सम्पादकीय

राहत के बावजूद

Subhi
26 Oct 2022 5:09 AM GMT
राहत के बावजूद
x
इसे लेकर कई स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। ऐसे में अगर किसी भी वजह से प्रदूषण में बढ़ोतरी की स्थिति आती है तो यह हर व्यक्ति, समुदाय और देश के लिए घातक है।

Written by जनसत्ता: इसे लेकर कई स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। ऐसे में अगर किसी भी वजह से प्रदूषण में बढ़ोतरी की स्थिति आती है तो यह हर व्यक्ति, समुदाय और देश के लिए घातक है। विडंबना है कि लगातार जताई जाने वाली चिंता के बावजूद आम लोगों को इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा नहीं हो पाता है और वे अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाते।

हालांकि सीमित संख्या में ही सही, कुछ लोगों ने इस समस्या के चिंताजनक नतीजों को लेकर सोचना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि आमतौर पर दिवाली की रात जहां व्यापक प्रदूषण के चलते सबके लिए घातक बन जाती थी, वहीं इस साल इसमें थोड़ी राहत देखी गई। यों दिल्ली सरकार की ओर से सख्ती की घोषणा के बावजूद लोगों ने जम कर पटाखे जलाए और स्वाभाविक ही इसका असर वायु की गुणवत्ता पर नकारात्मक पड़ा, फिर भी अन्य सालों की अपेक्षा इस साल आतिशबाजी के मामलों में तीस फीसद की कमी दर्ज की गई।

कहा जा सकता है कि हर साल दिवाली के मौके पर प्रदूषण की गंभीरता से उपजे हालात को याद करके कुछ लोगों ने इस बार पटाखों से दूरी बनाई, मगर कुल मिला कर वायु के प्रदूषित होने पर इसका जो असर पड़ा, उसके मद्देनजर इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री के मुताबिक, मंगलवार यानी दिवाली के अगले दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक 323 रहा, जबकि पिछले साल यह 462 था।

जाहिर है, दिल्ली में ऐसे लोगों की संख्या इस बार कुछ बढ़ी है जो आतिशबाजी की वजह से गहराने वाले प्रदूषण को लेकर सचेत थे। मगर वायु गुणवत्ता सूचकांक अब भी खतरनाक स्तर पर चिंताजनक बना हुआ है। निश्चित तौर पर एक विश्वव्यापी समस्या के समाधान के लिए जो रास्ते बताए जा रहे हैं, उसमें सहभागिता करने के लिए समाज का एक छोटा-सा हिस्सा ही सही, आगे आ रहा है। लेकिन यह ध्यान रखने जरूरत है कि इस तरह के सकारात्मक बदलाव की प्रवृत्ति जब मुखर होने लगती है तब सरकारों को भी अपनी भूमिका निभाने के लिए खुद को सक्रिय करना चाहिए।

यह छिपा नहीं है कि दिवाली में आतिशबाजी को लोग एक अनिवार्य चलन मान कर चलते हैं, लेकिन इसी क्रम में होता यह है कि पटाखों के बारूद का धुआं गांव-शहर में हर स्तर की बस्तियों में रहने वालों के लिए दमघोंटू हालात पैदा कर देता है। हर साल दिवाली के अगले दिन सांस की तकलीफ से जूझते लोगों का चिकित्सक के पास या अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचना एक आम रिवायत-सी बन गई है।

लेकिन इस साल दिवाली के बाद दिल्ली के अस्पतालों में सांस की तकलीफ के मामले पिछले साल के मुकाबले कम आए। यों यह भी तथ्य है कि सांस की परेशानी से जुड़ी समस्या की स्थिति में कई बार लोग अस्पतालों का रुख तभी करते हैं, जब उनकी हालत ज्यादा खराब हो जाती है। पिछले सालों की तुलना में कुछ स्तर पर परेशानियों में कमी आई है, लेकिन वायु गुणवत्ता सूचकांक की बेहद खराब स्थिति और पंजाब में पराली जलाए जाने के मामलों के मद्देनजर देखें तो अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी महकमों से लेकर आम लोग खुद अपने स्तर पर त्योहारों को प्रदूषण से मुक्त आबोहवा और रोशनी का संदेश बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे।


Next Story