सम्पादकीय

खेल भावना से वंचित

Subhi
4 Oct 2022 2:10 AM GMT
खेल भावना से वंचित
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इंडोनेशिया के जावा प्रांत में शनिवार रात हुई घटना ने पूरी दुनिया के खेलप्रेमियों को मायूसी से भर दिया। जिस तरह से वहां के दो क्लबों- अरेमा मलंग और परसेबाया सुरबाया- के बीच हुए मैच में हारने के बाद अरेमा मलंग के फैंस ने हुड़दंग मचानी शुरू की और देखते-देखते हालात इतने बिगड़ गए कि 125 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी

नवभारत टाइम्स: इंडोनेशिया के जावा प्रांत में शनिवार रात हुई घटना ने पूरी दुनिया के खेलप्रेमियों को मायूसी से भर दिया। जिस तरह से वहां के दो क्लबों- अरेमा मलंग और परसेबाया सुरबाया- के बीच हुए मैच में हारने के बाद अरेमा मलंग के फैंस ने हुड़दंग मचानी शुरू की और देखते-देखते हालात इतने बिगड़ गए कि 125 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वह न केवल दुखद बल्कि चिंताजनक भी है। हालांकि सचाई यह है कि घटना तकलीफदेह भले सबके लिए हो, आश्चर्यजनक किसी के लिए नहीं। यही देखिए कि उस मैच में भीड़ बहुत ज्यादा थी- 38 हजार दर्शकों की क्षमता वाले स्टेडियम में 42 हजार लोग मौजूद थे- लेकिन ये सबके सब अरेमा मलंग के ही समर्थक थे।

दूसरी टीम के फैंस को स्टेडियम में प्रवेश ही नहीं दिया गया था क्योंकि आयोजकों का मानना था कि उससे मैच के दौरान दोनों तरफ के फैंस में भिड़ंत हो सकती थी। जाहिर है, खेल के दौरान हिंसा और मारपीट की घटनाएं वहां के लिए अप्रत्याशित नहीं रही हैं। फुटबॉल वहां का बेहद लोकप्रिय खेल है और फैंस के बीच लोकल क्लबों के प्रति निष्ठा इतनी ज्यादा रहती है कि ऐसी छिटपुट घटनाएं होती रहती हैं। आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। इंडोनेशिया के ही एक फुटबॉल वॉचडॉग ऑर्गनाइजेशन सेव आवर सॉकर के मुताबिक, 1995 से अब तक कम से कम 86 फुटबॉलप्रेमी ऐसी ही घटनाओं में मारे गए हैं। फुटबॉल के इन क्रेजी फैंस की आक्रामकता लोकल क्लबों के बीच के मुकाबलों में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मैचों में भी झलकती रही है।

2019 में मलयेशिया के साथ फीफा वर्ल्ड कप के एक क्वॉलिफाइंग मैच में इंडोनेशियाई फैंस का गुस्सा फूटा था। उसी साल कुआलालंपुर में एक बार फिर दोनों देशों के फैंस आपस में भिड़ गए थे। मगर फैंस के ऐसे उत्पात सिर्फ इंडोनेशिया तक सीमित नहीं हैं। फुटबॉल के मैदान में हिंसा की सबसे चर्चित और मृतकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ी घटना इंडोनेशिया में नहीं बल्कि पेरू में हुई थी। 24 मई 1964 को राजधानी लीमा के नैशनल स्टेडियम में हुए ओलिंपिक क्वॉलिफाइंग मुकाबले में अर्जेंटीना ने पेरू को हरा दिया था जिसके बाद हुई हिंसा में 300 लोग मारे गए थे और 500 से अधिक घायल हुए थे। लेकिन बाद के इन छह दशकों में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अलग-अलग स्तरों पर बहुत कुछ किया गया। मौजूदा घटना की बात करें तो कहा जा रहा है कि पुलिस की ओर से आंसू गैस के इस्तेमाल ने हालात को और बदतर किया, जबकि फीफा ने फुटबॉल स्टेडियम के अंदर इस पर प्रतिबंध लगा रखा है। निश्चित रूप से प्रशासनिक स्तर पर हुई चूकों का पूरा हिसाब-किताब होना चाहिए, लेकिन खेलप्रेमियों तक खेल भावना का न पहुंचना भी कम चिंताजनक नहीं है।



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