सम्पादकीय

देउबा का दौरा

Subhi
5 April 2022 3:58 AM GMT
देउबा का दौरा
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नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हाल की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए नए युग की शुरुआत से कम नहीं है। इस यात्रा का बड़ा हासिल तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता में देउबा ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए सहमति जताई।

Written by जनसत्ता: नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हाल की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए नए युग की शुरुआत से कम नहीं है। इस यात्रा का बड़ा हासिल तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता में देउबा ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए सहमति जताई। उन्होंने इस बात को माना कि यह विवाद शांतिपूर्ण तरीके से ही हल होना चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि दो साल पहले नेपाल के साथ रिश्तों में तनाव सीमा विवाद को लेकर ही पैदा हुआ था। यह ज्यादा दुखद इसलिए भी था कि जिस देश के साथ हमारे रिश्ते सदियों से रहे हैं, उसके साथ आखिर सीमा को लेकर विवाद क्यों होना चाहिए। लेकिन नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन के प्रभाव में थे।

उन्होंने इस विवाद को जिस तरह से उठाया, वह भारत के लिए कम तकलीफदेह नहीं था। ऐसे में देउबा जिस नई उम्मीद के साथ भारत आए और सीमा विवाद हल करने को लेकर जो सकारात्मक रुख दिखाया, उससे एक उम्मीद बंधी है। हालांकि भारत ने यह भी साफ कर दिया कि सीमा विवाद मुद्दे को लेकर नेपाल के भीतर राजनीति नहीं होनी चाहिए। और यह सही भी है कि अगर नेपाल सरकार और वहां के राजनीतिक दल इस विवाद का राजनीतिकरण करके इसमें हित देखने की कोशिश करेंगे, तो विवाद सुलझने के बजाय पेचीदा होता जाएगा और दूसरी ताकतें इसका फायदा उठाने का मौका नहीं छोड़ेंगी। ऐसी स्थिति भारत से कहीं ज्यादा नेपाल के लिए नुकसानदायक साबित होगी।

गौरतलब है कि भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद कोई दो सौ साल से भी पुराना माना जाता है। पर कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इसे लेकर दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आई हो। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में समय-समय पर ऐसे संकेत सामने आने लगे थे, जिससे दोनों पक्षों को लग रहा था कि अब इस विवाद का स्थायी और सर्वमान्य हल निकालना चाहिए।

इसीलिए 1996 में पहली बार दोनों देशों के बीच समाधान को लेकर सहमति बनी थी। पर तब भी इसका हल निकल नहीं पाया था। सीमा विवाद ने गंभीर रूप तब धारण किया जब नेपाल सरकार ने पिथौरागढ़ जिले के चीन से लगते हिस्सों, लिपुलेख दर्रे सहित कालापानी और लिंपियाधुरा को अपने आधिकारिक नक्शे में दिखा दिया। यह ऐसा कदम था जो इस पड़ोसी देश ने पहले कभी नहीं उठाया था। जिन सीमाई इलाकों को लेकर विवाद की बात कही जाती रही है, वे सामरिक दृष्टि महत्त्वपूर्ण हैं और चीन इसमें अपने हित देख रहा है।

अब अच्छी बात यह है कि दोनों देश पुरानी बातों को भूल कर नए सिरे से आगे बढ़ने पर सहमत हुए हैं। सीमा विवाद हल करने के लिए द्विपक्षीय तंत्र बनेगा और वह सभी व्यावहारिक उपायों पर चर्चा करेगा। अगर दोनों पक्ष किसी भी तरह के विवाद को हल करने की ठान लें तो कौन रोक सकता है! बस इच्छाश्क्ति होनी चाहिए। याद करें, बांग्लादेश के साथ भूमि और समुद्री सीमा विवाद बातचीत से हल हुए। नेपाल भी यह अच्छी तरह समझता है कि भारत से उसके रिश्ते रोटी-बेटी के रहे हैं। उसके विकास में भारत हमेशा से योगदान करता आया है।

1954 में भारत ने नेपाल में सहायता मिशन इसीलिए स्थापित किया था कि उसे हर तरह से मदद दी जा सके। भूकम्प जैसी आपदाओं में भी नेपाल को सामान से लेकर आर्थिक सहायता के रूप में सबसे ज्यादा मदद देकर भारत बड़े भाई का फर्ज अदा करता आया है। ऐसे में अगर नेपाल भारत के शत्रुओं के इशारे पर विवाद खड़े करेगा तो पारंपरिक रिश्ते मजबूत कैसे होंगे?


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