सम्पादकीय

कृषि जिंसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज़ी के बाद भी भारत में MSP से कम कीमत पर क्यों बिक रही है खरीफ की फसल

Rani Sahu
11 Nov 2021 3:52 PM GMT
कृषि जिंसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज़ी के बाद भी भारत में MSP से कम कीमत पर क्यों बिक रही है खरीफ की फसल
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देश में बीते कई महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है

संयम श्रीवास्तव देश में बीते कई महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है. किसान मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों ने कृषि कानूनों को रद्द किया जाए और किसानों की फसलें एमएसपी पर खरीदी जाएं. अब तक किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हो गई है. लेकिन मामला अभी तक हल नहीं हुआ है. खैर ये तो रही आंदोलन की बात, लेकिन सवाल उठता है कि जब कृषि जिंसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतें मजबूत हैं. इसके बाद भी देश में खरीफ की ताजा फसलें तय न्यूनतम कीमतों से भी कम दाम पर क्यों बिक रही हैं.

दरअसल अक्टूबर के आधिकारिक कृषि मूल्य के आंकड़ों से पता चलता है कि खरीफ की तमाम तरह की फसलों की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य से औसतन 33 फ़ीसदी से नीचे की जा रही है. कपास और गन्ने की फसलों को छोड़ दिया जाए, तो भी मूंगफली, सोयाबीन और तिलहन फसलों का हाल भी यही है. हाल के महीनों में इनमें तेजी जरूर देखने को मिली, लेकिन भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आयातित खाद्य तेलों पर बुनियादी एक्सपोर्ट टैक्स को धीरे धीरे कम करके इस रुझान को भी एक तरह से समेट दिया.
उपभोक्ताओं और उत्पादकों में सामंजस्य बिठाना होगा
दरअसल जब फसल की कटाई होती है तो उस वक्त बिक्री अपने चरम पर होती है. और यही वजह है कि उस वक्त कृषि उपज की कीमत में गिरावट देखी जाती है. हालांकि इसी से निपटने के लिए आंदोलित किसान यह मांग कर रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक बनाया जाए. ताकि किसानों को यह नुकसान न झेलना पड़े. हालांकि सरकार ग्राहकों के लाभ के लिए और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए कृषि उपज की कीमतों को कम रखने की कोशिश करती है. ताकि उपभोक्ताओं को ज्यादा महंगी चीजें ना खरीदनी पड़ें.
हालांकि इससे किसानों और ग्राहकों के बीच का संतुलन बिगड़ता है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक ऐसी रेखा इन दोनों के बीच खींची जाए जिससे ना तो कृषि से जुड़ी आय प्रभावित हो और ना ही महंगाई से लोगों की जेब ढीली हो.
एमएसपी पर क्यों खरीदी नहीं जा रही हैं फसलें
आज किसानों की हालत ऐसी है कि उनकी ज्यादातर फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं बिकती हैं. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए कृषि के हालात संबंधी रिपोर्ट मैं बताया गया है कि आज कुल उपज का केवल 24.7 फ़ीसदी हिस्सा ही एमएसपी से ऊंचे दाम पर बिकता है. जबकि हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि देश के ज्यादातर घरों में लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूरे या आंशिक तौर पर कृषि से होने वाली आय पर निर्भर है. किसानों के साथ ऐसा तब हो रहा है जब सरकार इस बात की प्रतिबद्धता पहले ही जता चुकी है कि उत्पादकों को उनकी कुल लागत और परिवार के श्रम पर 50 फ़ीसदी का मुनाफा भी दिया जाएगा.
किसान आय संरक्षण योजना को फिर से शुरू किया जाना चाहिए
हमें समझना होगा कि एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाने की मांग क्यों नहीं मानी जा सकती. क्योंकि सरकार किसानों की पूरी उपज को एमएसपी पर नहीं खरीद सकती. ना ही निजी व्यापारी ऐसा कर सकते हैं. हालांकि हमें यही समझना होगा कि किसानों की उपज का इतना कम मूल्यांकन करना भी ठीक नहीं है. उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य बिल्कुल मिलना चाहिए. ऐसे में एक जो सबसे बेहतर समाधान है, वह यह है कि सरकार को फिर से 2018 में शुरू की गई किसान आए संरक्षण योजना को शुरू करना चाहिए. इस योजना के तीन घटक थे जिनमें से दो में ठीक-ठाक बदलाव कर इन्हें बाद में इंप्लीमेंट किया जा सकता है. जैसे अहम फसलों वाले चुनिंदा इलाकों में सरकारी एजेंसियों द्वारा सरकारी खरीद आधारित बाजार में हस्तक्षेप करना. जो फिलहाल किया जा रहा है और दूसरा है क्षेत्रवार उत्पादन लागत आधारित आदर्श मूल्य के अंतर की भरपाई करना. हमें समझना होगा कि जब तक खेती को आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत नहीं किया जाएगा, इस देश का किसान खुश नहीं रह सकता. वह समय-समय पर आंदोलित बना रहेगा.
कपास के लिए मिल गई है एमएसपी
केंद्र सरकार ने बुधवार को ही भारतीय कपास आयोग को कपास सीजन 2014-15 से लेकर 2020-21 तक के लिए 17,000 करोड़ रुपए का समर्थन मूल्य मंजूर कर दिया है. दरअसल कपास देश की सबसे महत्वपूर्ण नगदी फसलों में से एक है और कपास के प्रसंस्करण और व्यापार देश के लगभग 58 लाख कपास किसानों और 400 से 500 लाख लोगों की आजीविका को चलाने में अहम भूमिका होती है. लेकिन सरकारों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि अगर कपास जैसी फसलों पर एमएसपी को मंजूरी दी जा सकती है, तो अन्य खरीफ फसलों पर भी एमएसपी जारी किया जाना चाहिए. वरना होगा यह कि किसान अन्य खरीफ फसलों को उगाना छोड़कर कपास जैसी फसलों पर केंद्रित होने लगेंगे और फिर देश में अन्य फसलों की कीमतें आसमान छूने लगेंगी.
Rani Sahu

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