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पानी उपलब्ध होगा या फिर पिछले आठ सालों की तरह इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?
हम सब इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। जहां लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं। देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक बड़ा हिस्सा है। लेकिन उन्नत कृषि के लिए सबसे जरूरी पानी है, जिसकी कमी से कृषि क्षेत्र को सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। यही कारण है कि आजादी के बाद की सभी सरकारों ने इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया है। हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए नहरें बनवाई गईं और जहां पहले से निर्मित थीं, उनका पुनरुद्धार किया गया।
लेकिन बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण पिछले कुछ दशकों में सरकार का ध्यान इस क्षेत्र पर से पहले की अपेक्षा कम होता जा रहा है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। राज्य और जिला स्तर पर कृषि विभाग की उदासीनता के कारण नहरों के विकास जैसी अहम परियोजना बर्बादी का शिकार होती जा रही हैं। जिसका खामियाजा कृषि और किसानों को हो रहा है। देश के ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां नहरों का उचित रखरखाव नहीं होने के कारण वे सूख चुके हैं और उससे किसानों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
जम्मू संभाग के सीमावर्ती जिला पुंछ स्थित झूलास गांव भी इसका एक उदाहरण है। पुंछ मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव की आबादी लगभग पांच हजार से अधिक है, जहां अधिकतर लोग खेती-किसानी पर निर्भर हैं। यहां की सबसे बड़ी समस्या गर्मियों के दौरान पानी की कमी के कारण खेतों का सूख जाना है। हालांकि इन किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए विभाग ने करीब से बहने वाली पुलस्त नदी से नहर को जोड़ा है, परंतु जो नहर इस जमीन तक पानी पहुंचाती है, वह जगह-जगह से टूट चुकी है।
झूलास गांव के चौकीदार मुंशी राम का कहना है कि यह जमीन, जिसमें पानी की कमी के कारण धान जैसी अहम फसल नहीं हो पाती है, दस से पंद्रह हजार कनाल है। इन खेतों में नहर के माध्यम से ही सिंचाई संभव थी, जिससे किसान धान और अन्य फसलें उगा पाते थे। लेकिन पिछले आठ सालों से नहर की मरम्मत नहीं होने के कारण इसमें पानी नहीं आ रहा है, जिससे किसानों ने धान उगाना बंद कर दिया है। वहीं कुछ किसानों ने पूरी तरह से खेती बंद ही कर दी है।
उन्होंने बताया कि जमीन खाली देख कुछ लोगों ने खेतों पर अवैध कब्जा करके घर बनाना शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा चलाए गए 'बैक टू विलेज' प्रोग्राम के लिए आए अधिकारियों के समक्ष भी इस समस्या को रखा गया, लेकिन अभी तक इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है। गांव के एक किसान दीन मुहम्मद का कहना है कि जब नहर से पानी आता था, तो किसान धान की बुवाई किया करते थे, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होती थी, लेकिन अब पानी की कमी के बाद मक्का जैसी सूखी फसलें बोई जाती हैं, जिसमें बहुत अधिक लाभ नहीं मिलता है।
एक अन्य किसान रोशन लाल के अनुसार, नहर से न केवल फसलों की अच्छी सिंचाई हो जाती थी, बल्कि गर्मी के दिनों में पशुओं के लिए भी पर्याप्त पानी उपलब्ध हो जाता था, लेकिन इसमें जगह-जगह दरारें आ चुकी हैं, जिससे पानी ठहर नहीं पाता है। स्थानीय नागरिक केतन बाली के अनुसार, यह नहर काफी पुरानी है, जिससे किसानों को धान की फसल के लिए सिंचाई में फायदा हुआ करता था। पिछले कई सालों से इसकी मरम्मत नहीं होने के कारण यह लगभग जर्जर हो चुकी है।
गांव के सरपंच परसा राम भी इस नहर को किसानों के साथ-साथ ग्रामीण जन-जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। बारिश का मौसम अपने चरम पर है, खेत-खलिहानों को भरपूर पानी उपलब्ध हो चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार भी मरम्मत की योजना कागजों तक सीमित रहेगी या धरातल पर बदलाव नजर आएगा? क्या झूलास गांव के किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा या फिर पिछले आठ सालों की तरह इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?
सोर्स: अमर उजाला
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