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- विकास बनाम पर्यावरण
Written by जनसत्ता: सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में एक रेलवे उपरिपुल के निर्माण के खिलाफ लंबित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पर्यावरण की रक्षा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मानव जीवन की अहमियत भी उससे कम नहीं है। इस फैसले का संदर्भ यह कि बंगाल में जिस रेलवे पारपथ पर उपरीपुल बनाया जाना था, वहां दुर्घटनाओं में अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है।
इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट में याचिका के कारण यह परियोजना 2018 से लटकी हुई थी। इसकी व्यावहारिकता की जांच के लिए 2020 में शीर्ष अदालत ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। अब इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विकास और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बीच एक प्रतिस्पर्धा सदैव चलती रहती है। इसमें संदेह नहीं कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी और पर्यावरण को संरक्षित करने की आवश्यकता है, लेकिन देश के आर्थिक विकास और कभी-कभी नागरिकों की सुरक्षा के हित में विकास योजनाओं को रोका नहीं जा सकता।
जाहिर है, अदालत के इस रुख का निहितार्थ यह है कि विकास और पर्यावरण साथ-साथ चल सकते हैं। इनमें संतुलन बनाया जा सकता है। लेकिन आम तौर पर देखें तो विकास और इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर दुनिया दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। दोनों ही पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। दोनों के ही अपने संगठन और पैरवीकार हैं जो एक खास किस्म के अतिवाद के शिकार हैं।
हालांकि सभी को पता है कि बीच का रास्ता निकालने से ही बात बनेगी। विकास के नाम पर आधारभूत परियोजनाओं, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, खदानों, ताप बिजली संयंत्रों और धुआं उड़ाती गाड़ियों को ही देखा जाता है। लेकिन यह भी गौरतलब है कि स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में भी दुनिया काफी तेजी से आगे बढ़ रही है। तकनीकी या आर्थिक विकास के बिना करीब सात अरब आबादी वाली इस धरती को बचा पाना मुश्किल है।
लेकिन अक्सर तकनीक के योगदान को अनदेखा कर दिया जाता है। सड़कों पर घूम रहे इलेक्ट्रिक वाहन भी विकास का एक चेहरा हैं। कल्पना की जा सकती है कि इंटरनेट, गूगल, ई-मेल ने कितने लाख टन कागज बचाए होंगे और कितने पेड़ों को कटने से बचाया होगा। बहुत कम लोगों को याद होगा कि चूल्हे से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए देश में पहला कानून 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल में बनाया था। बाद में 1912 में यही कानून मुंबई में लागू किया गया। रसोई गैस ने महिलाओं को चूल्हे के दमघोंटू धुएं और न जाने कितनी बीमारियों से मुक्ति दिलाने के अलावा कितना बड़ा वन क्षेत्र बचाया होगा।
ऐसे में यह बहस बेमानी है कि विकास पर्यावरण का विरोधी है और लोगों को पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रगति और सुरक्षा से समझौता करना सीखना चाहिए। विकास की गाड़ी को अवरुद्ध करने के बजाय उन चीजों पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए जिनसे प्रदूषण फैलता है। रेलवे फाटकों पर होने वाले हादसों में हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है।
इसलिए लोगों का जीवन बचाने के लिए एक रेलवे उपरिपुल की परियोजना को लटकाने की मांग पर व्यावहारिक कसौटी पर विचार किया जाना चाहिए। विकास और पर्यावरण में एक संतुलन स्थापित करने की जरूरत है। पूरी दुनिया इसी के लिए प्रयासरत है। यह सही है कि अगर धरती रहने लायक नहीं रह गई तो विकास निरर्थक हो जाएगा, लेकिन अगर विकास की गाड़ी रुक गई तो धरती को बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।
क्रेडिट : jansatta.com