सम्पादकीय

डेराधीश का आपात-कालीन संबोधन

Rani Sahu
3 May 2022 7:18 PM GMT
डेराधीश का आपात-कालीन संबोधन
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हे मेरे साहित्यिक डेरे के मेरे अभक्त भक्तो! जैसा कि मुझे अस्पताल की चारपाई पर लेटे लेटे सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही इस अफवाह से पता चला है

हे मेरे साहित्यिक डेरे के मेरे अभक्त भक्तो! जैसा कि मुझे अस्पताल की चारपाई पर लेटे लेटे सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही इस अफवाह से पता चला है कि मेरे साहित्यिक डेरे की कमान मेरी इच्छा से मेरी सर्वप्रिय चेली को थमाई जा रही है जो सरासर झूठ है। स्मरण रहे! गद्दी के लिए तो फकीरों में भी मजे से एक दूसरे के सिर कलम होते रहे हैं। कोई डेराधीश अपने जीवित रहते तो जीवित रहते, मरने के बाद भी अपनी इच्छा से अपने डेरे की कमान किसी दूसरे को सौंपने का घोर पाप भला कैसे कर सकता है? यहां की परंपरा यही है कि गुरु के जीवित रहते कोई भी चेला गुरु की आंखों के सामने किसी भी डेरे का गुरु नहीं बन सकता। और गुरु अपने होते किसी को डेरे का हेड बना नहीं सकता। उदार से उदार महान गुरु ऐसा मरने के बाद भी होने नहीं देता। भले ही गुरु को चेले ही महान बनाते आए हों तो आए हों। अस्पताल की चारपाई पर लेटे लेटे मैं इस लाइव संबोधन के माध्यम से अपने साहित्यिक डेरे के तमाम चेलों को एक बार फिर सूचित करते हुए अपने साहित्यिक डेरे की डेराधीशी को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों पर पूर्ण विराम लगाते हुए अपने पूरे बेहोशोहवास में तमाम डेरीय धारा के अनुयायियों को क्लीयर करता हूं कि ऐसे वैसे तो फिलहाल मैं अभी मरने वाला नहीं, पर जो डॉक्टरों की गलती से मर ही गया तो मैं मरने के बाद भी इस साहित्यिक डेरे की गद्दी के आसपास ही मंडराता रहूंगा।

तब जो भी डेरे की इस गद्दी पर बैठने की कोशिश करेगा, उसे साहित्य का प्रेत हो डराता गद्दी से तब तक गिराता रहूंगा जब तक मैं पुन: डेराधीशी धारण करने को शरीर धारण नहीं कर लेता। मेरे मरने के बाद जो भगवान मुझे स्वर्ग की गद्दी देने का लालच भी देंगे तो भी उनके प्रस्ताव को सहर्ष ठुकरा दूंगा। गद्दी चाहे डेरे की हो या फिर गधी की, ये गद्दी होती ही कम्बखत ऐसी ठगिनी है कि इस पर बैठने की जिसे एक बार लत लग जाती है, उसे उसके बाद स्वर्ग तक की गद्दी बौनी लगती है। वह प्राण छोडऩे के बाद भी लाख इसे छोडऩे का दुस्साहस करने के बाद भी नहीं छोड़ पाता। हे मेरे डेरा सत्यानाशियो! अनकहा अनसुना सच तो यह है कि जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था तब मां सरस्वती ने मुझे इस साहित्यिक डेरे का अजन्मा डेराधीश बनने का आग्रह किया था। उनके आग्रह पर ही मैंने साहित्यकार का चोला धारण किया था इस साहित्यिक डेरे की प्रलय टाइम डेराधीशी के लिए। मां सरस्वती जो मुझसे इस साहित्यिक डेरे का डेराधीश बनने का आग्रह अनुग्रह न करतीं तो मैं साहित्य की ओर देखता भी नहीं, साहित्य पर थूकता भी नहीं। हे मेरे साहित्यिक डेरे के मेरे अंध अनुयायियो ! ज्ञात रहे, इस साहित्यिक डेरे के डेराधीश पिछले जन्म में भी हम ही थे और इस जन्म में तो क्या, हर जन्म में हम ही रहेंगे। ऐसे में सोशल मीडिया पर साहित्यिक डेरे के नए डेराधीश की अफवाहों को लेकर मेरे साहित्यिक डेरे के विवेकशील सदस्यों को किसी और के बहकावे में आने की कतई जरूरत नहीं। आदेश तो केवल डेराधीश के होते हैं, और डेराधीश ऊपर से तय किए जाते हैं बस! शेषों की तो सब सोशल मीडिया पर बहलाने फुसलाने वाली बातें हैं। हे मेरे डेरे के विरुद्ध अफवाह फैलाऊओ! क्या हुआ जो आज मैं किस्मत का मारा अस्पताल में भर्ती हूं। देर सबेर आऊंगा तो इसी डेरे में ही! तब बारी बारी से मेरे खिलाफ अफवाहें फैलाने वाले हर एक को बड़े प्यार से देख लूंगा।
अशोक गौतम



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