सम्पादकीय

चिंता का सबब बनते बेसहारा मवेशी, सड़क हादसों की बन रहे एक बड़ी वजह

Gulabi
15 Dec 2021 5:19 AM GMT
चिंता का सबब बनते बेसहारा मवेशी, सड़क हादसों की बन रहे एक बड़ी वजह
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चिंता का सबब बनते बेसहारा मवेशी
सुधीर कुमार। कृषि-प्रधान देश होने के कारण भारत में पशुपालन का भी लंबा इतिहास रहा है। पशु दूध, मांस, ऊन, शक्ति, यातायात और मनोरंजन आदि के प्रमुख स्नेत होने के साथ-साथ कृषि कर्म में सहयोग कर किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक रहे हैं। हालांकि कृषि में बढ़ते मशीनीकरण, एक समय उपरांत पशुओं की उपयोगिता के समाप्त होने तथा रखरखाव पर अतिरिक्त व्यय होने के कारण कई पशुओं को भोजन और आश्रय से वंचित कर बेसहारा छोड़ दिया जाता है। यह स्वार्थी प्रवृत्ति देश में एक नई राष्ट्रीय समस्या को जन्म दे रही है।
पशुओं के बेसहारा और बेलगाम होने के कारण कई स्तरों पर मुसीबतें बढ़ जाती हैं, जिस पर सोचने की जरूरत है।दरअसल सार्वजनिक चारागाहों के कम होने के कारण तथा आवास और भोजन की तलाश में आवारा पशु यत्र-तत्र भटकते रहते हैं। ऐसे में उनसे सबसे ज्यादा कोई परेशान होता है तो वे हमारे किसान हैं, जो बड़ी मेहनत से अनाज उपजाते हैं, लेकिन पशु पलभर में ही खेतों में खड़ी फसलों को चट कर जाते हैं या नुकसान पहुंचाते हैं।
इतना ही नहीं, भोजन की तलाश में वे कई बार सड़कों, रेल की पटरियों के बीच में आ जाते हैं, जिससे यातायात तो प्रभावित होता ही है, दुर्घटना की आशंका भी बढ़ जाती है। कई मामलों से इसकी पुष्टि होती हैइसी साल अप्रैल में दिल्ली की एक स्थानीय निकाय इकाई ने बेसहारा पशुओं पर चिप लगाने की योजना की घोषणा की थी, जिसमें उस पशु के मालिक के बारे में सूचना होती। बेसहारा पशु के घूमते पाए जाने पर उस चिप से प्राप्त सूचना के आधार पर संबंधित मालिक पर प्रत्येक बार 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाए जाने का भी प्रविधान था।
इस तरह की योजना पूरे देश में लागू की जानी चाहिए, जिससे पशुओं को बेसहारा करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सके और संबंधित लोगों को सबक सिखाया जा सके।20वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक देश में लगभग 50 लाख बेसहारा पशु हैं। 2012 की तुलना में 2019 में ऐसे मवेशियों की संख्या में 3.2 फीसद की कमी दर्ज की गई है। पशुधन जनगणना बताती है कि बेसहारा मवेशियों की सबसे अधिक आबादी वाले 10 राज्यों में से सात में 2012 से 2019 के बीच इनकी संख्या बढ़ी है।
मध्य प्रदेश में बेसहारा पशुओं की संख्या 95, पंजाब में 38, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 34 फीसद तक बढ़ी है। जबकि कई राज्य इन पशुओं को आश्रय दिलाने में कामयाब भी रहे हैं, जिससे उन राज्यों में बेसहारा पशुओं की संख्या में कमी आई है। ओडिशा में इन पशुओं की संख्या में 86, बंगाल में 73, बिहार और तमिलनाडु में 23 फीसद तक कमी आई है। अपंग पशुओं को आवारा छोड़ना, उन्हें बेसहारा करना तथा पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं कराना क्रूरता के सिवाय कुछ नहीं है।
(लेखक बीएचयू में शोधार्थी हैं)
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