सम्पादकीय

विकास बनाम बदहाली

Subhi
27 April 2022 5:17 AM GMT
विकास बनाम बदहाली
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वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। मगर अच्छी बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के अगले दो वर्षों तक दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने का अनुमान है।

Written by जनसत्ता; वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। मगर अच्छी बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के अगले दो वर्षों तक दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने का अनुमान है। 2022-23 में यह नौ फीसद और 2023-24 में 7.1 फीसद की दर से आगे बढ़ सकती है। मगर प्रश्न है कि क्या यह वृद्धि समावेशी विकास को आगे बढ़ाएगी? फिलिप वक्र की मान्यता है कि महंगाई बढ़ने के साथ बेरोजगारी कम होती है, लेकिन वर्तमान में इसके उलट देखने को मिल रहा है। तीव्र गति से बढ़ती महंगाई के साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। चिंतन का विषय है कि भविष्य के लिए प्रभावी रणनीति क्या हो? इसी कड़ी में वृद्धि बनाम विकास का विवाद चर्चा में है।

आर्थिक संदर्भ में वृद्धि, आय या उत्पादन से होने वाले परिवर्तन को दिखाती है और मात्रात्मक होती है। वहीं दूसरी ओर विकास की धारणा व्यापक है। यह गुणात्मक होता है। इसमें वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरणीय सकारात्मकता, शासन जैसे विषय समाहित हैं। उल्लेखनीय है कि आय से जीवन स्तर तो सुधारा जा सकता है, लेकिन जीवन की गुणवत्ता के सुधार में आय के अलावा अन्य बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं। यानी आय कितनी भी अधिक हो, अगर व्यक्ति स्वस्थ नहीं है तो वह सब कुछ नहीं खा सकता है।

इसी प्रकार शिक्षा अवसर के विकल्पों को बढ़ाती है, सम्मान आदि का माध्यम बनती है, जो कि सिर्फ आय से संभव नहीं है। उल्लेखनीय है गुणवत्ता युक्त जीवन और समावेशी विकास भी आय सृजन का बड़ा स्रोत बनता है। यूएनडीपी द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया गया कि अगर कोई राष्ट्र साक्षरता को बीस प्रतिशत की दर से बढ़ा देता है, तो उसकी वृद्धिदर पांच प्रतिशत बढ़ने की संभावना होती है। इस प्रकार स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि वृद्धि और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, न कि प्रतिद्वंद्वी।

भले भारतीय अर्थव्यवस्था की गति तीव्र हो, लेकिन प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि कैसे न्याय संगत विकास से समझौता किया जा रहा है। जैसे खराब होती वायु गुणवत्ता, जिसके चलते नब्बे प्रतिशत लोग दूषित हवा में सांस लेने को विवश हैं। ऐसे ही असुरक्षित, अस्वास्थ्यकर, असंवहनीय खाद्य प्रणालियां प्रति वर्ष लाखों अकाल मृत्यु का कारण बन रही हैं। इसी तरह सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन एकोनामी के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2021 में भारत की बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गई थी। यानी अर्थव्यवस्था का वर्तमान प्रारूप आय, धन, शक्ति के असमान वितरण की ओर ले जा रहा है। यानी गरीबों और अमीरों में विषमता की खाई गहरी हुई है।

आज से पचास वर्ष पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया गया था। निस्संदेह आर्थिक विकास हुआ है, लेकिन कुछ सुधारों के साथ समस्या लगभग ज्यों की त्यों है। कारण है कि हमने आर्थिक संवृद्धि की डोर तो पकड़ रखी है, लेकिन आय अंतराल पर ध्यान नहीं दिया। यानी संवृद्धि कुछ चुनिंदा वर्गों तक ही सीमित रही है। इसलिए अब नारा होना चाहिए विषमता हटाओ देश बचाओ। इसके लिए आवश्यक है कि दूरगामी नीतियां आय वृद्धि के साथ न्यायसंगत विकास पर केंद्रित हों।


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