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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मौजूदा किसान आंदोलन को इस बात का श्रेय देना होगा कि उसके नेतृत्व ने कुछ अद्भुत राजनीतिक समझ दिखाई है। मसलन, पहले उसने अपने आक्रोश को महज सरकार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन उद्योग घरानों की इस मामले में खुल कर चर्चा की, जिन्हें इन कानूनों से सीधा लाभ पहुंचेगा। इस तरह मौजूदा पोलिटकल इकॉनोमी की नब्ज पर उसने सीधे हाथ रखी। इसी तरह उसने न्यायपालिका की संवैधानिक भूमिका और आज के माहौल में उसकी बन गई भूमिका पर भी बड़ी स्पष्ट समझ दिखाई है। इसलिए कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र से जुड़े इस मसले पर न्यायपालिका की पनाह लेने से वह बचा। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आगे आकर कृषि कानूनों के मामले में सक्रियता दिखाना अजीब सा लगा है। इसको लेकर पहले चर्चा चल रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने इन कानूनों पर संवाद बनाने के लिए जो कमेटी बनाई है, उसने इससे जुड़ प्रश्नों को और गंभीर बना दिया है।