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- डेराधीश का आपात-कालीन...

हे मेरे साहित्यिक डेरे के मेरे अभक्त भक्तो! जैसा कि मुझे अस्पताल की चारपाई पर लेटे लेटे सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही इस अफवाह से पता चला है कि मेरे साहित्यिक डेरे की कमान मेरी इच्छा से मेरी सर्वप्रिय चेली को थमाई जा रही है जो सरासर झूठ है। स्मरण रहे! गद्दी के लिए तो फकीरों में भी मजे से एक दूसरे के सिर कलम होते रहे हैं। कोई डेराधीश अपने जीवित रहते तो जीवित रहते, मरने के बाद भी अपनी इच्छा से अपने डेरे की कमान किसी दूसरे को सौंपने का घोर पाप भला कैसे कर सकता है? यहां की परंपरा यही है कि गुरु के जीवित रहते कोई भी चेला गुरु की आंखों के सामने किसी भी डेरे का गुरु नहीं बन सकता। और गुरु अपने होते किसी को डेरे का हेड बना नहीं सकता। उदार से उदार महान गुरु ऐसा मरने के बाद भी होने नहीं देता। भले ही गुरु को चेले ही महान बनाते आए हों तो आए हों। अस्पताल की चारपाई पर लेटे लेटे मैं इस लाइव संबोधन के माध्यम से अपने साहित्यिक डेरे के तमाम चेलों को एक बार फिर सूचित करते हुए अपने साहित्यिक डेरे की डेराधीशी को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों पर पूर्ण विराम लगाते हुए अपने पूरे बेहोशोहवास में तमाम डेरीय धारा के अनुयायियों को क्लीयर करता हूं कि ऐसे वैसे तो फिलहाल मैं अभी मरने वाला नहीं, पर जो डॉक्टरों की गलती से मर ही गया तो मैं मरने के बाद भी इस साहित्यिक डेरे की गद्दी के आसपास ही मंडराता रहूंगा।
