सम्पादकीय

रेगिस्तान : हमारे पास एक ही थार है, कुदरत की धरोहर और हमारी साझा विरासत

Neha Dani
20 April 2022 1:44 AM GMT
रेगिस्तान : हमारे पास एक ही थार है, कुदरत की धरोहर और हमारी साझा विरासत
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उसी हरियाली से आकर्षित होकर पाकिस्तान सीमा पार करके टिड्डियों का दल भारत आ गया, जिसका प्रभाव हमारे सामने है।

रेगिस्तान, नदी, पहाड़, जंगल किसी व्यक्ति या राज्य की निजी संपत्ति नहीं हैं, बल्कि ये हमारी साझा विरासत हैं। कुदरत की धरोहर हैं। किंतु राज्य सरकारें इस बात को नहीं समझतीं। यदि वे तनिक भी ये जान लें कि उनके निर्णयों का प्रभाव क्या होगा, तो वे उलूल-जुलूल निर्णय नहीं लेंगी। राजस्थान सरकार ने रेगिस्तान में नई पर्यटन नीति जारी की है, जिसमें एडवेंचर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। मिट्टी के धोरों पर रात्रिकालीन पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां मिट्टी के धोरों पर जीप सफारी और डीजे साउंड तो पहले से ही चल रहा था।

अब यह नया पक्ष जुड़ेगा। ऐसे ही गुजरात के रण में पवन ऊर्जा की चक्कियां लगाई गई हैं। कहा गया था कि स्थानीय पंचायतों से पूछा जाएगा, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जंगल के नियमों को ताक पर रख दिया गया है। हिमालयी राज्य तो पहले से इन निर्णयों के भुक्तभोगी हैं। राजस्थान सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा। लोगों को आय का वैकल्पिक स्रोत मिलेगा। यह हमारी विडंबना है कि रोजगार और आय के तर्क के पीछे मानव जीवन व जैव विविधता से जुड़े तर्क गौण हो जाते हैं।
हम भूल जाते हैं कि रेगिस्तान का पर्यावरण बहुत संवेदनशील है। थार दुनिया का एकमात्र रेगिस्तान है, जहां सबसे अधिक जैव विविधता पाई जाती है। यहां के लोगों ने अपनी जीवन-शैली को परिस्थितियों के अनुरूप ढाला है। उनके इस आपसी सामंजस्य से ही वे इस कठोर पर्यावरण स्थितियों में भी जिंदा रह पाते हैं। हमने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि थार में इतना सूखा है, जीवन की विपरीत परिस्थितियां हैं, फिर भी यहां का इंसान खुशी-खुशी उसमें रहता है। जबकि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और तेलंगाना में लाखों लोगों ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि वे उस स्थिति का सामना नहीं कर सके।
कहीं हम भी अब उसी ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं? यहां पाएं जाने वाली रेगिस्तानी लोमड़ी, मिट्टी में रहने वाला सांडा, रेगिस्तानी छिपकली, वाइपर सांप, रेगिस्तानी बिल्ली, डंग बीटल, ऊंट, सुनहरा उल्लू, लाल मुंह की बटेर, हिरण, जंगली सुअर जैसे असंख्य जीव विलुप्ति की ओर हैं। रात भर टीलों पर जीप सफारी, डीजे साउंड और नाइट कैंपिंग ने जीवों के प्राकृतिक आवासों को न केवल नष्ट कर दिया है, बल्कि उनकी दिनचर्या भी बदल दी है, जिससे वे समाप्ति की ओर चल पड़े। कुदरत कभी अन्याय नहीं करती। उसने जहां जैसा भू-दृश्य बनाया, वहां रहने के लिए उसी अनुरूप वनस्पति दी है।
हमारे पुरखों ने इस बात को समझा और उसी अनुरूप अपनी जीवन-शैली विकसित की। रेगिस्तान में होने वाले केर, सांगरी, पीलू, बेर, कचरी, मतीरा जैसे फल-सब्जी हों या ज्वार-बाजरा, लाणा जैसे मोटे अनाज-ये पोषक तत्वों से भरपूर हैं। थार मरुस्थल अक्तूबर से लेकर फरवरी तक लाखों पक्षियों का आशियाना बन जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के दशक में यहां 70 प्रजातियों के पांच लाख प्रवासी पक्षी आते थे, जिनमें स्टॉक, सुर्खाब, फाल्कन, कुरजां, जल मुर्गी व अन्य जलीय पक्षी शामिल हैं। आज इनकी संख्या महज 30 हजार पर सिमट गई है।
लॉकडाउन के दौरान विश्व प्रसिद्ध रामसर साइट्स सांभर झील में हजारों पक्षियों की मौतों ने दुनिया का ध्यान खींचा था। विशेषज्ञों ने माना था कि इंसानी गतिविधियों में वृद्धि होने के कारण इस खारी झील की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हुई है। आज यह झील दम तोड़ रही है। रेगिस्तान में पानी की प्राकृतिक संरचनाओं में बेरी व बावड़ी रही है। बेरी में प्राकृतिक रूप से उतना ही पानी एकत्रित हो पाता है, जितना वहां के लोगों को जीवन जीने के लिए चाहिए, किंतु उसके स्थान पर ट्यूबवेल खुद रहे हैं।
मोटर से पानी खींच रहे हैं। हालात यहां ऐसे हो गए हैं कि 80 फीसदी बेरी मिट्टी से भर गई हैं। इनमें अब पानी नहीं है। रेगिस्तान को हरा-भरा करने के नाम पर इंदिरा गांधी नहर का निर्माण किया गया था, वहां रेगिस्तान में चारों तरफ घास लगाई गई थी। कहा गया था कि पूरा क्षेत्र हरा-भरा होगा। उसी हरियाली से आकर्षित होकर पाकिस्तान सीमा पार करके टिड्डियों का दल भारत आ गया, जिसका प्रभाव हमारे सामने है।

सोर्स: अमर उजाला

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