सम्पादकीय

डेसमंड टूटू स्मृति शेष: गांधी-मार्ग के एक योद्धा का जाना

Neha Dani
28 Dec 2021 1:56 AM GMT
डेसमंड टूटू स्मृति शेष: गांधी-मार्ग के एक योद्धा का जाना
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जिन्हें पूरा कर हम उन्हें और खुद को भी परिपूर्ण बना सकते हैं।

आज के इस बौने दौर में डेसमंड टूटू जैसे किसी आदमकद का जाना बहुत कुछ वैसे ही सालता है, जैसे तेज आंधी में उस आखिरी वृक्ष का उखड़ जाना, जिससे अपनी झोपड़ी पर साया हुआ करता था। जब तेज धूप में अट्टहास करती प्रेत छायाओं की चीख-पुकार सर्वत्र गूंजती हो, तब वे सारे लोग खास अपने लगने लगते हैं, जो संसार के किसी भी कोने में हों, लेकिन मनुष्यता का मंदिर गढ़ने में लगे हों। डेसमंड टूटू आजीवन मनुष्यता का वही मंदिर गढ़ने में लगे रहे और मंदिर गढ़ते-गढ़ते ही इस दुनिया से विदा हो गए।

डेसमंड टूटू एंगलिकन ईसाई पादरी थे, लेकिन ईसाइयों की तमाम दुनिया में उन जैसा पादरी गिनती का भी नहीं है; डेसमंड टूटू अश्वेत थे, लेकिन उनके जैसा शुभ्र व्यक्तित्व खोजे भी न मिलेगा; डेसमंड टूटू शांतिवादी थे, लेकिन उन जैसा योद्धा उंगलियों पर गिना जा सकता है। थे तो वह दक्षिण अफ्रीका जैसे सुदूर देश के रहने वाले, लेकिन हमें वह बेहद अपने लगते थे, क्योंकि महात्मा गांधी के भारत से और भारत के गांधी से उनका गर्भ-नाल वैसे ही जुड़ा था, जैसे उनके समकालीन साथी व सिपाही नेल्सन मंडेला का। डेसमंड टूटू संसार भर में फैले गांधी-परिवार के अनमोल सदस्यों में से एक थे।
गांधी की विरासत नेल्सन मंडेला और डेसमंड टूटू, दोनों ने जिस तरह निभाई, उसे देखकर गांधी होते, तो निहाल ही होते। श्वेत आधिपत्य से छुटकारा पाने की दक्षिण अफ्रीका की लंबी खूनी लड़ाई के अधिकांश सिपाही या तो मौत के घाट उतार दिए गए या देश-बदर कर दिए गए या जेलों में सदा के लिए दफ्न कर दिए गए। डेसमंड टूटू इन सभी के साक्षी भी रहे और सहभागी भी। फिर भी वह इन सबसे बच सके, तो शायद इसलिए कि उन पर चर्च का साया था। वर्ष 1960 में वह पादरी बने और चर्च के धार्मिक संगठन की सीढ़ियां
चढ़ते हुए वर्ष 1985 में जोहानिसबर्ग के बिशप बने। अगले ही वर्ष वह केप टाउन के पहले अश्वेत आर्चबिशप बने। दबा-ढका यह विवाद चल रहा था कि डेसमंड टूटू समाज व राजनीति के संदर्भ में जो कर व कह रहे हैं, क्या वह चर्च की मान्य भूमिका से मेल खाता है? डेसमंड टूटू ऐसे सवाल सुन रहे थे और उसमें छिपी धमकी को पहचान भी रहे थे। इसलिए उन्होंने स्पष्ट कहा, 'मैं जो कर रहा हूं और जो कह रहा हूं, वह आर्चबिशप की शुद्ध धार्मिक भूमिका है। धर्म यदि अन्याय व दमन के खिलाफ नहीं बोलेगा, तो धर्म ही नहीं रह जाएगा।' वेटिकन के लिए भी आर्चबिशप की इस भूमिका में हस्तक्षेप करना मुश्किल हो गया।
रंगभेदी शासन के तमाम जुल्मों का उन्होंने विरोध किया। वह चर्च से जुड़े संभवतः पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका की चुनी हुई श्वेत सरकार की तुलना जर्मनी के नाजियों से की और संसार की तमाम श्वेत सरकारों को बाध्य किया कि वे दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी सरकार पर आर्थिक प्रतिबंध कड़ा करें। वह उग्रता से नहीं, दृढ़ता से अपनी बात रखते थे। उनकी मजाकिया शैली के पीछे एक मजबूत नैतिक मन था, जिसे खुद पर पूरा भरोसा था। इसलिए सत्ता जानती थी कि उनकी बातों को काटना संभव नहीं है। नैतिक शक्ति कितनी धारदार हो सकती है, इसे पहचानने में हम गांधी के संदर्भ में अक्सर विफल हो जाते हैं, क्योंकि उसे पहचानने, सुनने व समझने के लिए नैतिक साहस की जरूरत होती है। डेसमंड टूटू में यह साहस था। वह श्वेत सरकार के छद्म का पर्दाफाश करने में ही नहीं, बल्कि आंदोलनकारियों की देखभाल और आर्थिक मदद करने में भी सक्रिय रहे।
नेल्सन मंडेला ने जब दक्षिण अफ्रीका की बागडोर संभाली, तो उन्होंने रंगभेद की मानसिकता बदलने के लिए ट्रुथ ऐंड रिकौंसिलिएशन कमेटी का गठन किया, जिसका अध्यक्ष डेसमंड टूटू को बनाया गया। लेकिन अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की आलोचना भी डेसमंड टूटू ने उसी साहस और बेबाकी से की। डेसमंड टूटू ने अंतिम सांस तक न संयम छोड़ा, न सत्य। गांधी की तरह वह भी यह कह गए कि यह मेरे सपनों का दक्षिण अफ्रीका नहीं है। भले उनका सपना पूरा नहीं हुआ, लेकिन वह बहुत सारे सपने छोड़ गए हैं, जिन्हें पूरा कर हम उन्हें और खुद को भी परिपूर्ण बना सकते हैं।
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