सम्पादकीय

भूख का विकास

Subhi
19 Oct 2022 5:26 AM GMT
भूख का विकास
x
किसी भी देश के विकास के पैमाने अगर अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में दर्शाए जाते हैं और जमीनी हकीकत की अनदेखी की जाती है, तो उसका नतीजा विरोधाभासी निष्कर्षों की भूमिका ही बनाएगा।

Written by जनसत्ता: किसी भी देश के विकास के पैमाने अगर अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में दर्शाए जाते हैं और जमीनी हकीकत की अनदेखी की जाती है, तो उसका नतीजा विरोधाभासी निष्कर्षों की भूमिका ही बनाएगा। पिछले कई सालों से लगातार हमारे देश में आंकड़ों के जरिए विकास की चमकती तस्वीर पेश की जाती रही है, मगर यह समझना मुश्किल है कि फिर आम लोगों के जीवन-स्तर में कोई सुधार आने के बजाय उसमें लगातार गिरावट क्यों आई! जीवन के लिए खाना-पीना न्यूनतम कसौटी है। पर अगर लोग इस मामले में कई स्तर पर मुश्किलों का सामना कर रहे हों तो यह एक गंभीर सवाल है।

गौरतलब है कि भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले वैश्विक भुखमरी सूचकांक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस समस्या पर काबू पाने के मामले में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। रिपोर्ट में भारत को एक सौ इक्कीस देशों की सूची में एक सौ सातवें पायदान पर रखा गया है, जो पिछले साल के मुकाबले छह अंक और नीचे है। 2021 में भारत एक सौ सोलह देशों में एक सौ एकवें स्थान पर था।

इस आकलन के निष्कर्षों को आधार माना जाए, तो भूख की समस्या से निपटने के मामले में भारत अपने कई पड़ोसी देशों से भी पिछड़ गया है। श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान जैसे अपेक्षया कमजोर माने जाने वाले देश भी अगर भुखमरी से निपटने के मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं तो यह इस मसले पर बनने वाली नीतियों और उनके अमल के बारे में फिर से विचार करने की मांग करता है।

हालांकि यह भी सच है कि इन छोटे देशों का भूभाग और उनकी आबादी चूंकि भारत से बहुत कम है, इसलिए किसी योजना के लागू होने को लेकर तुलना करते हुए सावधानी बरतने की जरूरत है, फिर भी यह तथ्य तो है कि इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। फिर एक पहलू यह भी है कि पिछले करीब तीन सालों से महामारी और उससे निपटने के क्रम में लगाई गई पूर्णबंदी का सामना करते हुए दुनिया के तमाम देशों की तरह भारत को भी जिस आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है, उसका असर नीचे तक होगा।

इसके बावजूद सरकार से यह उम्मीद स्वाभाविक है कि वह उन समस्याओं को दूर करने की दिशा में प्राथमिकता के साथ काम करे, जिससे आम लोगों का जीवन सीधे प्रभावित होता है। अगर कोई व्यक्ति भूख जैसी समस्या से दो-चार रहेगा तो देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में अपना ठोस योगदान देना तो दूर, वह अपनी सेहत और जिंदगी तक को नहीं संभाल पाएगा। यों भारत की ओर से भुखमरी के सूचकांक की रिपोर्ट तैयार करने के मानकों को लेकर सवाल उठाया गया है और इसे भारत की छवि को धूमिल करने के लिए किया गया कुटिल प्रयास बताया है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे गलतियों का पुलिंदा करार दिया है। सही है कि महज तीन हजार लोगों के उदाहरण और संकेतकों की छोटी सीमा में इतने बड़े देश और उसकी बड़ी आबादी के बारे में निष्कर्ष पूरी तरह सटीक नहीं भी हो सकते हैं। लेकिन पिछले करीब तीन सालों से महामारी और इसकी मार से तबाह अर्थव्यवस्था के बीच रोजगार और आय की तस्वीर जिस कदर बिगड़ी है, उसमें हकीकत को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। संभव है कि रिपोर्ट पर उठाए गए सवालों के अपने आधार हों, मगर यह भी सच है कि भुखमरी की समस्या को पूरी तरह खारिज या नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


Next Story