तेज गति से पिछले चार महीनों में इस प्रदेश में तीन मुख्यमन्त्री बदले गये हैं उससे यह प्रतीत होता है कि राज्य की शासन व्यवस्था को संभालना टेढी खीर है। बेशक इस राज्य की चुनौतियां इसके छोटे होने के बावजूद बहुत बड़ी हैं जिनमें सबसे प्रमुख इसका सर्वांगीण विकास है। ऐसा लगता है कि अगले साल मार्च महीने में होने वाले इस राज्य के चुनावों से पूर्व सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने सारे विकल्प खंगाल लेना चाहती है और राज्य की जनता को विश्वास दिलाना चाहती है कि उसके पास नेतृत्व के विकल्प की पूरी एक शृंखला है जिसमें बुजुर्ग से लेकर युवा चेहरे तक शामिल हैं। अतः घनघोर रूढि़वादी समझे गये श्रीमान तीरथ सिंह रावत के स्थान पर पार्टी नेतृत्व ने इस बार युवा चेहरे पुष्कर सिंह धामी पर दांव खेला है।

पिछले 2017 के चुनावों में शानदार विजय प्राप्त करने वाली भाजपा के साढे़ चार साल में वह तीसरे मुख्यमन्त्री होंगे। राज्य के कुमाऊं संभाग के खटीमा चुनाव क्षेत्र से दो बार के विधायक धामी को मुख्यमन्त्री बना कर भाजपा ने यह सन्देश जरूर देने की कोशिश की है कि मुख्यमन्त्री पद पर किसी भी साधारण कार्यकर्ता का भी दावा हो सकता है। धामी पार्टी की विद्यार्था शाखा से होते हुए युवा शाखा में उच्च पदों पर रहे हैं मगर एक राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी पहचान सामान्य ही रही है। चुनावों से पूर्व इस पहचान पर भरोसा जताते हुए पार्टी ने बेशक एक दांव खेला है जिसे वह चुनावों में भुनाने की कोशिश करेगी। मगर देखना यह होगा कि पिछले साढे़ चार साल के दौरान राज्य में जिस प्रकार प्रशासन चला है और विभिन्न घपलों व अनियमितताओं की गूंज रही है उस पर धामी किस प्रकार पर्दा डालते हुए अपने नेतृत्व की ताजगी की फुहार डालेंगे। राज्य में भाजपा का असली मुकाबला कांग्रेस से ही होगा जिसमें फिलहाल अच्छी खासी धड़ेबाजी का कार्यक्रम बदस्तूर जारी है।
भाजपा ने चार महीने के लिए ही सत्ता का सुख भोगने वाले मुख्यमन्त्री श्रीमान तीरथ सिंह रावत की विदाई इसीलिए की क्योंकि हुजूर ने अपनी बयानबाजी से उत्तराखंड को सीधे 18वीं सदी में पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्हें कोरोना संक्रमण के भीषण दौर में विगत मार्च महीने में श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटा कर मुख्यमन्त्री इस मंशा से बनाया गया था कि वह राज्य की जनता का विकास आधुनिक दौर के मुताबिक वैज्ञानिक नजरिये के साथ करेंगे मगर जनाब ने कोरोना के भीषण दौर में हरिद्वार में कुम्भ मेला लगाने की इजाजत देकर अपनी रूढि़वादिता का परिचय इस बयान के साथ दिया कि 'गंगा मैया कोरोना को ही धो डालेगी'। जनाब के इस बयान से भाजपा 'धन्य' हो गई और इसके बाद कोरोना ने उत्तराखंड में अपने पंख इस तरह पसारे कि हुजूर को भी 'कोरोना' हो गया। लोगों को लगा कि तीरथ सिंह रावत अगर किसी तीर्थ स्थान के महन्त होते तो ज्यादा सफल मठाधीश हो सकते थे। भाजपा आलाकमान को अपनी गलती का तभी एहसास हो गया था क्योंकि तब स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हरिद्वार पधारे विभिन्न साधू मंडलों व अखाड़ों के महन्तों से अपील की थी कि वे कुम्भ स्नान प्रतीकात्मक रूप से करके इसे सम्पन्न करें।
प्रधानमन्त्री की अपील को साधु-सन्तों ने स्वीकार किया और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिचय दिया। इसी वजह से तीरथ सिंह को अप्रैल में हुए साल्ट विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव नहीं लड़ाया गया और उनके लिए छह महीने के भीतर किसी अन्य स्थान की खोज भी नहीं की गई। पूत के पांव पालने में ही देखकर भाजपा ने यह फैसला किया होगा। (छह माह के भीतर तीरथ सिंह को विधानसभा सदस्य बनना जरूरी था) जाहिराना तौर पर एक सांसद होते हुए तीरथ सिंह रावत की पहचान बहुत सीमित थी जिसे वह मुख्यमन्त्री बनने के बावजूद विस्तार नहीं दे पाये और अपने ही वैचारिक संसार में सिमट कर रह गये। उनसे पूर्व के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत चार साल तक मुख्यमन्त्री रहे मगर लगातार विवादों में घिरे रहे। उन्हें हटा कर भाजपा ने जब तीरथ सिंह रावत को मुख्यमन्त्री बनाया तो ठीक ऐसा ही हुआ कि 'आसमान से गिरे और खजूर में अटके'। अब पुष्कर सिंह धामी को गद्दी इस उम्मीद से सौंपी गई है कि वह अपने युवा नेतृत्व का कुछ चमत्कार दिखा कर राज्य की जनता में वह भरोसा पैदा कर सकेंगे जिससे जनता का विश्वास भाजपा की नीतियों में जगे।
दरअसल उत्तराखंड को फिलहाल ऐसे मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है जो राज्य का आर्थिक विकास बेदाग होकर कर सके। बहुत ही साधारण परिवार में जन्में धामी एक फौजी के पुत्र हैं और युवा हैं अतः उनकी कार्यक्षमता निश्चित रूप से सशक्त हो सकती है, मगर राजनीति में आयु का उतना महत्व नहीं होता जितना कि विचारों का और दिल से नौजवान होने का। इस राज्य में सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन की है जबकि लगभग हर परिवार का एक व्यक्ति फौज में होता है। राष्ट्र सेवा यहां के नागरिकों के दिलों में बसी पड़ी है। सबसे ज्यादा खराब हालत यहां के दलितों की है जिनकी पीढि़यां दर पीढि़यां गांवों के किनारे गन्दी बस्तियों में अपना जीवन गुजारती आ रही हैं। दूसरी समस्या पर्यावरण असन्तुलन की है क्योंकि अन्धे विकास ने पहाड़ों को कंक्रीट का जंगल बनाने की कमर कस रखी है। इनमें भी एक समस्या सैकड़ों की संख्या में छोटी-छोटी पनबिजली परियोजनाओं की है जिन्होंने पहाड़ों का सन्तुलन ही बिगाड़ कर रख दिया है। मगर श्री धामी के पास केवल छह महीने का समय है और इस दौरान वह पिछली भूलों का सुधार नहीं कर सकते, केवल उनकी रफ्तार कम करने का प्रयास कर सकते हैं। पर्यटन इस राज्य का प्रमुख व्यवसाय है जिसके लिए मजबूत आधारभूत विकास की जरूरत इस तरह है कि पहाड़ों का सौन्दर्य भी बचा रहे और विकास की धुन भी बजती रहे। इस तरफ जितनी मेहनत से काम होगा उतना ही यह पहाड़ी राज्य और विकसित होगा। मगर पहले यह खनन, रेत व लकड़ी माफियाओं के चंगुल से मुक्त तो हो।


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