सम्पादकीय

देश में वन क्षेत्र बढ़ने के बावजूद अपने साम्राज्य को तरस रहा है जंगल का राजा

Rani Sahu
27 Feb 2022 9:00 AM GMT
देश में वन क्षेत्र बढ़ने के बावजूद अपने साम्राज्य को तरस रहा है जंगल का राजा
x
हालांकि देश के समग्र वन क्षेत्र ( Forest Density) में वृद्धि के दावे किए जा रहे हैं

आकाश गुलंकर

हालांकि देश के समग्र वन क्षेत्र ( Forest Density) में वृद्धि के दावे किए जा रहे हैं लेकिन आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक दशक में टाइगर रिजर्व और विशेष रूप से टाइगर कॉरिडोर के वन क्षेत्र में गिरावट आई है.
नवीनतम इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 (ISFR 2021) के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत में टाइगर कॉरिडोर (Tiger Corrider) ने अपना बहुत सारा वन क्षेत्र खो दिया है. टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) अनिवार्य रूप से संरक्षित वन क्षेत्र हैं जो बाघ के आवास के रूप में आरक्षित हैं. जबकि टाइगर कॉरिडोर वो वन खंड हैं जो दो अलग-अलग बाघ अभ्यारण्यों को जोड़ते हैं. ये गलियारे बाघों के साथ-साथ संरक्षित क्षेत्रों में शिकार की आवाजाही का रास्ता खोलते हैं और इस तरह संरक्षण के प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इससे स्थानीय स्तर पर प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा भी कम होता है. सर्वेक्षण के अनुसार, वन क्षेत्र को तीन श्रेणियों में मापा जाता है। अति सघन वन (VDF), मध्यम सघन वन (MDF), और खुला वन
टाइगर कॉरिडोर क्यों जरूरी हैं
दिसंबर 2019 में एक बाघ की खबर बहुत चर्चा में रही थी. इस बाघ ने 150 दिनों में दो राज्यों और 6 जिलों को पार करते हुए लगभग 1300 किलोमीटर की यात्रा की थी. ये बाघ महाराष्ट्र की अपनी गृह टाइगर सैंक्चुरी से चलता हुआ मादा साथी की तलाश में पहले पड़ोसी राज्य तेलंगाना पहुंचा और फिर वहां से वापस महाराष्ट्र के एक अन्य अभ्यारण्य आया. यह सारी यात्रा टाइगर कॉरिडोर के जरिए ही संभव हो पाई थी.
बाघ आमतौर पर अपने शिकार, क्षेत्र और मादा साथी की तलाश में बहुत घूमते हैं. उनको इन यात्राओं को टाइगर कॉरिडोर के माध्यम से सुगम बनाया जाता है जो उन्हें एक संरक्षित क्षेत्र से दूसरे संरक्षित क्षेत्र में जाने में मदद करते हैं.
अरुणाचल प्रदेश में नियुक्त भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी हर्षराज वठौर बताते हैं, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि टाइगर कॉरिडोर महत्वपूर्ण हैं। इनकी महत्ता है कि ये कॉरिडोर मुख्य रूप से इस क्षेत्र में खाद्य-चक्र यानी फूड साइकिल को बनाए रखते हैं और साथ ही मानव व वन्यजीव के बीच के संघर्ष को भी रोकते हैं.'
हर्षराज वठौर के अनुसार, खुला क्षेत्र कम होने पर यहां मानव गतिविधि बढ़ जाती है और ऐसे में बाघ या तो वहां से हटना शुरू कर देते हैं या फिर दूसरी जगहें जाने के लिए छोटा मार्ग तलाशते हैं. ऐसे में दो संभावनाएं उपजती हैं – या तो क्षेत्र में वन्यजीवों की आवाजाही कम हो जाएगी या ज्यादातर मामलों में मानव-वन्यजीव संघर्ष पैदा हो जाएगा. उन्होंने उदाहरण के नाम पर चंद्रपुर जिले का नाम लिया. यह वो क्षेत्र है जो पेंच, कान्हा और कंवल अभ्यारण्यों को जोड़ता है. यहां की अधिकांश जमीन को कृषि भूमि में परिवर्तित कर देने से इस क्षेत्र में मानव व वन्यजीवों के बीच का संघर्ष सबसे ज्यादा नजर आता है.
कॉरिडोर में वन क्षेत्र के आंकड़े
ISFR 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में ऐसे 32 टाइगर कॉरिडोर हैं और इनमें से आधे से अधिक गलियारों (32 में से 18) का समग्र वन क्षेत्र घटा है. देश के मध्य क्षेत्र में स्थित पेंच-सपुतारा-मेलघाट कॉरिडोर के समग्र वन क्षेत्र में 19.17 प्रतिशत गिरावट आई है तो उत्तर भारत में स्थित राजाजी-कॉर्बेट कॉरिडोर का वन क्षेत्र में 17.37 प्रतिशत तक सिकुड़ गया है. वहीं कुल 14 कॉरिडोर का फॉरेस्ट कवर बढ़ा है. हालांकि 14 में से 11 कॉरिडोर में यह वृद्धि महज एकल अंक की है.
वठौर का कहना है कि टाइगर कॉरिडोर के साथ समस्या ये है कि इनमें कुछ को चिन्हित किया गया है जबकि कुछ को नहीं. इसके अलावा कानूनी स्तर पर भी इन कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं रखा गया है.
वठौर के अनुसार, जहां तक टाइगर कॉरिडोर की बात है तो ये सामुदायिक भूमि, सरकारी संपत्ति, निजी संपत्ति, राजस्व भूमि, या यहां तक कि वन भूमि भी हो सकता है. टाइगर कॉरिडोर भी हालांकि वन भूमि है लेकिन अभ्यारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों में भू उपयोग को लेकर जैसे प्रतिबंध लग सकते हैं, वो यहां लागू नहीं हो सकते. यही वजह है कि कॉरिडोर को डेवलप या मेंटेन करने के लिए हम उतनी राशि खर्च नहीं कर सकते. हालांकि पहले ये राशि और भी कम थी.
टाइगर कॉरिडोर में भूमि उपयोग पर उन्होंने कहा कि हालांकि ये जमीन बाघ के उपयोग के लिए छोड़ी गई है लेकिन स्थानीय लैंड यूज, वन विभाग की परियोजना या ऐसा ही कोई और काम इस जमीन के सही प्रयोग को रोक सकता है. साथ ही, ऐसी जमीनों का उपयोग अक्सर कृषि उद्देश्य के लिए किया जाता है. ये तमाम बातें वनों को काटने की वजह बनती हैं जिसके चलते क्षेत्र के छत्र घनत्व में गिरावट आती है.
वन आवरण में परिवर्तन
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021, टाइगर कॉरिडोर में तीनों श्रेणियों के तहत फॉरेस्ट कवर में परिवर्तन का विस्तृत विश्लेषण देती है. रिपोर्ट के अनुसार, राजाजी-कॉर्बेट और मानस कॉरिडोर ने पिछले एक दशक में वीडीएफ यानी वेरी डेंस फॉरेस्ट कवर का आधा हिस्सा खो दिया है. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कुल 13 कॉरिडोर में वीडीएफ में गिरावट दर्ज की गई है. इनमें से चार कॉरिडोर में तो कम से कम 10 फीसदी या इससे ज्यादा की गिरावट आई है. ये कॉरिडोर हैं – परम्बिकुलम-एर्नाकुलम-इंदिरा गांधी, काजीरंगा-पापुमपारे, रणथंभौर-कुनो-शिवपुरी-माधव, और काजीरंगा-ईटानगर डब्ल्यूएलएस कॉरिडोर.
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि अधिकांश कॉरिडोर ने एमडीएफ में बड़ा नुकसान देखा है. बक्सा-जलदापारा और काजीरंगा-ओरंग कॉरिडोर का एमडीएफ पिछले एक दशक में आधे से ज्यादा कम हो चुका है. इसी अवधि के दौरान कुल 21 गलियारों ने एमडीएफ में कमी की सूचना दी है. आंकड़ों के अनुसार, अंशी-दंडेली-शरवती घाटी और गुरु घासी दास-पलामू-लावलोंग कॉरिडोर ने अपने एमडीएफ कवर का एक तिहाई हिस्सा खो दिया है. गौर करने वाली बात ये है कि जिन क्षेत्रों से अति सघन वन क्षेत्र कम हुआ है, वहां से मध्यम सघन वन क्षेत्र बढ़ने की बात सामने आ रही है. हालांकि ये वद्धि मूल रूप से अति सघन वन क्षेत्र के कम होने की निशानी है.
रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 32 में से 18 टाइगर कॉरिडोर में भी खुले वन क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है. नागरहोल-पुष्पागिरी-तालकावेरी कॉरिडोर ने अपने खुले वन कवर का 70 प्रतिशत से अधिक खो दिया है. अन्य दो कॉरिडोर: अंशी-दंडेली-शरवती घाटी और परम्बिकुलम-एर्नाकुलम-इंदिरा गांधी – ने भी पिछले दस वर्षों में अपने यहां आधे से अधिक खुले जंगल क्षेत्र के कम होने की सूचना दी है. पांच और गलियारों में खुले जंगलों का क्षेत्र 20 प्रतिशत से भी अधिक कम हुआ है. वहीं ऐसे 14 अन्य क्षेत्रों के खुले वन क्षेत्र में वृद्धि भी दर्ज की गई है. हालांकि ये वो क्षेत्र भी हैं जहां वीडीएफ या एमडीएफ में गिरावट दर्ज की गई है.
घटते घने जंगलों का प्रभाव
वठौर कहते हैं कि घने वनों की कमी का प्रभाव भिन्न प्रजातियों पर भिन्न तरीके से होता है. उदाहरण के लिए, हाथी खुले जंगलों में रहना पसंद करते हैं, इसलिए घने जंगलों की कमी उन्हें ज्यादा प्रभावित नहीं करती. जबकि इन क्षेत्रों में पड़ाव करने वाले प्रवासी पक्षियों पर जरूर पेड़ों के कटने का नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है.
वठौर बताते हैं कि घने जंगलों के घटने से बाघ और अन्य बड़ी बिल्ली प्रजातियों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. इस तरह की प्रजातियां जो घने जंगलों में रहती हैं, अगर प्रभावित होती हैं, तो इसका असर पूरी फूड चेन पर पड़ता है. अगर फूड चेन पर इस स्तर पर असर पड़ता है तो यह प्रभाव निचली प्रजातियों पर भी होगा जिससे सभी प्रजातियों का बैलेंस गड़बड़ा जाएगा. यह अंततः सभी के हैबिटैट को प्रभावित करेगा.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story